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अदनासा-
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद है मुझको, मुझको बोने से पहले, वो किसान क्यूँ रोया था। हल से हुआ श्रृंगार धरती का, पर पानी नहीं था खेतों में, कैसे उसने मुझको बोया था। गर्मी में हल पे हाथ रखे, दो बैलों के संग, धरती की मांग सजाया था। पतली उभरती क्यारियों में, डाल पसीना अपना, उसने मुझे उपजाया था। किसने उसकी बात सुनी, अर्धनग्न वो रहा मगर, कब हिम्मत उसने हारी थी। लगन लिए, निःस्वार्थ भाव, झुलसाती गर्म हवाओं में, लथपथ रोएं की क्यारी थी। साल दर साल रहे बीतते, सत्ता की सीढ़ी बन, इसने सबको सत्तासीन किया। नाम रहा नारों में इनका, इश्तेहार और कागज़ पर, सबने इनको दीनहीन किया। मेरे पालन पोषण को भी, खाद उर्वरक, कहाँ कब इसे मिले। सब्सिडी का नाम बड़ा था, इसने भी सुना, बस कागज़ पर इसे मिले। मैं बड़ी हुई, गदरायी थी, हुई कटाई, मंडी पहुंची बन्द बोरे में। दाम गिरा था, मोल नही था, बांध रहा, पसीना वो पाजामे के डोरे में। आंख का आंसू, माथे का पसीना, अद्भुत संगम, किससे कहता, क्या क्या कहता। उसकी मेहनत, बेमोल पड़ी, हर कोई, उसपे बन एक गिद्ध झपटता। लिया कर्ज़ था साहूकार से, मूल तो छोड़ो, फसल ब्याज भी दे न पायी। कर्जमाफी का शोर बड़ा था, पर सरकार, असल आज भी दे न पायी। हारा, सबसे हार गया वो, क्या करता, सब होकर भी नँगा पड़ा था। राहें बदलीं, किसी ओर चला, पेड़ में गमछा, गमछे में किसान टंगा पड़ा था। मैं एक गेंहूँ की बाली, क्या करती, मैंने पालनहार खोया था। तुम कहते इंसां ख़ुद को, तुम ही बोलो, क्या तेरा दिल ना रोया था। ©रजनीश "स्वछंद" मैं गेंहूँ की बाली हूँ।। मैं गेंहूँ की बाली हूँ, हर खेतिहर की हरियाली हूँ। तेरी भूख मिटाने को, रोटी भरी मैं थाली हूँ। आज हरी हूँ, पर याद ह
Agrawal Vinay Vinayak
रामायण रिटर्न्स [Read Captain 👇👇] #रामायण रिटर्न्स ______________________________________ #ram #yqbaba #yqvinayvinayak #yqdidi आजकल तमाम प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर, जन