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Shrikant Agrahari
अनुशंसा !.....अनुशंसा !........ हे ! प्रकृति अनुशंसा !!............ हे ! भद्रे मेरी अपरिवर्तित भूल... कदाचित क्षमा का पात्र नही....... स्नेहिल तृष्णा अभिभूत सा...... यद्यपि उद्देश्य संताप नही........ पुण्य पवित्र उर समतल सा...... किञ्चित मात्र भी संदेह नही...... अनुशंसा !.....अनुशंसा !......... हे ! प्रकृति अनुशंसा !!............ अध्यात्म बिहीन मन शंका सा... प्राण हीन प्राणी अंतः सा..... निष्ठा पर क्यूँ कोप लगा........ क्या अनुशंसा का पात्र नही...... हृदय अंत क्यूँ, फफक पड़े...... क्या अनंत तरंग मर्याद नही...... अनुशंसा !......अनुशंसा !........ हे ! वसुन्धरे अनुशंसा !!.......... ©श्री...✍🏻 अनुशंसा !.....अनुशंसा !........ हे ! प्रकृति अनुशंसा !!............ हे ! भद्रे मेरी अपरिवर्तित भूल... कदाचित क्षमा का पात्र नही....... स्नेह
Mahfuz nisar
विषमृत् हर चीज़ तैयार खाने के रूप में हमें मिलती है, जो कभी तो स्वादिष्ट होती है,कभी नहीं, दोनों स्थिति में हम इंतज़ार करते हैं, बिना मेहनत ठीक ठाक स्वाद मिलने का, जबकि पकाने वाले को सब कुछ पता होता है, कब कैसे कौन सा स्वाद उड़ेलना है, हमारे दिमाग़ को ऐसी है एक खेप दुनिया में मिल रही है, और हम अपरिवर्तित हैं,इंतज़ार करते हुए, मन के अनुरूप स्वाद के तलाश में, हो सकता है अगला पतिला अमृत का चढ़ा हो, और ये भी हो सकता है कि अगला विष हो। ✍महफूज़ विषमृत् हर चीज़ तैयार खाने के रूप में हमें मिलती है, जो कभी तो स्वादिष्ट होती है,कभी नहीं, दोनों स्थिति में हम इंतज़ार करते हैं, बिना मेहनत
Divyanshu Pathak
भारत सम्पन्न देश था। द्वितीय विश्व युद्घ के बाद यूरोप दरिद्र हो चुका था। अंग्रेजों ने हमारे संसाधनों पर अतिक्रमण कर लिया और हम दरिद्र हो गए। फिर अंग्रेजी के बीज बो गए, तो हमारा ज्ञान से सम्पर्क ही टूट गया। कोरा विज्ञान रह गया। चेतना सुप्त हो गई। पंचवर्षीय योजनाएं कृषि और पशुधन पर आधारित नहीं रही। 💕👨 Good morning ji☕☕☕☕💕💕🍎🍉🍫🍫🍧🍧🍀🌱☘🙋 संविधान का भी भारतीयकरण नहीं हो पाया। विकास के लिए अब समान अवसर नहीं रहे। तब हमें तो कंगाल ही होना है। भ्
Divyanshu Pathak
नई पीढ़ी को इन दिनों यह समझने की महती आवश्यकता है। — % & इश्क़ तो है...हासिल हुआ न हुआ अलग बात है... इश्क़ जिससे है यदि वो मिल जाए तो उसका सिर फूटना तो तय मानिये आप.... वो तो इश्क़ का इतना महिमा मंडन
Ravikant Raut
क्या हो अगर आपको 10 करोड़ की लॉटरी लग जाये क्या आपको लगता है आप वाकई हमेशा के लिये खुश और सुखी हो जायेंगे तो ... भूल जाईये और मेरा ये आलेख ध
Aprasil mishra
"उदारवाद बनाम रुढ़िवाद : एक जीवट समावेशी संस्कृति के सन्दर्भ में " 1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर हो