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Parasram Arora
मुफलिसी की दास्तान तोलम्बी है पुरानी है पर किरदार इसका गुमनाम होता है जिंदगी से ज़ो ता उम्र ज़िदोज़हद कर सकता है जीत का सहरा उसी के सर चढ़ता है जिंदिगी एक ग़ुस्सेल घोड़े की तरह है आदतन वो बेलगाम होता है हर किसी को जिसे मशवरे देने की आदत है उसी के दीये के नीचे अंधेरा होता है ©Parasram Arora दीया तलें अंधेरा...
Deepak "New Fly of Life"
कर लो जुल्फ़ों में कैद हमें तुम! हम भी होना चाहते हैं! भटक न जाएँ उससे पहले! तेरी जुल्फ़ों में खोना चाहते हैं! ©Deepak Bisht #जुल्फ़ों तले
Sumit Mgr
रोना जब आता है तब तु आएगी और तेरे कांधे पे सर रख कर जी भर के रो लूंगा इसी उम्मीद पे आज भी आंसू को पलकों तले सजाएं बैठा हूं पलकों तले सजाएं
Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
हर तरफ कातिलों के मंजर है सबके सब हो गये दुष्ट बंदर है दिख न रही है अब कोई राह, सब तरफ ही भरे हुए समंदर है कैसे अब कोई रास्ता पार करू, सबने शूल रखे हृदय के अंदर है किसी को यहां में क्या दोष दू पहले खुद के दिल मे झांक लू, ख़ुद में न हो रहे कहीं तंत्र-मंत्र है दूसरों की ओट में तू साखी, खुद का अँधेरा भूल न जाना दीये तले भी होते अंधे जितेंद्र है दीये तले अंधेरे को दूर करना है बनना तुझे रोशनी का कलंदर है दिल से विजय दीये तले अंधेरा
Parasram Arora
मै तो हूँ मात्र दीये की लौ मुझे तो जलना है भभकना है और एक दिन बुझना है मै नहीं जानती ये जलने भभकने की ऊर्जा मुझमे आती कहाँ से है और मै ये भी नहीं जानती मेरी नियति मे सिर्फ जलना ही क्यों लिखा है? लेकिन मै इतना तो स्पष्ट रूप से जान गई हूँ क़ि दीये तले तो केवल अंधेरा ही अंधेरा है #दिया तले अंधेरा
Vikas sharma
इल्म है कि ...ये वफ़ा सा है सुकूँ... इस मन से ज़रा ख़फ़ा सा है चेहरा , आवाज़, मुलाक़ात अब ख़्वाब सा है दौर ये पुराना लगता , कभी यहाँ गुजरा सा है इतनी जल्दी न दफ़नाओ, ज़रा देख तो लो किस बोझ तले , वो अब भी दबा सा है तराशा इतना की, कुछ खुद का रहा ही नही फिर कहते है आजकल, वो कुछ जुदा सा है अक्स ढूढ़ते है बाहर ...जाने कहाँ लोग ग़र अंदर नही इश्क़ तो, सब हवा सा है कदम कदम पे छाव.. इस भरी दुपहरी में अंदेशा तो.... किसी गहरी साज़िश का है राख़ है कि ..चमक सी रही है अब भी कोई अरमान ..अभी अभी जला सा है @विकास ©Vikas sharma राख तले अरमान
Parasram Arora
मैं तों मात्र लौ हूँ एक दीये की मुझे तों बस जलना हैं. भभकना हैं और बुझ जाना हैं मैं नहीं जानती मेरी नियति मे सिर्फ जलना ही क्यों. लिखा हैं मैं तों यह भी नहीं जानती क़ि मुझमे ये जलने की. अपार ऊर्जा आती कहाँ से हैं जबकि जिस दीये की. मैं लौ हूँ उस दीये तले घना अंधेरा हैं ©Parasram Arora दीया तले अंधेरा