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Aniket Sen
कट गए वह पेड़, जिनकी हम पर छाया थी, बहुत जल्द दूर हो गए, जिनकी उम्र बकाया थी। अंधेरों से भरी दुनियाँ में वो, रोशनी का एक साया थी, जिसे हमने अपना समझा, वो धन कोई पराया थी। देखते रह गए हम जिसे, वो रेशम सी काया थी। जो ना रह कर भी साथ रही, वही हमारी माया थी। #माया #काया #पराया #उम्र #पेड़ #bestyqhindiquotes #yqdidi #ifyoulikeitthenletmeknow
teachershailesh
Shilpa Modi
उस काया की छाया को देखकर में विचलित होता रहा कहीं वो मेरी आंखो से ओझल न हो जाए मैं रात भर जागता रहा ©Shilpa Modi #काया की छाया
NG India
जो सतगुरू शरणी ना आवे । वे नर भाग्यहीन जग माँहीं, माया रागें गावें ।।टेर।। माया तो है छाया पुरूष की, कभी न स्थिर रह पावे । जो कोई उसके पीछे धावे, खाली हाथ रह जावे (1) माया कभी न संग निभावे, वक़्त पड़े बदलावे । जाते वक़्त दे ऐसी लातें, कभी न उठने पावे (2) जो कोई सतगुरू शरणी आवे, स्वामी उसे अपनावें । चार जन्म तक साथ निभा, अपने पद में पहुँचावे (3) ऐसे सच्चे संगी पा, जो उनसे दूर रहावे । उलटा पात्र भाग्यों का कर, वो उसको भरना चाहे (4) राधास्वामी परम पिता है सच्चा, सतगुरू तन प्रगटावें । दीन अंग जो शरणी आवे, उसको पार लगावें (5) *राधास्वामी* राधास्वामी प्रीति बानी-4-44 माया छाया एक सी ।
अद्वैतवेदान्तसमीक्षा
माया छाया एक सी, बिरला जानै कोय । भगता के पीछे फिरै , सनमुख भाजै सोय ।। धन सम्पत्ति रूपी माया और व्यक्ति की छाया को एक समान जानो । इनके रहस्य को विरला ज्ञानी ही जानता है । ये दोनों किसी की पकड़ में नहीं आती । इन दोनों चीजोँ से परे भागने वालों के पीछे पीछे अनुसरण करती हैं और इन दोनों को पकड़ने को भागने वालों के आगे आगे भागती है।कहा भी है--- बिनमांगेे मोती मील मांगे मीले न भीख माया =छाया एक समान
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नेहमी ज्ञानाची तहान असतो तो शिक्षक, नेहमी विदयार्थ्याची प्रगतीच पहातो तो शिक्षक, नेहमी ज्ञानाच्या अंजनाने प्रगल्भ करतो तो शिक्षक, नेहमीच घडतो अन घडवितो तो शिक्षक…… शिक्षक दिनाच्या शुभेच्छा...! - अतित मोरे नेहमी ज्ञानाची तहान असतो तो शिक्षक, नेहमी विदयार्थ्याची प्रगतीच पहातो तो शिक्षक, नेहमी ज्ञानाच्या अंजनाने प्रगल्भ करतो तो शिक्षक, नेहमीच घडत
sakshi yadav
चित्र सिर्फ माया है चरित्र ही असली कया है ©sakshi yadav #Barsaat #चित्र #चरित्र #माया #काया
HP
हे बहिर्मुखी, अन्तर्मुख हो! यह वास्तु जगत माया-निर्मित, काया में हमने क्या पाया! कुछ श्वास, चेतना, स्पन्दन, वैभव ने जिसको ललचाया!! क्षण भंगुर सिन्धु तरंगों सा, अस्थिर, उच्छ्रवास पुँज, जीवन! यह समय उधेड़ बुन करता कर्मों से नियति-सुदृढ़-जीवन!! कर्त्तव्य किया फल मिलने पर- पागल! फिर क्यों दुख हो, सुख हो? हे बहिर्मुखी, अन्तर्मुख हो! कलिका-संपुट में ओस-बिन्दु, कुछ क्षण भर का इतिहास लिए! जिसका मिट जाना ही परिचय- है स्निग्ध, मधुर मृदु ह्रास लिये!! पावस-रजनी, घनघोर घटा, झंझावातों का वेग प्रबल विद्युत अस्तित्व बता देती, पल में चमका कर छोर सबल!! स्मिति जैसी यह ज्योति लिए- मानव! जगती के सम्मुख हो! हे बहिर्मुखी, अन्तर्मुख हो!! काया में हमने क्या पाया