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Ayesha Aarya Singh

#गहन मौन में भी  #एक अनकहे संगीत का अनुनाद  #धमनियों में बहता है  #तुम्हें पुकारना  #उसी अनहद नाद को #छू लेने की अदम्य चाह है  #hills shaya

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गहन मौन में भी 
एक अनकहे संगीत का अनुनाद 
धमनियों में बहता है 
तुम्हें पुकारना 
उसी अनहद नाद को,
छू लेने की अदम्य चाह है ||
🙇‍♀🙇‍♀🙇‍♀

©Ayesha Aarya Singh #गहन मौन में भी 
#एक अनकहे संगीत का अनुनाद 
#धमनियों में बहता है 
#तुम्हें पुकारना 
#उसी अनहद नाद को
#छू लेने की अदम्य चाह है 
#hills #shaya

DR. SANJU TRIPATHI

1आज का शीर्षक अनुनाद है जिसका अर्थ है प्रतिध्वनि, गूंज Resonance 2 प्रतियोगिता की समय सीमा आज शाम 7:00 बजे तक 3 मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर #YourQuoteAndMine

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मेरे अंतर्मन का अनुनाद ही मुझको मेरी शक्तियों का एहसास कराता है।
मेरी घबराहट मिटाके हौसला बढ़ाता है मेरी अंतर्रात्मा से मुझे मिलाता है।

मेरी मुस्कुराहट के पीछे की मजबूरियों को समझ सही गलत दिखाता है।
अनुनाद के सहारे ही मुझे झकझोंर कर चुनौतियों से लड़ना भी सिखाता है। 1आज का शीर्षक अनुनाद है जिसका अर्थ है प्रतिध्वनि, गूंज Resonance
2 प्रतियोगिता की समय सीमा आज शाम 7:00 बजे तक
3 मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर

Insprational Qoute

1आज का शीर्षक अनुनाद है जिसका अर्थ है प्रतिध्वनि, गूंज Resonance 2 प्रतियोगिता की समय सीमा आज शाम 7:00 बजे तक 3 मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर #YourQuoteAndMine

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कर अभिव्यक्ति विचारों की समस्त ब्रह्मांड में हो जाये अनुनाद,
संकुचित रूढ़िग्रस्त जो मानसिकता हैं, नष्ट हो जाये ये विवाद,
सत्य सदा सर्वश्रेष्ठ सर्वशक्तिमान का जग जग में होता संचार,
न हो भाई भतीजावाद,न हो बैरभाव आपस मे ऐसा हो प्रचार। 1आज का शीर्षक अनुनाद है जिसका अर्थ है प्रतिध्वनि, गूंज Resonance
2 प्रतियोगिता की समय सीमा आज शाम 7:00 बजे तक
3 मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर

Triveni Shukla

!! रातों के उजियारे !! पुलकित मन के स्पन्दन का नित निशा संग अनुनाद रहा, उगते सूरज की किरणों से एक बैर सा पाला है मैंने! दिन #Inspiration #philosophy #yqdidi #yqhindi #aestheticthoughts #RatonKeUjiyare

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पुलकित मन  के स्पन्दन  का 
नित निशा संग  अनुनाद रहा,
उगते  सूरज  की  किरणों  से
एक  बैर  सा  पाला  है  मैंने!

दिन  कोलाहल  से भरा हुआ
है  रात  पियारी   घोर  शान्त,
निर्बाध   विचरता   रहता   हूँ
लेता विराम  जब  हो विहान!

एकाग्रशील  है  मन मेरा अब
सहज  हो  रहा   चिन्तन  भी,
साकार  'कल्पना'  करने  को
तादात्म्य हो रहे तन-मन भी!

जग कहता जिनको निशाचरी 
वो   दिवास्वप्न   के   मारे    हैं,
रातें   उजली   दिन   कारे   हैं
ये   'रातों   के   उजियारे'   हैं! !! रातों के उजियारे !!

पुलकित मन  के स्पन्दन  का 
नित निशा संग  अनुनाद रहा,
उगते  सूरज  की  किरणों  से
एक  बैर  सा  पाला  है  मैंने!

दिन

Sukirti Bhatnagar

मैं और मेरा प्रियतम दूर कहीं अम्बर के नीचे, गहरा बिखरा झुटपुट हो। वहीं सलोनी नदिया-झरना झिलमिल जल का सम्पुट हो। नीरव का स्पंदन हो केवल #प्रेम #प्यार #सपना #हिंदी #हिन्दीकविता #कल्पना #अलौकिक

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 मैं और मेरा प्रियतम 

दूर कहीं अम्बर के नीचे,
गहरा बिखरा झुटपुट हो। 
वहीं सलोनी नदिया-झरना 
झिलमिल जल का सम्पुट हो। 

नीरव का स्पंदन हो केवल

Aprasil mishra

******************************* एकात्मवाद के संगम में बेजोड़ दौड़ना पड़ता है। परिमण्डल के प्राणों का भी तो मोह छोड़ना पड़ता है।। जय #Struggle #Loneliness #yqdidi #yqhindi #yqlife #हरिगोविन्दविचारश्रृंखला

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एकात्मवाद  के   संगम  में   बेजोड़  दौड़ना पड़ता है।
परिमण्डल के प्राणों का भी तो मोह छोड़ना पड़ता है।।
जय और पराजय की  बातों पर  कर्ण नहीं खोले जाते।
दो - चार अनर्गल   विश्लेषण पर मर्म नहीं तोले जाते।।

बहुसंख्य  समूहों  के पीछे  अधिभार  नहीं बनना होता।
नव भीड़तन्त्र के हिस्से का  व्यापार  नहीं बनना होता।।
निज भुजदण्डों के पौरुष पर ही द्वण्द यहाँ पर होता है।
बहुरक्त  दूर  सम्बन्धों  पर  आधार  नहीं  बनना होता।।

हम  मिथ्यावाद  भुजंगों  के  पायस  में साथ नहीं रहते।
हम वाद और प्रतिवादों में आँचल को ग्रास नहीं कहते।। 
लोचन का लोचन क्या लेना जब लोच यहीं संपीडित है। 
हम  व्यर्थ बानगी पर इनके  अपणक  पर्याय नहीं लेते।।

विद्रुपी अराजक  तत्वों के सुरकण्ठ  अगर अनुनादित हों।
अंतरपट  विटप वितानों पर उच्छृंखल इनकी साजिश हों।। 
कटुता  की  सारी  परतों  में  गहरे  प्रशान्त  सम  झाँईं हो।
और  हमारे  स्वत्त्वमानों  पर  भ्रामकता  की  आतिश हो।।

तो ऐसी  प्रस्थिति के भीतर हम  अंध-बधिर बन जाते हैं।
मानों तो मदकल ही बनकर हम पग प्रयाण कर जाते हैं।।
एकान्त  रमण  के  सन्नाटों  से  ही  अभिव्यक्ति  होती है। 
हम  कुशल-क्षेम के प्रश्नों तक ही  सीमांकित हो जाते हैं।। *******************************
एकात्मवाद  के   संगम  में   बेजोड़  दौड़ना पड़ता  है।
परिमण्डल के प्राणों का भी तो मोह छोड़ना पड़ता है।।
जय
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