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Arpit Mishra
उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा, मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा । मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ? अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही, साक्षी रहे सुन ये बचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मही । सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वधकरूँ, तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ । - मैथलीशरण गुप्त ©Arpit Mishra मैथलीशरण गुप्त
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#nojotohindi मैथलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित
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‘‘केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए। उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए॥’’ ~मैथलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त जी की जयंती की ढेरों शुभकामनायें