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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

नाभिं॑ य॒ज्ञानां॒ सद॑नं रयी॒णां म॒हामा॑हा॒वम॒भि सं न॑वन्त। 
वै॒श्वा॒न॒रं र॒थ्य॑मध्व॒राणां॑ य॒ज्ञस्य॑ के॒तुं ज॑नयन्त दे॒वाः ॥

पद पाठ
नाभि॑म्। य॒ज्ञाना॑म्। सद॑नम्। र॒यी॒णाम्। म॒हाम्। आ॒ऽहा॒वम्। अ॒भि। सम्। न॒व॒न्त॒। वै॒श्वा॒न॒रम्। र॒थ्य॑म्। अ॒ध्व॒राणा॑म्। य॒ज्ञस्य॑। के॒तुम्। ज॒न॒य॒न्त॒। दे॒वाः ॥

हे मनुष्यो ! (देवाः) विद्वान् जन जिस (यज्ञानाम्) सत्यक्रियामय यज्ञों के (नाभिम्) बीच के भाग को और (महाम्) महान् (रयीणाम्) धनों के (सदनम्) स्थान और (आहावम्) चारों ओर से स्पर्द्धा करने योग्य (वैश्वानरम्) सर्वत्र प्रकाशमान (रथ्यम्) रथको बहाने के योग्य (अध्वराणाम्) नहीं नष्ट करने योग्यों के (यज्ञस्य) प्राप्त होने योग्य व्यवहार के (केतुम्) जनानेवाले को (सम्, जनयन्त) अच्छे प्रकार प्रकट करते हैं और (नवन्त) स्तुति करते हैं उसकी आप लोग (अभि) सम्मुख प्रशंसा करिये ॥

Hey man  (Deva:) scholarly jana jis (yagyanam) Satyakramayya Yajna's (naamvam) the middle part and (maham) great (ryamna) of wealth (saddhanam) place and (ahavam) from all around (vivanaram) sarvatra prakashmana (rathayam)  ) Do not destroy the chariot worthy of (excruciating) (Yajnasya) worthy of (Yajnasya) attainable behavior (Ketum) to the person who is good (Sama, Janyant), and praises (Navant) his people (Abhi) before him.  Praise

( ऋग्वेद ६.७.२ ) #ऋग्वेद #मंत्र #वेद #यज्ञ

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

शि॒वस्त्व॑ष्टरि॒हा ग॑हि वि॒भुः पोष॑ उ॒त त्मना॑। 
य॒ज्ञेय॑ज्ञे न॒ उद॑व ॥

पद पाठ
शि॒वः। त्व॒ष्टः॒। इ॒ह। आ। ग॒हि॒। वि॒ऽभुः। पोषे॑। उ॒त। त्मना॑। य॒ज्ञेऽय॑ज्ञे। नः॒। उत्। अ॒व॒ ॥

हे (त्वष्टः) सब दुःखों के नाश करनेवाले राजन् ! (इह) इस स्थल में (पोषे) कि जिसमें पुष्ट हों (विभुः) व्यापक परमेश्वर के सदृश (शिवः) मङ्गलकारी होते हुए (त्मना) आत्मा से (यज्ञेयज्ञे) मेल करने योग्य व्यवहार में (आ, गहि) प्राप्त होओ (उत) और (नः) हम लोगों की (उत्, अव) उत्तम प्रकार रक्षा करो ॥

Hey (urgent) Rajan, the destroyer of all sorrows!  (Ih) in this place (Poseh) that in which it is confirmed (Vibhu )a) being like God (Shiva:) Comprehensive (Tamna) Receive (Aa, Gahi) from soul (Yajnayyagnye) in a matchable behavior and  (Nah) Protect us (Utt, Ava) in the best way.

( ऋग्वेद ५.५.९ ) #ऋग्वेद #मंत्र #वेद #शिव #कल्याणकारी #शुभम्

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

अ॒ध्व॒र्युभिः॑ प॒ञ्चभिः॑ स॒प्त विप्राः॑ प्रि॒यं र॑क्षन्ते॒ निहि॑तं प॒दं वेः।
 प्राञ्चो॑ मदन्त्यु॒क्षणो॑ अजु॒र्या दे॒वा दे॒वाना॒मनु॒ हि व्र॒ता गुः॥

पद पाठ
अ॒ध्व॒र्युऽभिः॑। प॒ञ्चऽभिः॑। स॒प्त। विप्राः॑। प्रि॒यम्। र॒क्ष॒न्ते॒। निऽहि॑तम्। प॒दम्। वेः। प्राञ्चः॑। म॒द॒न्ति॒। उ॒क्षणः॑। अ॒जु॒र्याः। दे॒वाः। दे॒वाना॑म्। अनु॑। हि। व्र॒ता। गुरिति॒ गुः॥


जो (प्राञ्चः) प्रकृष्ट विद्यायुक्त (उक्षणः) सुख फैलानेहारे (अजुर्य्याः) शरीर आत्मा की जीर्ण अवस्था से रहित (देवाः) विद्वान् लोग (हि) ही (देवानाम्) विद्वानों के (व्रता) सत्यभाषणादि उत्तम स्वभावों को (अनु, गुः) अनुकूलतापूर्वक प्राप्त हों वे (अध्वर्य्युभिः) यज्ञ रचनेवाले (पञ्चभिः) होता, अध्वर्यु, उद्गाता, ब्रह्मा और सभ्य इन पाँच ऋत्विजों और पत्नी यजमानों के साथ वर्त्तमान (सप्त) सात (विप्राः) बुद्धिमान् लोग (वेः) व्यापक परमेश्वर के (प्रियम्) प्रिय (निहितम्) स्थित (पदम्) प्राप्त करने योग्य स्वरूप की (रक्षन्ते) रक्षा करते हैं वे ही (मदन्ति) आनन्दित होते हैं ॥

Those who (Prancha:) Prakrit Vidyayukta (Utkāःa )h) bring forth happiness (Ajuryāyah:) body devoid of the old state of the soul (Deva:) The learned people (He) only (Devanām) Scholars (Vrata) Satyabhāsādī best dispositions (Anu, Guः) are favorably received  He (Adhvaryubhih) would have performed the Yajna (Panchabhih), Adhvaryu, Udgata, Brahma and Siddha along with these five Ritjis and wife Yajmanas present (sapta) seven (vipraha) wise people (they:) situated (priyam) dear (nigam) of the wider God  (Padam) protect the attainable form (Rakshante), they (Madanti) rejoice.

( ऋग्वेद ३.७.७ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

आ ति॑ष्ठ॒ रथं॒ वृष॑णं॒ वृषा॑ ते सु॒तः सोम॒: परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि। 
यु॒क्त्वा वृष॑भ्यां वृषभ क्षिती॒नां हरि॑भ्यां याहि प्र॒वतोप॑ म॒द्रिक् ॥

पद पाठ
आ। ति॒ष्ठ॒। रथ॑म्। वृष॑णम्। वृषा॑। ते॒। सु॒तः। सोमः॑। परि॑ऽसिक्ता। मधू॑नि। यु॒क्त्वा। वृष॑ऽभ्याम्। वृ॒ष॒भ॒। क्षि॒ती॒नाम्। हरि॑ऽभ्याम्। या॒हि॒। प्र॒ऽवता॑। उप॑। म॒द्रिक् ॥

जो आहार-विहार से सोमादि ओषधियों के रस के सेवनेवाले, दीर्घ ब्रह्मचर्य्य, किये हुए शरीर और आत्मा के बल से युक्त राजजन बिजुली आदि पदार्थों के वेग से युक्त यानों को सिद्ध कर दण्ड से दुष्टों को निवारण कर न्याय से राज्य की रक्षा कराया करें, वे ही सुखी होते हैं ॥

Those who serve the juices of Somadi medicines, long brahmacharya, Rajjan Bijuli with the strength of the body and soul, with the speed of food, prove the evil of the wicked, and protect the state from justice,  They are happy

( ऋग्वेद १.१७७.३ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

त्रिर्नो॑ अश्विना दि॒व्यानि॑ भेष॒जा त्रिः पार्थि॑वानि॒ त्रिरु॑ दत्तम॒द्भ्यः । 
ओ॒मानं॑ शं॒योर्मम॑काय सू॒नवे॑ त्रि॒धातु॒ शर्म॑ वहतं शुभस्पती ॥

पद पाठ
त्रिः । नः॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । दि॒व्यानि॑ । भे॒ष॒जा । त्रिः । पार्थि॑वान् । त्रिः । ऊँ॒ इति॑ । द॒त्त॒म् । अ॒त्भ्यः । ओ॒मान॑म् । श॒म्योः । मम॑काय । सू॒नवे॑ । त्रि॒धातु॑ । शर्म॑ । व॒ह॒त॒म् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑॥

मनुष्यों को चाहिये कि जो जल और पृथिवी में उत्पन्न हुई रोग नष्ट करनेवाली औषधी हैं उनका एक दिन में तीन बार भोजन किया करें और अनेक धातुओं से युक्त काष्ठमय घर के समान यान को बना उसमें उत्तम-२ जव आदि औषधी स्थापन अग्नि के घर में अग्नि को काष्ठों से प्रज्वलित जल के घर में जलों को स्थापन भाफ के बल से यानों को चला व्यवहार के लिये देशदेशान्तरों को जा और वहां से आकर जल्दी अपने देश को प्राप्त हों इस प्रकार करने से बड़े-२ सुख प्राप्त होते हैं ॥

Humans should eat food that is a disease-destroying drug produced in water and earth three times in a day and make a vehicle like a wooden house with many metals, making the best medicine in it, setting fire in the house of fire.  Place the waters in the house of water ignited by wood, go abroad to the countries for the practice of running the vehicles with the help of force, and come from there and get to your country quickly, in this way, you get great happiness.

( ऋग्वेद १.३४.६ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

ए॒वा ते॑ अग्ने सुम॒तिं च॑का॒नो नवि॑ष्ठाय नव॒मं त्र॒सद॑स्युः।
 यो मे॒ गिर॑स्तुविजा॒तस्य॑ पू॒र्वीर्यु॒क्तेना॒भि त्र्य॑रुणो गृ॒णाति॑ ॥

पद पाठ
ए॒व। ते॒। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽम॒तिम्। च॒का॒नः। नवि॑ष्ठाय। न॒व॒मम्। त्र॒सद॑स्युः। यः। मे॒। गिरः॑। तु॒वि॒ऽजा॒तस्य॑। पू॒र्वीः। यु॒क्तेन॑। अ॒भि। त्रिऽअ॑रुणः। गृ॒णाति॑ ॥


हे विद्वन् ! आप और मैं जो हमारे समीप से गुणों के ग्रहण करने की इच्छा करता है, उसको हम दोनों विद्याग्रहण करावें ॥

Hey scholar!  Both of you and I, who wish to receive qualities from near us, should offer education to him.

( ऋग्वेद ५.२७.३ ) #ऋग्वेद #वेद #शिक्षा #मंत्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

म॒नु॒ष्वद॑ग्ने अङ्गिर॒स्वद॑ङ्गिरो ययाति॒वत्सद॑ने पूर्व॒वच्छु॑चे।
 अच्छ॑ या॒ह्या व॑हा॒ दैव्यं॒ जन॒मा सा॑दय ब॒र्हिषि॒ यक्षि॑ च प्रि॒यम् ॥

पद पाठ
म॒नु॒ष्वत्। अ॒ग्ने॒। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। अ॒ङ्गि॒रः॒। य॒या॒ति॒ऽवत्। सद॑ने। पू॒र्व॒ऽवत्। शु॒चे॒। अच्छ॑। या॒हि॒। आ। व॒ह॒। दैव्य॑म्। जन॑म्। आ। सा॒द॒य॒। ब॒र्हिषि॑। यक्षि॑। च॒। प्रि॒यम् ॥


हे (शुचे) पवित्र (अङ्गिरः) प्राण के समान धारण करनेवाले (अग्ने) विद्याओं से सर्वत्र व्याप्त सभाध्यक्ष ! आप (मनुष्वत्) मनुष्यों के जाने-आने के समान वा (अङ्गिरस्वत्) शरीरव्याप्त प्राणवायु के सदृश राज्यकर्म व्याप्त पुरुष के तुल्य वा (ययातिवत्) जैसे पुरुष यत्न के साथ कामों को सिद्ध करते कराते हैं वा (पूर्ववत्) जैसे उत्तम प्रतिष्ठावाले विद्वान् विद्या देनेवाले हैं, वैसे (प्रियम्) सबको प्रसन्न करनेहारे (दैव्यम्) विद्वानों में अति चतुर (जनम्) मनुष्य को (अच्छ) अच्छे प्रकार (आयाहि) प्राप्त हूजिये, उस मनुष्य को विद्या और धर्म की ओर (वह) प्राप्त कीजिये तथा (बर्हिषि) (सदने) उत्तम मोक्ष के साधन में (आसादय) स्थित और (यक्षि) वहाँ उसको प्रतिष्ठित कीजिये ॥ 

O (pure) Holy (Agirah), the Speaker of the pervading pervades from (Agni) disciplines, who are like life.  You (manvatva) like men come and go (aagirvatvat), like a person who is like a man of life (vyavrishvat).  , (Priyam) to please everyone (among the scholars), the very clever (janam) man should get (good) good kind (ayahi), get that man towards education and religion (he) and (barhishi) (sadhana)  ) Situated in the means of perfect salvation (Asadya) and (Yakshi) place it there.

( ऋग्वेद १.३१.१७ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #परमात्मा

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

हं॒साइ॑व श्रेणि॒शो यता॑नाः शु॒क्रा वसा॑नाः॒ स्वर॑वो न॒ आगुः॑।
 उ॒न्नी॒यमा॑नाः क॒विभिः॑ पु॒रस्ता॑द्दे॒वा दे॒वाना॒मपि॑ यन्ति॒ पाथः॑॥

पद पाठ
हं॒साःऽइ॑व। श्रे॒णि॒शः। यता॑नाः। शु॒क्राः। वसा॑नाः। स्वर॑वः। नः॒। आ। अ॒गुः॒। उ॒त्ऽनी॒यमा॑नाः। क॒विऽभिः॑। पु॒रस्ता॑त्। दे॒वाः। दे॒वाना॑म्। अपि॑। य॒न्ति॒। पाथः॑॥

 जो हंसों के तुल्य मिल के प्रयत्न से सबकी उन्नति कर अपने आप उन्नति को प्राप्त हुए आप्त सत्यवादियों के मार्ग में चल के पराक्रम बढ़ाते हैं, वे ही पूर्ण सुख को भोगते हैं ॥

Those who, by the efforts of the mill like the swans, advance their own progress and increase their power by walking in the path of the sentimentalists, they enjoy complete happiness.

( ऋग्वेद ३.८.९ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #हंश

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

बृ॒हत्स्वश्च॑न्द्र॒मम॑व॒द्यदु॒क्थ्य१॒॑मकृ॑ण्वत भि॒यसा॒ रोह॑णं दि॒वः।
 यन्मानु॑षप्रधना॒ इन्द्र॑मू॒तयः॒ स्व॑र्नृ॒षाचो॑ म॒रुतोऽम॑द॒न्ननु॑ ॥

पद पाठ
बृ॒हत्। स्वऽच॑न्द्रम्। अम॑ऽवत्। यत्। उ॒क्थ्य॑म्। अकृ॑ण्वत। भि॒यसा॑। रोह॑णम्। दि॒वः। यत्। मानु॑षऽप्रधनाः। इन्द्र॑म्। ऊ॒तयः॑। स्वः॑। नृ॒ऽसाचः॑। म॒रुतः॑। अम॑दन्। 
अनु॑ ॥

विद्याधन, राज्य, पराक्रम, बल वा पुरुषों की सहायता ये सब जिस धार्मिक विद्वान् मनुष्य को प्राप्त होते हैं, उसको उत्तम सुख उत्पन्न कराते हैं ॥

Vidyadhan/education, state, might, strength or the help of men, all these religious scholars, who get the man, make him happy.

( ऋग्वेद १.५२.९ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #सुख #ग्रहण

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

त्वमग्ने पुरुरूपो विशेविशे वयो दधासि प्रत्नथा पुरुष्टुत। 
पुरूण्यन्ना सहसा वि राजसि त्विषिः सा ते तित्विषाणस्य नाधृषे ॥

पद पाठ
त्वम्। अ॒ग्ने॒। पु॒रु॒ऽरूपः॑। वि॒शेऽवि॑शे। वयः॑। द॒धा॒सि॒। प्र॒त्नऽथा॑। पु॒रु॒ऽस्तु॒त॒। पु॒रूणि॑। अन्ना॑। सह॑सा। वि। रा॒ज॒सि॒। त्विषिः॑। सा। ते॒। ति॒त्वि॒षा॒णाय। न। आ॒ऽधृषे॑ ॥

हे मनुष्यो ! आप लोग जैसे अग्नि सब जगत् को धारण करता है, वैसे सब मनुष्यों को विद्या के प्रकाश में धारण करो ॥

Hey human! If you put a fire in the light of all the world, then all the humans hold in the light of Vidya.

( ऋग्वेद ५.८.५ ) #ऋग्वेद #वेद #मंत्र #यज्ञ #अग्नि #धारण #कर्म #विद्या #ज्योति #प्रचारण
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