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Rumaisa

मुझे बुरा नहीं चीढ़ आता है, जब कोई 
औरत, सेक्स वर्कर को वैश्या कह कर बोलती है.
उनके काम को बेजात समझकर गाली देती है.

Blouse की हूक गर खोलने की नौबत आती है, 
 तो समूचे समाज को सोचने की जरूरत है.

कब तलक हूक, ब्लाउज और चोली के पीछे रहोगे
कभी तो असल घिनौने समाज का चेहरा दिखे.

©Rumaisa #वेश्यावृत्ति #smaaj #Soch #prostitute

Arpit Mishra

भारत भारती #Poetry

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हां! आज शिक्षा मार्ग भी संकीर्ण होकर क्लिष्ट है,
कुलपति सहित उन गुरुकुलो का ध्यान ही अवशिष्ट है।
बिकने लगी विद्या यहां अब , शक्ति हो तो क्रय करो ,
यदि शुल्क आदि न दे सको तो मूर्ख रहकर ही मरो ।










।

©Arpit Mishra भारत भारती

Vishakha Tripathi

भारत भारती #कविता

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Gal Divya

भारत #fourlinepoetry #भारत्

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#FourLinePoetry इन पुराने खंडर मे इतिहास बोलता है
उन‌ विर योध्धाओ के बलिदन बोलते है
ये मेरी देश कि भुमि कि बात है
यहा सबके दिलो मे भारत बसता है

©Gal Divya भारत

#fourlinepoetry #भारत्

दिलीप कश्यप कलमकार

एक भारत श्रेष्ठ भारत यात्रा संस्कार भारती #Society

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Hanuman Bishnoi

भारत के भरत वीरो #कविता

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Ajay Kumar Vishwakarma

जय भारत जय मां भारती

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सिद्धार्थ गौतम

जय भारत जय माँ भारती। #thought

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bharat quotes  चलो इस स्वतंत्रता दिवस पर 
एक संकल्प ले
अपने देश को केवल भारत 
नाम से ही संबोधित करें।
कोई और विदेशी नाम ही नही। 
केवल भारत।


एक ही नारा एक ही नाम
भारत देश हमारा महान। 
एक ही देश एक ही नाम
हमारा भारत रहें महान। 
भारत देश रहें महान
~सिद्धार्थ (Robiinn)~ जय भारत जय माँ भारती।

Sunil Singh

# नया भारत।जय मां भारती। #जानकारी

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Vishakha Tripathi

भारत भारती | मैथिलीशरण गुप्त जी #कविता

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●भारत भारती (अतीत खंड से)●


चर्चा हमारी भी कभी संसार में सर्वत्र थी,
वह सद्गुणों की कीर्ति मानो एक और कलत्र थी।
इस दुर्दशा का स्वप्न में भी क्या हमें कुछ ध्यान था?
क्या इस पतन ही को हमारा वह अतुल उत्थान था?
उन्नत रहा होगा कभी जो हो रहा अवनत अभी,
जो हो रहा अवनत अभी उन्नत रहा होगा कभी।
हँसते प्रथम जो पद्य हैं तम-पंक में फँसते वही।।

उन्नति तथा अवनति प्रकृति का नियम एक अखण्ड है,
चढ़ता प्रथम जो व्योम में गिरता वही मार्तण्ड है।
अतएव अवनति ही हमारी कह रही उन्नति कला,
उत्थान ही जिसका नहीं उसका पतन हो क्या भला?

होगा समुन्नति के अनन्तर सोच अवनति का नहीं,
हाँ सोच तो है जो किसी की फिर न हो उन्नति कहीं।
चिंता नहीं जो व्योम विस्तृत चन्द्रिका का ह्रास हो,
चिंता तभी है जब न उसका फिर नवीन विकास हो।।

है ठीक ऐसी ही दशा हत-भाग्य भारतवर्ष की,
कब से इतिश्री हो चुकी इसके अखिल उत्कर्ष की।
पर सोच है केवल यही वह नित्य गिरता ही गया,
जब से फिरा है दैव इससे नित्य फिरता ही गया।।

यह नियम है उद्यान में पककर गिरे पत्ते जहाँ,
प्रकटित हुए पीछे उन्हीं के लहलहे पल्लव वहाँ।
पर हाय! इस उद्यान का कुछ दूसरा ही हाल है,
पतझड़ कहें या सूखना कायापलट या काल है?

                                               ~मैथिलीशरण गुप्त जी भारत भारती | मैथिलीशरण गुप्त जी
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