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Ek villain
मन तारण रोधी कानून लंबे समय से लालच दबाव धोखे के खेल में चल रहे मन तारण पर बहुत सटीक और सार्थक विश्लेषण करता ही है निसंदेह विदेशी धन के माध्यम से देश के सामाजिक समरसता जनसंख्या आएगी बदलाव और विघटनकारी प्रयोजन हेतु मुख्यता आदिवासी उत्तर प्रदेश और दक्षिण के राज्यों में अधिक चलाया जा रहा है इस पर कानून की आवश्यकता बहुत पहले से थी लेकिन पूर्व सरकारों द्वारा समिति तत्वों द्वारा ही बड़े स्तर पर मंत्रण पर रोक नहीं लगी और इस प्रकार से धर्म परिवर्तन होते रहे ©Ek villain #Rose मनतारण नहीं धर्म विच्छेद रोधी कानून
SURAJ आफताबी
कच्ची - कच्ची है धानिया अभी तो बेशक ओलो की बौछार भी होगी झेल गई ये गर प्रतिकूल वृष्टियाँ बीज रोपित मृदा अवश्य कच्छार ही होगी! कभी तप्त पथरीली, कभी मरू की झाड़ डगरिया इन छालों की परिणित डाल इक दिन रसाल भी होगी अभी अपनों में बेगानी पहचान तलाशत है पागल कभी समूचे विश्व में "आफताबी" मिसाल भी होगी ! छोटी-छोटी असफलताएं जीवन में रोधक का नहीं उत्प्रेरक का कार्य करती है.... हो सकता है आपका भविष्य आपसे कुछ बड़ा माँग कर रहा हो ! धानिया- गेहूँ
Ajay Amitabh Suman
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल स्वार्थ का ही हर तरफ रिश्ता हुआ । जो खुशामद कर रहा चर्चा हुआ ।।१ आप तो मशहूर वह इंसान है । किस तलब से अब इधर आना हुआ ।२ नेह की तो आज गुम चाबी हुई । व्यर्थ चिंतन पंच का देखा हुआ ।।३ भूल बैठी राम को दुनिया यहाँ । हीर को ही जब खुदा माना हुआ ।।४ छोड़ दो बातें पुरानी आज तुम । इस सदीं में देख सब खोया हुआ ।।५ नाम ही अब बोलता है मान ले । इस जगत की रीति बतलाता हुआ ।।६ जंग रोधक आज कुछ पुर्जे मिले । दीमकों की चाल समझाता हुआ ।। २२/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल स्वार्थ का ही हर तरफ रिश्ता हुआ । जो खुशामद कर रहा चर्चा हुआ ।।१ आप तो मशहूर वह इंसान है । किस तलब से अब इधर आना हुआ ।२
रजनीश "स्वच्छंद"
दीप तले अंधेरा।। दीप प्रज्ज्वलित, तमहारिणी, कर-धार ज्वलित जो ले चला।। पर हाय, सगुन अवगुण भाव मे, तमो-गुण तली में था पला। किस रक्षित-कवच से
रजनीश "स्वच्छंद"
बचपन बोध।। अपने पराये का कहाँ कब बोध था बचपन, यारों सच बताता हूँ बड़ा अबोध था बचपन। कहाँ नफरतों का दौर था उन्माद मज़हब का, मानवी विज्ञान का सही एक शोध था बचपन। आंखें तरेरे, साथ खेलें, हाथ पकड़े चल रहे, रिश्ते धूमिल होते जहां कब क्रोध था बचपन। फूल थे बगिया के सब रंगों की महत्ता थी नहीं, इंद्रधनुषी सतरंगी सुहाना प्रणोद था बचपन। ये धरा और ये गगन कहो कब बैर था किससे, इंसानियत जिसमे पली एक गोद था बचपन। द्वेष ईर्ष्या और कलह स्वार्थ सब दूर थे कोसों, हर चेहरे की चमक और एक मोद था बचपन। चलो फिर से जियें वो कल जो छोड़ आये हैं, इस वैमनस्य दुनिया का एक रोध था बचपन। ©रजनीश "स्वछंद" बचपन बोध।। अपने पराये का कहाँ कब बोध था बचपन, यारों सच बताता हूँ बड़ा अबोध था बचपन। कहाँ नफरतों का दौर था उन्माद मज़हब का, मानवी विज्ञान का
Pen of a Soul
क्यों कोरॉना को ही होश है, क्यों इंसानियत बेहोश है, क्या कुदरत का ये रोश है, या वक़्त का आक्रोश है, किस इंसानी हरकत का ये दोश है, जो इंसान सह रहा पर खामोश है, क्यों घुट के जीवन जी रहा, इस वक़्त भी घर पर तू नहीं रहा, सड़को पर देहशत क्यूं जमाए है, क्यों वायरस को आपस में फैलाए है, समझदार बन और सीख ले, कुदरत से प्यार कर के देख ले, तू फितरत ना भूल इंसान की, भूल जा आदतों हैवान की, तू सीख बैठे घर पर, अच्छी आदतों को कर परस्पर, ये वक़्त है इंसानी साझेदारी की, इलाज यही है इस खतरनाक बीमारी की।। इस पंडेमिक के वक़्त पर आप सब से निवेदन है की जहां कहीं भी है वहीं रहे और इम्यूनिटी बनाए रखने के घरेलू उपाय अपनाए। कोराना तब तक हानिकारक नहीं
Vikash Bakshi
क्यों कोरॉना को ही होश है, क्यों इंसानियत बेहोश है, क्या कुदरत का ये रोश है, या वक़्त का आक्रोश है, किस इंसानी हरकत का ये दोश है, जो इंसान सह रहा पर खामोश है, क्यों घुट के जीवन जी रहा, इस वक़्त भी घर पर तू नहीं रहा, सड़को पर देहशत क्यूं जमाए है, क्यों वायरस को आपस में फैलाए है, समझदार बन और सीख ले, कुदरत से प्यार कर के देख ले, तू फितरत ना भूल इंसान की, भूल जा आदतों हैवान की, तू सीख बैठे घर पर, अच्छी आदतों को कर परस्पर, ये वक़्त है इंसानी साझेदारी की, इलाज यही है इस खतरनाक बीमारी की।। इस पंडेमिक के वक़्त पर आप सब से निवेदन है की जहां कहीं भी है वहीं रहे और इम्यूनिटी बनाए रखने के घरेलू उपाय अपनाए। कोराना तब तक हानिकारक नहीं
Ravendra
Ravendra