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Chandan Yadav
Archana Tiwari Tanuja
ग़ज़ल:- 22 22 22 22 22 2 हे बजरंगी द्वारे तेरे आये है, याचक बन खाली झोली फैलाये है। विपदा भारी छाई है ऐ हनुमंता, संकट हर लेकर बाबा अर्जी लाये है। हम अपराधी पर निर्बल है बाला जी, अतुलित बल के सागर हम सिर नाये है। संजीवन तुम बिन कोई नहि लायेगा, रघुनायक छवि हिय धर गाथा गाये है। अवगुण हम सबके मिट जाये सारे ही, घेरे दु:ख, रोगों के भीषण साये है। तांडव करते यम जीवन छति होती है, लाशों का पर्वत ये दिल दहलाये है। पीड़ा,चिंता हनुमत हर लो हम सब की, तनुजा विनती सुन नैना भर आये है।। ©ArchanaTiwari_Tanuja #hanumanjayanti 27/04/2021 हनुमान जयंती की आप सभी को शुभकामनाएं ईश्वर आप सभी की रक्षा करें...🙏🙏🙏 ग़ज़ल:- 22 22 22 22 22 2 हे बजर
Pramod Kumar
atrisheartfeelings
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥ सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥ तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥ तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥ अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥ जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥ सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥ कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥ प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ #atrisheartfeelings #ananttripathi #sundarkand #sunderkand #yqbaba #devotional तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन स
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 6 हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:- तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥ विभिषणके ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रामचन्द्रजी की सब कथा विभीषण से कही और अपना नाम बताया। प्रभु राम के नाम स्मरण से, दोनों के मन आनंदित हो जाते है:- परस्पर की बाते सुनते ही दोनों के शरीर रोमांचित हो गएऔर श्री रामचन्द्रजी का स्मरण आ जाने से दोनों आनंदमग्न हो गए ॥6॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम विभीषण हनुमानजी को अपनी स्थिति बताते है:- सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥ तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥ विभीषण कहते है की – हे हनुमानजी! हमारी रहनी हम कहते है सो सुनो। जैसे दांतों के बिचमें बिचारी जीभ रहती है,ऐसे हम इन राक्षसोंके बिच में रहते है॥ हे तात! वे सूर्यकुल के नाथ (रघुनाथ), मुझको अनाथ जानकर कभी कृपा करेंगे? बिना भगवान् की कृपा के सत्पुरुषों का संग नहीं मिलता:- तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥ अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥ जिससे प्रभु कृपा करे ऐसा साधन तो मेरे है नहीं।क्योंकि मेरा शरीर तो तमोगुणी राक्षस है,और न कोई प्रभुके चरण कमलों में मेरे मन की प्रीति है॥ परन्तु हे हनुमानजी, अब मुझको इस बात का पक्का भरोसा हो गया है कि, भगवान मुझ पर अवश्य कृपा करेंगे।क्योंकि भगवान की कृपा बिना सत्पुरुषों का मिलाप नहीं होता॥ हनुमानजी द्वारा प्रभु श्री राम के गुणों का वर्णन:- प्रभु श्री राम भक्तों पर सदा दया करते है जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥ सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥ रामचन्द्रजी ने मुझ पर कृपा की है इसी से आपने आकर मुझको दर्शन दिए है॥ विभीषणके यह वचन सुनकर हनुमानजीने कहा कि, हे विभीषण! सुनो,प्रभु की यह रीती ही है की वे सेवक पर सदा परमप्रीति किया करते है॥ हनुमानजी कहते है, श्री राम ने वानरों पर भी कृपा की है:- कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥ प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ हनुमानजी कहते है की कहो मै कौन सा कुलीन पुरुष हूँ।हमारी जाति देखो (चंचल वानर की),जो महाचंचल और सब प्रकार से हीन गिनी जाती है॥ जो कोई पुरुष प्रातःकाल हमारा (बंदरों का) नाम ले लेवे,तो उसे उस दिन खाने को भोजन नहीं मिलता॥ शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः। शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र- ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये। शनि देव का एकाक्षरी मंत्र- ऊँ शं शनैश्चाराय नमः। शनि देव जी का गायत्री मंत्र- ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्। विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 255 से 265 नाम 255 सिद्धिसाधनः सिद्धि के साधक 256 वृषाही जिनमे वृष(धर्म) जोकि अहः (दिन) है वो स्थित है 257 वृषभः जो भक्तों के लिए इच्छित वस्तुओं की वर्षा करते हैं 258 विष्णुः सब और व्याप्त रहने वाले 259 वृषपर्वा धर्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी 260 वृषोदरः जिनका उदर मानो प्रजा की वर्षा करता है 261 वर्धनः बढ़ाने और पालना करने वाले 262 वर्धमानः जो प्रपंचरूप से बढ़ते हैं 263 विविक्तः बढ़ते हुए भी पृथक ही रहते हैं 264 श्रुतिसागरः जिनमे समुद्र के सामान श्रुतियाँ रखी हुई हैं 265 सुभुजः जिनकी जगत की रक्षा करने वाली भुजाएं अति सुन्दर हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 6 हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:- तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्रा
Vikas Sharma Shivaaya'
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है। शत्रु और रोगों पर विजय- ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। "सुन्दरकांड" सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ, 60 दोहे, 6 छंद और 3 श्लोक है। सुन्दरकांड में 5 से 7 चौपाइयों के बाद 1 दोहा आता है। हनुमानजी वानरों को समझाते है- जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥ जाम्बवान के (सुन्दर, सुहावने) वचन सुन कर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे और हनुमानजी ने कहा की – हे भाइयो!आप लोग कन्द, मूल व फल खाकर समय बिताना, औरतब तक मेरी राह देखना, जब तक कि मैं सीताजी का पता लगाकर लौट ना आऊँ॥1॥ श्रीराम का कार्य करने पर मन को ख़ुशी मिलती है- जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥ जब मै सीताजीको देखकर लौट आऊंगा,तब कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥यह कहकर और सबको नमस्कार करके,रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर,प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले 2॥ हनुमानजी ने एक पहाड़ पर भगवान् श्रीराम का स्मरण किया- सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥ समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। हनुमान् जी खेल से ही कूद कर उसके ऊपर चढ़ गए॥ फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके,बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥ हनुमानजी, श्रीराम के बाण जैसे तेज़ गति से, लंका की ओर जाते है- जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥ जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥ जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे,वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है,ऐसे हनुमानजी वहा से लंका की ओर चले॥ मैनाक पर्वत का प्रसंग: समुद्र ने मैनाक पर्वत को हनुमानजी की सेवा के लिए भेजा- जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥ समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की –हे मैनाक, तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो,इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो,॥ मैनाक पर्वत हनुमानजी से विश्राम करने के लिए कहता है- सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब। कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥ समुद्रके वचन कानो में पड़ते ही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत ऊपर को उठ गया,जिससे हनुमानजी उसपर बैठकर थोड़ी देर आराम कर सके और हनुमान जी के पास आकर,वारंवार हाथ जोड़कर, उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥ 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता ह
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता है इसलिए इसकी पूंछ में तेल से भीगे हुए कपडे लपेट कर आग लगा दो ॥24॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी की पूँछ में राक्षसों द्वारा आग लगाने का प्रसंग रावण हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का हुक्म देता है पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥ जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥1॥ जब यह वानर पूंछ हीन होकर (बिना पूँछ का होकर) अपने मालिक के पास जायेगा,तब अपने स्वामी को यह ले आएगा॥इस वानर ने जिसकी अतुलित बढाई की है,भला उसकी प्रभुता को मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है?॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगाने की तैयारी करते है बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥ जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥2॥ रावन के ये वचन सुनकर हनुमानजी मन में मुस्कुराए और मन में सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है क्योंकि इसके मुंह से रामचन्द्रजी के आने का समाचार स्वयं निकल गया॥तुलसीदास जी कहते है कि वे राक्षस लोग रावण के वचन सुनकर वही तैयारी करने लगे अर्थात तेल से भिगो भिगोकर कपडे उनकी पूंछ में लपेटने लगे॥ हनुमानजी पूँछ लम्बी बढ़ा देते है रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥ कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥3॥ उस समय हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी कि जिसको लपेटने के लिये नगरी में कपडा, घी व तेल कुछ भी बाकी न रहा॥नगर के जो लोग तमाशा देखने को वहां आये थे,वे सब बहुत हँसते हैं॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगा देते है बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥ पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता॥4॥ अनेक ढोल बज रहे हे, सब लोग ताली दे रहे हैं,इस तरह हनुमानजी को नगरी में सर्वत्र फिरा कर फिर उनकी पूंछमें आग लगा दी॥हनुमानजी ने जब पूंछ में आग जलती देखी तब उन्होने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥ हनुमानजी छोटा रूप धरकर बंधन से छूट जाते है निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं॥5॥ और बंधन से निकल कर पीछे सोने की अटारियों पर चढ़ गए,जिसको देखते ही तमाम राक्षसों की स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥ आगे शनिवार को ...., विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 933 से 944 नाम 933 अनन्तश्रीः जिनकी श्री अपरिमित है 934 जितमन्युः जिन्होंने मन्यु अर्थात क्रोध को जीता है 935 भयापहः पुरुषों का संस्कारजन्य भय नष्ट करने वाले हैं 936 चतुरश्रः न्याययुक्त 937 गभीरात्मा जिनका मन गंभीर है 938 विदिशः जो विविध प्रकार के फल देते हैं 939 व्यादिशः इन्द्रादि को विविध प्रकार की आज्ञा देने वाले हैं 940 दिशः सबको उनके कर्मों का फल देने वाले हैं 941 अनादिः जिनका कोई आदि नहीं है 942 भूर्भूवः भूमि के भी आधार है 943 लक्ष्मीः पृथ्वी की लक्ष्मी अर्थात शोभा हैं 944 सुवीरः जो विविध प्रकार से सुन्दर स्फुरण करते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता