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Bharat Bhushan pathak
इशारों में,हुआ करती,यहाँ जब भी, मुलाकातें। मुहब्बत में ,सुनो यारों,लगे लंबी,बड़ी रातें।। दिलों में चैन ना होता,नहीं कुछ है, लगे अच्छा, नहीं करना,कभी भूले,किसी से प्यार की बातें।।१ बला है ये ,बचो इससे,कहीं तुम ये ,नहीं,कहना। चले आओ,यहाँ दौड़े,नहीं अब दूर है रहना।। करो भूले,नहीं वादा,रहोगे साथ में हरदम करेगा जख्म ये गहरा,मुसीबत है, इसे सहना।।२ ©Bharat Bhushan pathak विधाता छंद के प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है ; 14,14 मात्रा पर यति होती है ; 1, 8, 15, 22 वीं मात्राएँ लघु 1 होती हैं। विधाता छंद विधा
NEERAJ SIINGH
प्यार भी तो आखिर उस चेहरे से किया था सनम इसमें आईने का क्या दोष वो तो हर पल सच्चा प्यार दिखाता हैं बस आईना दिल तक नहीं पहुँच पाता वरना वहां भी इश्क़ कितना हैं वो भी अक्स में बतला था.... मात्राएँ इधर उधर हों तो जरूर बताएं🙏🏻 #yqdidi #yqbaba #yqhindi #yqhindi #yq Pic credit: Google #YourQuoteAndMine Collaborating with Nam
Navonmeshi_Raaj
#दोहा-१ जब तू अटारी आवै, मनवा खूब हर्षाय| नैन मोह लियो गोरी, निंदिया गयीं भुलाय| ✍-राजकुमारी मात्रिक अर्धसम छंद "दोहा".....चार चरण...विषम चरणों(१,३)में १३-१३मात्राएँ, सम चरणों(२,४)में ११-११ मात्राएँ,सम चरणों के अंत में गुरु और लघु हो
Bharat Bhushan pathak
सरल नहीं यह काम,गगन तक जाना। बहुत दूर है चाँद,कठिन है पाना।। दिखता नभ जब चाँद,जगे तब तारे। चाँद तोड़ना चाह,स्वप्न बस प्यारे।। ©Bharat Bhushan pathak #udaan विधान-हंसगति छंद-कुल २० मात्राएँ प्रथम चरण दोहे के सम चरण की भांति यानि-११मात्रा-विभाजन- अष्टकल-त्रिकल तथा दूसरा चरण-९ मात्रा,मात्रा
entertainment intertenment&intertenment
तुम तो हमसे बेखबर एसे ना थे.. दिल के दुश्मन थे मगर ऐसे ना थे! तुम ना थे तो जिंदगी बेरंग थी.. रात- दिन शाम- ओ- शहर ऐसे ना थे! मंजिले दुश्वार थी मगर.. रास्ते और हमसफ़र ऐसे ना थे! अब तो हर खिड़की में चांद रौशन है.. शायद इस बस्ती में ऐसे घर ना थे! तेरे दर से उठकर ऐसी हालत हुई.. कल तक हम दर बदर ऐसे ना थे! दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ पर कुछ यादें कभी पीछा छोड़ती ही नहीं 💔 जी मात्राएँ इधर उधर हों तो जरूर 🙏🏻😊😊 Pic credit: Google #yqdi
कवि राहुल पाल 🔵
((( विधा - कुण्डलिया=दोहा+रोला ))) *************** मानवता के नाम पर,है कुछ मानव शेष ! मानव अब दानव हुए,है यह बात विशेष !! है यह बात विशेष,पशु बेबस औ लाचार ! जीव दया कीजिये,अपनाये सद आचार ! जीवन महत्व सतोल,कर्म,धर्म व निष्पक्षता ! जीव-जीव आधार,मानव मूल मानवता !! ************** लेखक- कवि राहुल पाल पूर्णतया मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित ((( विधा के बारे में कैप्शन में पढ़े ))) ©कवि राहुल पाल विधा- कुण्डलिया विवरण - कुंडलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है। इस छंद के ६ चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में २४ मात्राएँ होती है। इसे
साहस
नाड़ी पर काबू हो जो, हो जाये बत्ती गुल। गाड़ी पर घूम आए तो,हवा पाए रत्ती धूल।। हिन्दी की विभिन्न काव्य विधाओं में "दोहा" एक विशिष्ठ स्थान रखता है। दो पंक्तियों में एक पूर्ण विचार प्रस्तुत कर देने की क्षमता के चलते यह वि
Author kunal
प्रेमी_मन को उजागर देखा है लज्जा से टप- टप गिरते बूंदों में एक छुपा अरमान देखा है प्रेम में पागल राधा और मीरा की तड़पन को समझा है रासलीला में लीन गोपियों की धड़कते धड़कन को पढ़ा है अपनी प्रेयसी के लिए खुद को लिखा है हां मैने भी प्रेम में मुग्ध हो एक दोहा लिखा है। हिन्दी की विभिन्न काव्य विधाओं में "दोहा" एक विशिष्ठ स्थान रखता है। दो पंक्तियों में एक पूर्ण विचार प्रस्तुत कर देने की क्षमता के चलते यह वि
A J
यह किस्सा प्रेम का ,उल्टी याकी रीत जग से बैर करा देवे, किसी एक की प्रीत हिन्दी की विभिन्न काव्य विधाओं में "दोहा" एक विशिष्ठ स्थान रखता है। दो पंक्तियों में एक पूर्ण विचार प्रस्तुत कर देने की क्षमता के चलते यह वि
kavi manish mann
मन के मंदिर में सदा, रहे प्रीत का वास। क्रोध नहीं झलके कभी, ना हो सत्यानाश। हिन्दी की विभिन्न काव्य विधाओं में "दोहा" एक विशिष्ठ स्थान रखता है। दो पंक्तियों में एक पूर्ण विचार प्रस्तुत कर देने की क्षमता के चलते यह वि