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Rekha Gakhar

हिमाचल प्रदेश, जिला सिरमौर के प्रसिद्ध कवि श्री दिलीप विशिष्ठ जी की एक बहुत सुंदर कविता ",मिथ्यावादी माँयें" मेरी प्रिय कविताओं में से एक क

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Rahul Ashesh

लोकतंत्र के मंदिर में भी भ्रष्ट पुजारी बैठे है, जनता को जो लूट रहे कुछ अत्याचारी बैठे है। आज बिठा दो उनको जो लोगों की सेवा करते हो, और भगा द

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लोकतंत्र के मंदिर में भी भ्रष्ट पुजारी बैठे है,
जनता को जो लूट रहे कुछ अत्याचारी बैठे है।
आज बिठा दो उनको जो लोगों की सेवा करते हो,
और भगा दो उनको जो भी व्यभिचारी बैठे है।
             लोकतंत्र के मंदिर.....
क़भी धर्म का खेल खिलाकर जनता को भड़काते हैं,
क़भी जात का नाम उठाकर दंगे ये करवाते है।
गुमराह करते है लोगों अपने ही अधिकारों से,
आज भगा दो उन्हें यहाँ जो बने मदारी बैठे है।
           लोकतंत्र के मंदिर.....
क़भी वोट की राजनीति से जनता को ही लूट लिया,
क़भी नोट मदिरा बटबाकर जनता को ही लूट लिया।
जब आ जाते है सत्ता में फिर बस इनकी चलती है,
इन्हें हटा दो इस जंगल से यहाँ शिकारी बैठे है।
            लोकतंत्र के मंदिर.....
आज समय है जाग जाओ अब मेरे देश के मतदाता,
इस मंदिर के शिल्पकार तुम मेरे देश के मतदाता।
लोकतंत्र के मंदिर का ईमान बचाना है तुमको,
आज हटा दो उन्हें यहाँ जो मिथ्याचारी बैठे है।
           लोकतंत्र के मंदिर..... #NojotoQuote लोकतंत्र के मंदिर में भी भ्रष्ट पुजारी बैठे है,
जनता को जो लूट रहे कुछ अत्याचारी बैठे है।
आज बिठा दो उनको जो लोगों की सेवा करते हो,
और भगा द

Aprasil mishra

******************************* एकात्मवाद के संगम में बेजोड़ दौड़ना पड़ता है। परिमण्डल के प्राणों का भी तो मोह छोड़ना पड़ता है।। जय #Struggle #Loneliness #yqdidi #yqhindi #yqlife #हरिगोविन्दविचारश्रृंखला

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एकात्मवाद  के   संगम  में   बेजोड़  दौड़ना पड़ता है।
परिमण्डल के प्राणों का भी तो मोह छोड़ना पड़ता है।।
जय और पराजय की  बातों पर  कर्ण नहीं खोले जाते।
दो - चार अनर्गल   विश्लेषण पर मर्म नहीं तोले जाते।।

बहुसंख्य  समूहों  के पीछे  अधिभार  नहीं बनना होता।
नव भीड़तन्त्र के हिस्से का  व्यापार  नहीं बनना होता।।
निज भुजदण्डों के पौरुष पर ही द्वण्द यहाँ पर होता है।
बहुरक्त  दूर  सम्बन्धों  पर  आधार  नहीं  बनना होता।।

हम  मिथ्यावाद  भुजंगों  के  पायस  में साथ नहीं रहते।
हम वाद और प्रतिवादों में आँचल को ग्रास नहीं कहते।। 
लोचन का लोचन क्या लेना जब लोच यहीं संपीडित है। 
हम  व्यर्थ बानगी पर इनके  अपणक  पर्याय नहीं लेते।।

विद्रुपी अराजक  तत्वों के सुरकण्ठ  अगर अनुनादित हों।
अंतरपट  विटप वितानों पर उच्छृंखल इनकी साजिश हों।। 
कटुता  की  सारी  परतों  में  गहरे  प्रशान्त  सम  झाँईं हो।
और  हमारे  स्वत्त्वमानों  पर  भ्रामकता  की  आतिश हो।।

तो ऐसी  प्रस्थिति के भीतर हम  अंध-बधिर बन जाते हैं।
मानों तो मदकल ही बनकर हम पग प्रयाण कर जाते हैं।।
एकान्त  रमण  के  सन्नाटों  से  ही  अभिव्यक्ति  होती है। 
हम  कुशल-क्षेम के प्रश्नों तक ही  सीमांकित हो जाते हैं।। *******************************
एकात्मवाद  के   संगम  में   बेजोड़  दौड़ना पड़ता  है।
परिमण्डल के प्राणों का भी तो मोह छोड़ना पड़ता है।।
जय

Aprasil mishra

हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अध #Question #writing #RadhaKrishna #blur #litrature #हरिगोविन्दविचारश्रृंखला

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"कृष्ण जीवन में राधा और रुक्मिणी तुलनात्मक साहित्य : एक कलंक" 
              हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अध
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