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कवी दिपक सोनवणे
येति कितीही संकटे आहे कणखर उभा मी हिम्मत ठेवलाय लढण्याची घाबरत नाहीच मी मी आणि पर्यावरण
JD
दादा जानता है के अब किसी काम की नहीं है मगर साईकिल की फ्रेम से अभी तक उतारी नहीं है बच्चे की गद्दी ****** #शहरीकरण #CityEvening
K K Joshi
"इन्तजार " सर मुड़ाए पहाड़ों पर अकेले दरख्त सी वो खंखारती बुढ़िया--- जिसकी औलादें प्रवासी हो शहरों की बहुमंजिला इमारतों में टंग गई या लिपे पुते कच्चे मकान छोड़ पक्के फुटपाथों में बस गई ---- अब भी भोर हुए गोबर साफ करती धान कूटती छाछ और थिचे आलू के पानी संग मडुवे के आटे में गेहूं का पलोथन लगी ठग रोटी खाती अब भी इन्तजार कर रही है उस हवा के लौटने का जो उड़ा कर ले गई उसके पहाड़ के पेड़ों को, -- बेटों को!!! इन्तजार # प्रवास #शहरीकरण
Parvej Khan
नहीं चाहिए ऊंचे-ऊंचे बंगले, बड़ी-बड़ी इमारतें, मीट्टी के वही घर चाहिए, पेड़ों की वही छांव रहने दो मेरे गाँव को बस गाँव रहने दो। नहीं चाहिए आज कल के ये गाने, ये लड़की पागल है- पागल है, डीजे वाले बाबू कौवें की वही कांव रहने दो मेरे गाँव को बस गाँव रहने दो। मत बनाओ शहर मेरे गाँव को मेरे गाँव को बस गाँव रहने दो। #पर्यावरण#संरक्षण #जीव#संरक्षण #अंधाधुंध#शहरीकरण #environmental#issues #nature's #lover Prinal Royal smita ❤️ (ishu) Halima Usmani #suman#
Sunita Bishnolia
पर्यावरण (दोहे) हरी-भरी धरती रहे,नीला हो आकाश, स्वच्छ बहे सरिता सभी,स्वच्छ सूर्य प्रकाश।। पेड़ों को मत काटिए,करें धरा श्रृंगार। माटी को ये बांधते,ये जीवन आधार।। सुनीता बिश्नोलिया©® शुद्ध हवा में साँस लें,कोई न काटे पेड़। आस-पास भी साफ़ हो, सभी बचाएँ पेड़।। धरती माता ने दिए,हमें अतुल भण्डार, स्वच्छ पर्यावरण रखें, मानें हम उपकार।। कानन-नग-नदियाँ सभी,धरती के श्रृंगार। दोहन इनका कम करें,मानें सब उपहार।। साफ-स्वच्छ गर नीर हो,नहीं करें गर व्यर्थ। कोख न सूखे मात की, जल से रहें समर्थ। धूल-धुआँ गुब्बार ही,दिखते चारों ओर। दूषित-पर्यावरण हुआ,चले न कोई जोर।। कान फाड़ते ढोल हैं,फूहड़ बजते गीत, हद से ज्यादा शोर है,खोये मधुरिम गीत। हरी-भरी खुशहाली के,धरती भूली गीत। मैली सी वसुधा हुई,भूली सुर संगीत।। पर्यावरण स्वच्छ राखिये,ये जीवन आधार, खुद से करते प्यार हम,कीजे इससे प्यार। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर #पर्यावरण #स्वच्छ #पर्यावरण
Chandrabhanu Rituraj
वर्षों बाद लौटा हूं मैं इन गलियों में कल तक दौरा करता था मैं जिन गलियों में गलियां आज भी वही है लोग आज भी वही है बदला सिर्फ घरों का रंग है पर शायद बदली मेरी याद भी है वह करीम चाचा का मकान मुझको मिल नहीं रहा सत्तू हलवाई की मिठाईयां भी मुझको दिख नहीं रही है हां मुझको याद मेरा मकान तो है पर उसके सामने खिलौनों की वह दुकान नहीं है गली के मुहाने का वह मैदान अब दिख नहीं रहा वहां एक ऊंची लंबी सी इमारत खड़ी है अंकित, अन्नू, चंदन कोई दिखाई नहीं दे रहा 5 बजने वाला है पर अजान सुनाई नहीं दे रहा मंदिर में आरती की तैयारी चल रही है पर प्रसाद लेने कोई बच्चा खड़ा दिखाई नहीं दे रहा पहले तो पूरा मोहल्ला अपना घर जैसा लगता था पर आज मुझसे मेरा कोई हालचाल नहीं पूछ रहा पहले तो खाना मैं किसी भी घर में खा लेता था अभी प्यास लगी है पर कोई पानी नहीं दे रहा शहर बनने के चक्कर में गांव बदल सा गया है मैं तो लौटकर गांव आया था मुझे क्या पता था कि गांव शहर बन गया है #जिंदगी #गांव #शहर #बदलाव #तरक्की #शहरीकरण