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Anjali Jain
असाधारण कार्य करने पर निंदा और विरोध भी असाधारण ही होगा! साधारण कार्य करने पर निंदा और विरोध भी साधारण ही होगा!! © Anjali Jain साधारण/असाधारण १७.०३.२२ #adventure
Anjali Jain
'साधारण' होना ही तो 'असाधारण' बात है क्योंकि वह बहुत मुश्किल कार्य है!! ©अंजलि जैन #साधारण/असाधारण#१९.११.२० #InternationalMensDay2020
Anjali Jain
#AzaadKalakaar असाधारण लोगों को साधारण जीवन जीना चाहिये ताकि सभी लोग सादा जीवन जीने के लिए प्रेरित हो सकें!! © Anjali Jain साधारण/असाधारण 11-08-21 #AzaadKalakaar
Shyamal Kumar Rai
तुमसे किए वायदे अब मशीनों से निभाता हूं एक दूसरे को जोड़ने के लिए भी कैलकुलेटर दबाता हूं। कैलकुलेटर #MissingHumanTouch
S.V SINGH
🍗🍗🍗🍗🍗🍗🍗🍗🍗🍗🍗🍅🌶🥒🥦🍞🍅🥥🍆🌶🥕 बढी़ है कीमत फिर भी,हमने नॉनवेज नहीं छोड़ी है। बढ़ेगी प्याज की कीमत तो,आएंगे शाकाहारी भी जद में। तुम भी रह जाओगे सब्जियां खाने से साहब। यहां सिर्फ बिरयानी की दुकान थोड़ी है।।। ✍️✍️ सत्यवीर सिंह जो हर समय रुलाए वह प्याज हो तुम। ब्याज नहीं रह गई अब,चक्रवृद्धि ब्याज हो गई है तूम।।
केशव शर्मा हिन्दू
कुछ लोगों के सीने में दिल की जगह कैलकुलेटर होता है.... हाथ मिलाने से पहले ही हिसाब लगा लेते हैं कि इससे मुझे कितना लाभ होने वाला है..!!! ©केशव शर्मा हिन्दू #hands #दिल #कैलकुलेटर #हिसाब #लाभ
Author Harsh Ranjan
न! मैं इतना भी भोला नहीं! मैं बोला, मैंने मुँह खोला तक नहीं! लेकिन बाज़ार देखकर ये समझ पा रहा हूँ कि वो सफाई का सिपाही नहीं है, झाड़ू बेचने वाला हर बन्दा चुपचाप गंदगी फैला रहा है! ...और मेरे कानों में दूर से आता एक भाषण घुसता चला जा रहा है! मुझे लगता है कि उसका उच्चारण या तो समझ या तर्क निवारण गलत या बड़ा गंभीर है, वो अर्थ और अनर्थ की सीमा से खेलता बड़ा हुनरमंद वजीर/फकीर है! जिंदगी की कुछ सच्चाइयां मौन रहकर भी इतनी बलवती हैं अर्थ उनके समर्थक हैं भले वो शब्द क्यों न एक चुनौती हैं! अहिंसा! एक गोल, सफेद रोटी है, जिसके नीचे चूल्हे में राख ही राख है, मुझे लगता है हिंसा का न होना असल में हिंसा की मोल-तोल और वजन-नाप है। पीछे मुड़कर देखता हूँ कुछ मेमने झाड़ों से लड़ पड़े हैं, न लहू, न कराह, फिर भी हम फट पड़े हैं। फिर हमने पाया, झाड़ों में प्राण नहीं होते, किसी ने तपाक से कहा, बकरे भी तो महान नहीं होते। एक कैलकुलेशन
Author Harsh Ranjan
न! मैं इतना भी भोला नहीं! मैं बोला, मैंने मुँह खोला तक नहीं! लेकिन बाज़ार देखकर ये समझ पा रहा हूँ कि वो सफाई का सिपाही नहीं है, झाड़ू बेचने वाला हर बन्दा चुपचाप गंदगी फैला रहा है! ...और मेरे कानों में दूर से आता एक भाषण घुसता चला जा रहा है! मुझे लगता है कि उसका उच्चारण या तो समझ या तर्क निवारण गलत या बड़ा गंभीर है, वो अर्थ और अनर्थ की सीमा से खेलता बड़ा हुनरमंद वजीर/फकीर है! जिंदगी की कुछ सच्चाइयां मौन रहकर भी इतनी बलवती हैं अर्थ उनके समर्थक हैं भले वो शब्द क्यों न एक चुनौती हैं! अहिंसा! एक गोल, सफेद रोटी है, जिसके नीचे चूल्हे में राख ही राख है, मुझे लगता है हिंसा का न होना असल में हिंसा की मोल-तोल और वजन-नाप है। पीछे मुड़कर देखता हूँ कुछ मेमने झाड़ों से लड़ पड़े हैं, न लहू, न कराह, फिर भी हम फट पड़े हैं। फिर हमने पाया, झाड़ों में प्राण नहीं होते, किसी ने तपाक से कहा, बकरे भी तो महान नहीं होते। एक कैलकुलेशन