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Yasir Hameed
वफा की तुझसे उम्मीद इतनी है कि बेखौफ फिरू मैं डरे तो वह जिनका महबूब बेवफा है बेखौफ फिरू में
R.K. Prajapat
बेख़ौफ़ फिरूं मैं, बेखौफ़ फिरू में, अब क्यों कीसी से डरू में, उड़ता परिंदा हूं में , फ़िर क्यों जमीं पर चलूं में मेरी उड़ान है बादलो से उँची, फ़िर क्यों बारिश में भीगू में खौफ़ नहीं अब मुझ में, हर रोज़ तूफ़ानो से खेलूं में जिंदगी के सर्कस में, बेखौफ़ करतब करूं में बेखौफ़ फिरू में
NEERAJ SIINGH
एक ठगी हुई स्त्री से पूछिए कैसा लगता हैं या एक सच्चे इन्सान से पूछिए की ठगा जाने के बाद कैसा लगता है ? उस स्त्री से पूछिए जिसे बचपन से स्त्री होने के कारण, सिर्फ ठगा गया, नीचा, या पीछा दिखाया गया , आगे नहीं बढ़ने दिया गया , उसे कमजोरी से पूछिए जिसने परिवार में व्यमनस्यता को जन्म दिया , उससे पूछिए जिसने भेदभाव उत्पन्न किया , उससे पूछिए जिसने घृणा और नफरत पैदा की , यह नकलीपन, या यह नकलीपने से भरा नाटकीय संसार, गिरती हुई मानवता से पूछिए की डर क्या होता हैं गिरते हुए संस्कारों से पूछिए की इंसानियत और भारतीयता क्या होती है ? बातें केवल बड़ी है पढ़ने लिखने में सुंदर पर परत दर परत अंदर जब उतरेंगे ना , सत्य इसका भी अच्छा नहीं लगेगा ... #neerajwrites परत दर परत
#tushu
श्वास माझे तुझ्यासाठी काही काळ थाबले होते जीव माझा जात होता,पण प्राण काही अडले होते शेवटच्या शनी सुद्धा श्वास काही निघत नव्हता तुला एकदा बघण्यासाठी जीवही काही ठरत नव्हता शरीराची हि यात्रा आता संपत आली होती काही क्षणात याची होणार माती याची तयारी झाली होती काळजी करू नकोस....
Neophyte
ज़िन्दगी के पास भी तमाशे बहुत है एक पासा फेंकी है,अभी पासे बहुत है उठ और लड़ कर छीन ले ज़िन्दगी से अपना हक़ वरना सोयी हुई यहाँ पर लाशें बहुत है कितना हसीं है तू,ये लोग ही बताएंगे तुझे देखने वाले जमाने मे शीशे बहुत है लड़ो हर धुँआ से जैसे यही परत हो आखिरी ताज़ी हवा में बची हुई सांसे बहुत है माँ-बाप का साथ हो तो हिम्मत का क्या पूछना वरना दुनिया मे देने को दिलाशे बहुत है ©क्षत्रियंकेश परत!
prakash maroti totewad
परतीच्या या वाटेवर तू साथ सोडू नको उमगले नवीन संदर्भ उमगले नवीन अर्थ जीवन रहस्य,हास्य जगू या सोबतीनं माघारी राजसा फिर ना जरा चोर पावलांचा उमटला ठसा क्षण हा फितुर होणार ना पुन्हा प्रेम वसंत सूर छेडणार ना तारा प्रकाश परत
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी मन मेरा भी तबलगार है अहसास जीने का रखूँ प्यार की भले में मूरत पूजता जग मुझे देवी के रूप में हर काल मे पूजता फिरे हकीकत में मेरा कुछ भी नही कितनी बलाओ से बचती फिरू नारो में तो बड़े बड़े स्लोगन है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मगर नर और समाज की निगाहो में अब भी मेरी इज्जत भोग की बस्तु से कुछ कम नही प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Problems कितनी बलाओ से बचती फिरू #nojotohindi