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SilentGoutam
Anshul Yadav
V Singh KyS
मेरे पास अब सिर्फ कागज के तीर है और जब भी कोई तीर चलता है, तो वो पानी नहीं मेरा लहू मांगता है। विद्रोह
somnath gawade
साहेबांची 'उपद्रवी' कृती वाढली की, कर्मचारी 'विद्रोह' वृत्ती कडे वळू लागतात. #विद्रोह
Author Harsh Ranjan
पेट भारी होता है! पहली बार एक गर्भवती ने ये बोला था, उससे पहले खास कर कि मर्दों को ऐसा लगता था कि पेट और परिवार दुनिया की दो सबसे बड़ी प्रेरणाएं हैं। मैंने लंबे रास्ते पर गौर किया हरेक के पैर से कुछ पेट बंधे हैं। अब मुझे लगता है कि पेट परंपरा के जूतों से भी भारी है। शौक, जज्बे और जोश की, कुछ कर गुजरने के सोच की ये राहें अब सफर के लिहाज से ठंडी हैं। यहाँ अब कुछ बड़ी दुकानें और कुछ रईस लोगों की मंडी हैं, यहाँ के समान शोपीस के लिए उत्तम हैं, जिन्हें चखा जा सके वो प्रसाद से कहाँ कम हैं! मुझे पता है कि चम्मच बेचकर मैं वहाँ जा नहीं सकता, सफर का लती हूँ सो निकल गया, मेरे पेट में सिर्फ चलने की मंशा जलती है, कुछ नफ़रतें, कुछ चाहतें बेरोक-टोक मेरी नसों में चलती हैं। मेरे कानों में एक साधु की बात गूंजती है, कुछ न पाने का वैराग्य, कुछ न खोने की निश्चिन्तता का भाव इंसान को अलग राह मोड़ देता है उसका छिटक जाना कल-पुर्जों की भीड़ से एक तंत्र को बीचो-बीच तोड़ देता है। विद्रोह