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Masoom Barzish(Sheikh Sahab)
मेरे अल्लाह ये आरज़ू है मेरी कास पूरा मेरे दिल का अरमान हो आदमी-आदमी से मोहब्बत करे चाहे हिन्दू हो चाहे मुसलमान हो काबीले कद्र है हर सरीफ आदमी चाहे हिन्दू हो चाहे मुसलमान हो पेस आओ सराफत से एकलाख से आपके घर कोई मेहमान हो आदमी-आदमी से मोहब्बत करे चाहे हिन्दू हो चाहे मुसलमान हो मेरे मौला ये मासूम की है आरज़ू यू फरात और गंगा का संगम रहे एक ही हाथ में तेरी गीता रहे एक ही हाथ में तेरा कुरआन हो आदमी-आदमी से मोहब्बत करे चाहे हिन्दू हो चाहे मुसलमान हो Masoom Barzish प्यारी सी गज़ल सभी दोस्तों के नाम अच्छी लगे तो हौसला अफजाई जरूर करें
Sarvesh kumar kashyap
Anshul Pal
ग़ज़ल आज उसका ख़त मिला और तो कुछ भी नहीं, थोड़ा सा ये दिल दुखा और तो कुछ भी नहीं। दोस्तों के हाथों में जब दिखा खंज़र तो मैं, था रक़ीबों से ख़फ़ा और तो कुछ भी नहीं। चाहे चारासाज़ों को जितना भी तुम लो बुला, दर्द की वो ही दवा और तो कुछ भी नहीं। रु-ए-ताबां देखकर इतना ही जाना फ़क़त, बस निग़ाहों को सज़ा और तो कुछ भी नहीं। बेदिली दुनिया में यां बेमुरव्वत शक्स भी, चाहता है बस वफ़ा और तो कुछ भी नहीं। हाल-ए-दिल कुछ यूँ बयाँ हो गया के ख़त पे बस, चार अश्क़ों के सिवा और तो कुछ भी नहीं। मैंने कब चाहा वो चाहे मुझे मेरी तरह, बस वो दिख जाए ज़रा और तो कुछ भी नहीं। चल रही साँसें मगर ज़िन्दगी ये थम गई, हिज़्र की ऐसी सज़ा और तो कुछ भी नहीं। दूर होकर भी न थी दूरियाँ जब दरमियाँ, पास होकर फासला और तो कुछ भी नहीं। इश्क़ है मुझसे ये मालूम गैरों से हुआ, है फ़क़त इतना गिला और तो कुछ भी नहीं। मैंने माँगे थे कहाँ चाँद-ओ-तारे कभी, वो मिले मुझको ख़ुदा और तो कुछ भी नहीं। इत्तफाकन सच बयाँ हो गया महफ़िल में 'रण'', इतनी सी अपनी ख़ता और तो कुछ भी नहीं। पूर्णतया स्वरचित ,स्वप्रमाणित,मौलिक रचना,सर्वाधिकार सुरक्षित अंशुल पाल 'रण' जीरकपुर (मोहाली) ©Anshul Pal अगर आपको ग़ज़ल अच्छी लगे तो शेयर और लाइक और फॉलो करके मेरी हौसला अफजाई अवश्य करें,🙏🙏🙏