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Abhilasha Dixit
सखी सुन रही! कोकिला गीत, लिया है !उसने उर कोजीत जो स्वभाव से ही स्नेहिल है, जीवो से रहती घुल मिल है। मन में लहराता प्रेम तरल है, मादक स्वर में जो ओझल है। कैसे,? अनजानी हो सकती. उसकी विह्वल प्रीति पुनीत। सखी सुन रही कोकिला गीत।। शकुंतला स्मरण ©Abhilasha Dixit शकुंतला स्मरण
NONNY
सवेरे से लेके रात होने तक,मैं जिसे सोचता रहता था,, कोई पूछता है तो सोचता हूँ,वो कौन थी कैसी दिखती थी,, कौन थी।
Phool Romio
सब रोए उसकी मौत पर बस एक इस रोमियो को छोड़कर फिर क्या था इतनी सी बात पर मुझे कातिल समझ लिया गया ©Phool Romio वो कौन थी?
बी एल सोनी
#बे मेल प्यार # बनके लहू नस नस में समाती चली गई । नैनो में सुनहरे ख्वाब सजाती चली गई । मैं खोया था प्यार में उसके कुछ इस तरह, वो मेरे अरमानों को और बढ़ाती चली गई । वो कौन थी । आई वो मेरे जीवन में बहार की तरह । सावन की किसी ठंडी फुहार की तरह। जाते ही ले गई वो सब कुछ समेट कर, ,भारत,हुआ तनहा किसी शिकार की तरह। वो कौन थी । जय हिंद । ©Bharat Lal Soni # वो कौन थी #
devarshi
क्या वो चांद थीं मेरे जीवन की या थीं उसकी परछाई, क्या तब वो मेरी ही थीं या हमेशा से ही थीं पराई, ना जाने किस बात की मुझे मिली इतनी बड़ी सजा, कि यहां छाया था मातम और वहां बज रहीं थीं शहनाई। वो कौन थी
HP
कौन थी शबरी शबरी की कहानी रामायण के अरण्य काण्ड मैं आती है। वह भीलराज की अकेली पुत्री थी। जाति प्रथा के आधार पर वह एक निम्न जाति मैं पैदा हुई थी। विवाह मैं उनके होने वाले पति ने अनेक जानवरों को मारने के लिए मंगवाया। इससे दुखी होकर उन्होंने विवाह से इनकार कर दिया। फिर वह अपने पिता का घर त्यागकर जंगल मैं चली गई और वहाँ ऋषि मतंग के आश्रम मैं शरण ली। ऋषि मतंग ने उन्हें अपनी शिष्या स्वीकार कर लिया। इसका भारी विरोध हुआ। दूसरे ऋषि इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि किसी निम्न जाति की स्त्री को कोई ऋषि अपनी शिष्या बनाये। ऋषि मतंग ने इस विरोध की परवाह नहीं की। ऋषि मतंग जब परम धाम को जाने लगे तब उन्होंने शबरी को उपदेश किया कि वह परमात्मा मैं अपना ध्यान और विश्वास बनाये रखें। उन्होंने कहा कि परमात्मा सबसे प्रेम करते हैं। उनके लिए कोई इंसान उच्च या निम्न जाति का नहीं है। उनके लिए सब समान हैं। फिर उन्होंने शबरी को बताया कि एक दिन प्रभु राम उनके द्वार पर आयेंगे। ऋषि मतंग के स्वर्गवास के बाद शबरी ईश्वर भजन मैं लगी रही और प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा करती रहीं। लोग उन्हें भला बुरा कहते, उनकी हँसी उड़ाते पर वह परवाह नहीं करती। उनकी आंखें बस प्रभु राम का ही रास्ता देखती रहतीं। और एक दिन प्रभु राम उनके दरवाजे पर आ गए। शबरी धन्य हो गयीं। उनका ध्यान और विश्वास उनके इष्टदेव को उनके द्वार तक खींच लाया। भगवान् भक्त के वश मैं हैं यह उन्होंने साबित कर दिखाया। उन्होंने प्रभु राम को अपने झूठे फल खिलाये और दयामय प्रभु ने उन्हें स्वाद लेकर खाया। फ़िर वह प्रभु के आदेशानुसार प्रभुधाम को चली गयीं। शबरी की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है? आइये इस पर विचार करें। कोई जन्म से ऊंचा या नीचा नहीं होता। व्यक्ति के कर्म उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। हम किस परिवार मैं जन्म लेंगे इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं हैं पर हम क्या कर्म करें इस पर हमारा पूरा अधिकार है। जिस काम पर हमारा कोई अधिकार ही नहीं हैं वह हमारी जाति का कारण कैसे हो सकता है। व्यक्ति की जाति उसके कर्म से ही तय होती है, ऐसा भगवान् ख़ुद कहते हैं। कहे रघुपति सुन भामिनी बाता, मानहु एक भगति कर नाता। प्रभु राम ने शबरी को भामिनी कह कर संबोधित किया। भामिनी शब्द एक अत्यन्त आदरणीय नारी के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रभु राम ने कहा की हे भामिनी सुनो मैं केवल प्रेम के रिश्ते को मानता हूँ। तुम कौन हो, तुम किस परिवार मैं पैदा हुईं, तुम्हारी जाति क्या है, यह सब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। तुम्हारा मेरे प्रति प्रेम ही मुझे तम्हारे द्वार पर लेकर आया है। कौन थी शबरी
आनन्द मानव
जलमग्न लंका में वो चिता की आखिरी काष्ठ जैसी, लिए गुब्बारे रंगीन वह हाथ उठाती ,चीत्कार करती। काशी अपनी धरती पर इक और कबीर दिखलाती, पथभ्रष्ट जनों को यथार्थ मार्ग का फिर एक बार परिचय करवाती। हे मानव! तू कर विचार और अब बता कि कौन थी वह? ..5.. (*कौन थी वह* कविता से) कौन थी वह