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SnehaD Gupta ( writer)

कंक्रीट के जंगल मैं और उस जंगल के ,
पिंजरे जैसे फ्लैट मै रहने वाले लोग क्या जाने ,
गाँव के खुलेपन कि आजादी क्या होती है।
वो वाहनों के शोर शराबें और उसके दम घुटा देने वाले धुऐं में रहने वाले लोग क्या जाने, 
कि गाँव के चंचल हवा कि धुन और खुशबू क्या होती है।


स्नेहा गुप्ता #कंक्रीट के #जंगल और #गाँव कि #शुद्धता

Amit Sir KUMAR

#flowers प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में.... #शायरी

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अविनाश कुमार

कड़ी धूप में छाँव की तरह, कंक्रीट के जंगल में गाँव की तरह, पिता सदैव ही एक सुकून की तरह होते हैं ज़िंदगी में.... . HAPPY FATHER'S DAY . yqdid #FathersDay #Hindi #yqdidi #1909avinash

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कि जहाँ में अब तक मेरा, नाम है जिनके नाम से
है ख़्वाहिश,नाम हो उनका, इक दिन मेरे काम से कड़ी धूप में छाँव की तरह, कंक्रीट के जंगल में गाँव की तरह, पिता सदैव ही एक सुकून की तरह होते हैं ज़िंदगी में....
.
HAPPY FATHER'S DAY
.
#yqdid

Bhupendra Rawat

विकास शब्द के पीछे कहानी है मानव जिद्द की, प्रकृति को अपने अनुकूल ढालने की तबाह होते जंगलों की वृक्षों के क्षय की वृक्षों से घिरी हुई ध #HandsOn

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विकास शब्द के पीछे कहानी है 
मानव जिद्द की, प्रकृति को 
अपने अनुकूल ढालने की
तबाह होते जंगलों की 
वृक्षों के क्षय की 

वृक्षों से घिरी हुई धरा में 
कंक्रीट के जंगल बनाने की
बड़े पहाड़ों को सूक्ष्म बनाने की

आश्रयहीन होते बेजुबानों की
धाराशायी होती दुनिया की 
निष्कर्षतः एक विनाश की

भूपेंद्र रावत
14।02।2021

©Bhupendra Rawat विकास शब्द के पीछे कहानी है 
मानव जिद्द की, प्रकृति को 
अपने अनुकूल ढालने की
तबाह होते जंगलों की 
वृक्षों के क्षय की 

वृक्षों से घिरी हुई ध

gudiya

मुबारक हो तुमको अब तुम्हारी सड़क की हवायें जो तुमको मेरी पगडंडियों की हया न रास आई कंक्रीट के जंगल में तुम रातें गुज़ारो जो तुमको मेरी भोर की #कविता #nojotoLove #nojotoshayari #na

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मुबारक हो तुमको अब तुम्हारी सड़क की हवायें
जो तुमको मेरी पगडंडियों की हया न रास आई

कंक्रीट के जंगल में तुम रातें गुज़ारो
जो तुमको मेरी गाँव के भोर की ताज़गी न भाई

हम चले फिर से जीने अपना गुज़रा ज़माना
देखो तुम हमको अब वापस याद न आना !

©gudiya मुबारक हो तुमको अब तुम्हारी सड़क की हवायें
जो तुमको मेरी पगडंडियों की हया न रास आई

कंक्रीट के जंगल में तुम रातें गुज़ारो
जो तुमको मेरी भोर की

Abhishek 'रैबारि' Gairola

प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत

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Vandana

मेरा गांव बसता है मेरे रग रग में,,, "शहरों ने तो बूचड़खाने बना दिए शहरों में गली-गली में गंदगी का अंबार है,,, अपने घर की साफ सफाई करके बाहर

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गांव को गांव ही रहने दो क्योंकि,
आज भी भारत की संस्कृति वहां जिंदा है,,, 
स्त्रियों के सर पर आंचल,,
मिट्टी से लीपा आंगन,,
बड़े बुजुर्गों का आदर,,
बच्चों में संस्कारों का सागर,,
आज भी जिंदा है,,
त्योहारों में मिलजुल के नाच गाना,,
स्वादिष्ट व्यंजनों का एक दूसरे से,
आदान-प्रदान होना,,,,
आज भी जिंदा है,,
शाम होते ही हर घर में तुलसी का,,
दिया का जलना,,,,
पीपल बरगद हर वृक्ष की पूजा करना,,,
फसल पकने में प्रकृति को धन्यवाद करना,,
आज भी जिंदा है,,,,
गांव शहरों से कई बेहतर है!!
क्योंकि जीवन वही बसता है!!
शहरों में तो जिंदा लाशें फिरती है,,, मेरा गांव बसता है मेरे रग रग में,,,
"शहरों ने तो बूचड़खाने बना दिए 
शहरों में गली-गली में गंदगी का अंबार है,,,
अपने घर की साफ सफाई करके बाहर

Dinesh Kumar Pathak

एक नया इतिहास लिखने के लिए फल फूल रहा है हमारा समाज, गाँव की सोंधी मिट्टी में घुलती राजनीति की हवा खेतों में उगते कंक्रीट के जंगल, आधुनिकत #कविता

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एक नया इतिहास लिखने के लिए 
फल फूल रहा है हमारा समाज, 
गाँव की सोंधी मिट्टी में घुलती
 राजनीति की हवा
खेतों में उगते कंक्रीट के जंगल, 
आधुनिकता के बाजार में
भेंट चढ़ती,  हमारी धरोहर, संस्कृति, परम्परा
और संस्कार.....। 
घर से बाहर निकलते ही जवान बेटी को खो देने का
 खौफ लिए जीते माँ- बाप
गरीबी, शिक्षा, चिकित्सा के अभाव में
भटकते लोग, 
काम की तलाश में ठोकर खाते बेरोजगार
"जहर" के डर से जेब तलासते, 
बूढ़े माँ - बाप होकर लाचार. ..। 
हर शाम! गयी उम्मीद लिए घर लौटते लोग
महत्वाकांक्षा के सैलाब में बहते लोग
नफ़ा नुकसान के भंवर में फंसता.. 
इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के बीच
कुचलता अपनों का प्यार....।। 
हो रहा है! 
बहुत तेज़ी से
लोगों का विकास।।

© Dinesh Kumar Pathak एक नया इतिहास लिखने के लिए
फल फूल रहा है हमारा समाज, 
गाँव की सोंधी मिट्टी में
घुलती राजनीति की हवा
खेतों में उगते कंक्रीट के जंगल, 
आधुनिकत

Abhijeet Yadav

ये शहर जिसकी आबादी मुठ्ठी भर बेजान से लोग है, खड़ा है ठूंठा कंक्रीट के जंगल सा , घर से निकला था मैं इक नई सहर के लिए, पर गुम हो चला हूं किस #Gif #peace #nojotohindi #लाचार

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ये शहर जिसकी आबादी मुठ्ठी भर बेजान से लोग है,
खड़ा है ठूंठा कंक्रीट के जंगल सा ,
घर से निकला था मैं इक नई  सहर के लिए,
पर गुम हो चला हूं किसी धुंधलके शाम में,
अब इस शहर की आबोहवा मेरे अंदर 
किसी जहर कि तरह घुल चुकी है,
हर तरफ बस लाचार जत्त्थों का जमावड़ा है,
हर रोज थक हार कर चला आता हूं मैं,
फिर से इस शहर की मांद में, 
इसी झांसे में कि,
शायद मुक्कमल हो जाए कभी ये अंतहीन तलाश!


 #gif ये शहर जिसकी आबादी मुठ्ठी भर बेजान से लोग है,
खड़ा है ठूंठा कंक्रीट के जंगल सा ,
घर से निकला था मैं इक नई  सहर के लिए,
पर गुम हो चला हूं किस

pawan

आग उगलते सूरज की तपती धूप में वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है कंक्रीट के जंगल ऊर्जा से निकलती बनावटी रोश

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आग उगलते सूरज की 
तपती धूप में
वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो
तन को मिली तकलीफ भी
सुहानी लगती है

कंक्रीट के जंगल 
ऊर्जा से निकलती बनावटी रोशनी 
इजाद की हुई नदियां 
उस नदियां में 
ख्वाहिशों की लहरों पर तैरती
बिना चप्पू वाली ही सही
काश एक नाव मिल जाए 
उस अधूरी  इच्छापूर्ति 
खुले गगन के नीचे वाली सौगात
रुहानी लगती हैं
तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है

काली घनेरी रात 
सितारे सितारों से करते हैं बात
आसमां के चांद में 
किसी का अक्स दिखता है
असली खूबसूरती का वजूद 
सिर्फ शायर लिखता है 
काश चांद को छू सकूं 
दूधिया चांदनी पर चढ़ने को पांव मिल जाए
मैं अपने अरमानों के फूल चढ़ाता सुहानी 
रातरानी लगती है
तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है आग उगलते सूरज की 
तपती धूप में
वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो
तन को मिली तकलीफ भी
सुहानी लगती है

कंक्रीट के जंगल 
ऊर्जा से निकलती बनावटी रोश
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