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SnehaD Gupta ( writer)
कंक्रीट के जंगल मैं और उस जंगल के , पिंजरे जैसे फ्लैट मै रहने वाले लोग क्या जाने , गाँव के खुलेपन कि आजादी क्या होती है। वो वाहनों के शोर शराबें और उसके दम घुटा देने वाले धुऐं में रहने वाले लोग क्या जाने, कि गाँव के चंचल हवा कि धुन और खुशबू क्या होती है। स्नेहा गुप्ता #कंक्रीट के #जंगल और #गाँव कि #शुद्धता
Amit Sir KUMAR
प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में अपना एक हिस्सा खोता जा रहा हूं महफिलों के शोर में,एक अंधी दौड़ में तन्हाइयों के और नजदीक होता जा रहा हूं रिश्तों के इस भीड़ में, खुदगर्जी के दौर में इंसानियत से और दूर होता जा रहा हूं तेज रफ्तार जिंदगी में, अनजाने राहो में अंदर कुछ थम गया है शायद दुनिया से कुछ और दूर होता जा रहा हूं। ©Amit Sir KUMAR #flowers प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में....
अविनाश कुमार
कि जहाँ में अब तक मेरा, नाम है जिनके नाम से है ख़्वाहिश,नाम हो उनका, इक दिन मेरे काम से कड़ी धूप में छाँव की तरह, कंक्रीट के जंगल में गाँव की तरह, पिता सदैव ही एक सुकून की तरह होते हैं ज़िंदगी में.... . HAPPY FATHER'S DAY . #yqdid
Bhupendra Rawat
विकास शब्द के पीछे कहानी है मानव जिद्द की, प्रकृति को अपने अनुकूल ढालने की तबाह होते जंगलों की वृक्षों के क्षय की वृक्षों से घिरी हुई धरा में कंक्रीट के जंगल बनाने की बड़े पहाड़ों को सूक्ष्म बनाने की आश्रयहीन होते बेजुबानों की धाराशायी होती दुनिया की निष्कर्षतः एक विनाश की भूपेंद्र रावत 14।02।2021 ©Bhupendra Rawat विकास शब्द के पीछे कहानी है मानव जिद्द की, प्रकृति को अपने अनुकूल ढालने की तबाह होते जंगलों की वृक्षों के क्षय की वृक्षों से घिरी हुई ध
gudiya
मुबारक हो तुमको अब तुम्हारी सड़क की हवायें जो तुमको मेरी पगडंडियों की हया न रास आई कंक्रीट के जंगल में तुम रातें गुज़ारो जो तुमको मेरी गाँव के भोर की ताज़गी न भाई हम चले फिर से जीने अपना गुज़रा ज़माना देखो तुम हमको अब वापस याद न आना ! ©gudiya मुबारक हो तुमको अब तुम्हारी सड़क की हवायें जो तुमको मेरी पगडंडियों की हया न रास आई कंक्रीट के जंगल में तुम रातें गुज़ारो जो तुमको मेरी भोर की
Abhishek 'रैबारि' Gairola
प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत शक्ति से अनभिज्ञ हैं, जहां डांबर के पथ पर बख़्तर के अश्व दौड़ते हैं, जहां सूर्यास्त होने के बाद भी चौंधियाने वाला प्रकाश मौजूद रहता है, वहीं यह महान शक्ति हमें अथम कर मितव्ययिती प्रदान करती है। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत
Vandana
गांव को गांव ही रहने दो क्योंकि, आज भी भारत की संस्कृति वहां जिंदा है,,, स्त्रियों के सर पर आंचल,, मिट्टी से लीपा आंगन,, बड़े बुजुर्गों का आदर,, बच्चों में संस्कारों का सागर,, आज भी जिंदा है,, त्योहारों में मिलजुल के नाच गाना,, स्वादिष्ट व्यंजनों का एक दूसरे से, आदान-प्रदान होना,,,, आज भी जिंदा है,, शाम होते ही हर घर में तुलसी का,, दिया का जलना,,,, पीपल बरगद हर वृक्ष की पूजा करना,,, फसल पकने में प्रकृति को धन्यवाद करना,, आज भी जिंदा है,,,, गांव शहरों से कई बेहतर है!! क्योंकि जीवन वही बसता है!! शहरों में तो जिंदा लाशें फिरती है,,, मेरा गांव बसता है मेरे रग रग में,,, "शहरों ने तो बूचड़खाने बना दिए शहरों में गली-गली में गंदगी का अंबार है,,, अपने घर की साफ सफाई करके बाहर
Dinesh Kumar Pathak
एक नया इतिहास लिखने के लिए फल फूल रहा है हमारा समाज, गाँव की सोंधी मिट्टी में घुलती राजनीति की हवा खेतों में उगते कंक्रीट के जंगल, आधुनिकता के बाजार में भेंट चढ़ती, हमारी धरोहर, संस्कृति, परम्परा और संस्कार.....। घर से बाहर निकलते ही जवान बेटी को खो देने का खौफ लिए जीते माँ- बाप गरीबी, शिक्षा, चिकित्सा के अभाव में भटकते लोग, काम की तलाश में ठोकर खाते बेरोजगार "जहर" के डर से जेब तलासते, बूढ़े माँ - बाप होकर लाचार. ..। हर शाम! गयी उम्मीद लिए घर लौटते लोग महत्वाकांक्षा के सैलाब में बहते लोग नफ़ा नुकसान के भंवर में फंसता.. इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के बीच कुचलता अपनों का प्यार....।। हो रहा है! बहुत तेज़ी से लोगों का विकास।। © Dinesh Kumar Pathak एक नया इतिहास लिखने के लिए फल फूल रहा है हमारा समाज, गाँव की सोंधी मिट्टी में घुलती राजनीति की हवा खेतों में उगते कंक्रीट के जंगल, आधुनिकत
Abhijeet Yadav
ये शहर जिसकी आबादी मुठ्ठी भर बेजान से लोग है, खड़ा है ठूंठा कंक्रीट के जंगल सा , घर से निकला था मैं इक नई सहर के लिए, पर गुम हो चला हूं किसी धुंधलके शाम में, अब इस शहर की आबोहवा मेरे अंदर किसी जहर कि तरह घुल चुकी है, हर तरफ बस लाचार जत्त्थों का जमावड़ा है, हर रोज थक हार कर चला आता हूं मैं, फिर से इस शहर की मांद में, इसी झांसे में कि, शायद मुक्कमल हो जाए कभी ये अंतहीन तलाश! #gif ये शहर जिसकी आबादी मुठ्ठी भर बेजान से लोग है, खड़ा है ठूंठा कंक्रीट के जंगल सा , घर से निकला था मैं इक नई सहर के लिए, पर गुम हो चला हूं किस
pawan
आग उगलते सूरज की तपती धूप में वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है कंक्रीट के जंगल ऊर्जा से निकलती बनावटी रोशनी इजाद की हुई नदियां उस नदियां में ख्वाहिशों की लहरों पर तैरती बिना चप्पू वाली ही सही काश एक नाव मिल जाए उस अधूरी इच्छापूर्ति खुले गगन के नीचे वाली सौगात रुहानी लगती हैं तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है काली घनेरी रात सितारे सितारों से करते हैं बात आसमां के चांद में किसी का अक्स दिखता है असली खूबसूरती का वजूद सिर्फ शायर लिखता है काश चांद को छू सकूं दूधिया चांदनी पर चढ़ने को पांव मिल जाए मैं अपने अरमानों के फूल चढ़ाता सुहानी रातरानी लगती है तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है आग उगलते सूरज की तपती धूप में वृक्ष की शीतल छांव मिल जाए तो तन को मिली तकलीफ भी सुहानी लगती है कंक्रीट के जंगल ऊर्जा से निकलती बनावटी रोश