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Deepali Singh
खुशियों का दीपक लिए गम हम मन में छुपा लिए नमी आँखों में दबाये रखे तो होठों पर मुस्कान खिले जियूँगी अब मैं हरदम ऐसे जैसे अब तक आ रही जीते तु भी जीले अब मन भर के जीले ये ज़िंदगी पल पल रे ©Deepali Singh दीपा का दीपक Happy Birthday Deepa
दीपक सिंह दिनकर
उसने मेरे जख्मो का कुछ यूं किया इलाज.. मरहम भी लगाया तो कांटो की नोक पर..।। दीपक सिंह दिनकर.
deepak singh
उसने एक दीपक जलाया,, उसने एक" दीपक" जलाया,,।। न उसने "उस दीपक "का दर्द समझा, न उसने" इस दीपक "का दर्द समझा,,।। दीपक सिंह,,,,, उसने एक दीपक जलाया,, उसने एक" दीपक" जलाया,,।। न उसने "उस दीपक "का दर्द समझा, न उसने" इस दीपक "का दर्द समझा,,।। दीपक सिंह,,,,,
deepak singh
Mihir Choudhary
तुमने तो हँस के पूछा था बोलो न कितना प्रेम है बोलो कैसे मैं बतलाता बोलो ना कैसे समझता जब अहसास समंदर होता है तो शब्द नही फिर मिलते हैं उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं बतलाता बोलो न कैसे दिखलाता बोलो न कैसे समझता तब भी हिसाब का कच्चा था अब भी हिसाब का कच्चा हूँ जो था वो ना मेरे बस का था अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं अब अंदर -अंदर सब जलता है लावा जैसा सा कुछ पलता है धीमे धीमे कुछ रिसता है कुछ टूट-टूट के पीसता है नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है धड़कन बिजली सा दौड़ता है अब बेहिसाब ये यादे है बस बेहिसाब ये चाहत है बोलो क्या वो प्रेम ही था बोलो न क्या ये प्रेम ही है मिहिर... बिरहा
Deepak singh meena
आज नजर अंदाज करने वाले लोग वेखबर है इस बात से, की आने वाले TIME मे ये हमारे हर अंदाज के दीवाने हो जायेगे,....!!! ©Deepak singh meena दीपक सिंह मीणा करौली
Rajesh rajak
सखियां करती फागुन की बातें, ये सखी,कैसे कटें ये तन्हा रातें, आ गया बसंत,दुख भए अनंत, दिन तो बीता प्रियतम की बाट जोहते, कैसे बीतें बैरन रातें, यार मिले कोई तलबगार,कसक मिटे मन की, राग मल्हार फगुआ गाए,प्रीत मिले न यौवन की, मन मतंग,करता है तंग,फीका सा लागे मोहे लाल रंग, हे कंत,कर बिरह का अंत,पुलक उठे मोरा अंग अंग,, फागुन का बिरह,
Shailendra Singh Yadav
तेरे बिन बहते अश्रुजल। गा रहे बिरह की एक गजल। प्रेम- प्रणय के प्रेम -भंवर में प्रेम -रस बरसाते हैं। कितने ग़मों सितम सह जाते हैं। तुम क्या जानो अपने दिल को कितना समझाते हैं। तुम क्या समझो तुम बिन कैसे रह पाते हैं। प्रेम ताप में तपे हुए तेरे बिन नहीं जीना है । बढ़ता जाता दर्दो गम पहले से ज्यादा दूना है रातें दिन कटते नहीं घर आंगन सूना है। चाहे हों कितने लाख सितम तेरे बिन नहीं रहना है। कवि:- शैलेन्द्र सिंह यादव #NojotoQuote शैलेन्द्र सिंह यादव की कविता प्रेम बिरह
Deepak Dixit
आसां नहीं है यूं किसी के इश्क़ में फना हो जाना,बड़ी मुश्किलों से इश्क़ नसीब होता है । #NojotoQuote #दीपक दीक्षित 'दीप "