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Hammad Rizwan

रिज़वान हम्माद

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जब मेरी जान जायगी,
जान, जान जायगी रिज़वान हम्माद

पंकज कुम्हार

दिल-मरुस्थल #शायरी

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दिल मरुस्थल हो रहा
कुछ हरियाली दिखा
नब्ज़ों से
 connection
 दिल का
नब्ज़ों में बांध ना बना
खारा ही सही 
पर इन्हें
कुछ पानी तो दिखा दिल-मरुस्थल

'मनु' poetry -ek-khayaal

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Parasram Arora

मरुस्थल की व्यथा #कविता

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क्या कभी लौट पायेगा  वो  प्रवासी जल
मरुस्थलो मे?
कैसे विस्मृत कर सकता है आज वो मरुस्थल कि.
वो  भी कभी समुन्द्र का अंश था  और उसमे भी.
लहरे कभी ठाठे मारा करती थी
लेकिन वक़्त ने करवट ली और उसके जल क़ो
सूरज ने वाशपिकृत करके उसे मरुस्थल मे बदल दिया
आज वो  सन्नाटो मे चीख चीख कर अपनी व्यथा प्रकट करता है. और  आज भी वो  तरलता के स्वप्न उन वीरान रातो मे देखा करता है

©Parasram Arora मरुस्थल की व्यथा

Usha Dravid Bhatt

खुशियों से विहीन मरुस्थल #कविता #OpenPoetry

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#OpenPoetry मरुस्थल

सफेद किरमिची चादर सा दिखता मरुस्थल,
भोर की बेला जैसा कितना शान्त और शीतल ,
मैं चली जा रही हूँ ,
कभी न मिलने वाले बिछडे साथी की खोज में ,
ज्यों भटकता रहता है हिरण अपने गर्भ में छिपी कस्तूरी की खोज में ।
कांटे बिंधे पैरों से , जख्मी तन लिए , 
आंसुओं से तर-बतर चेहरा -
ऐसे ढूँढ़ता है अपने प्राण को,
जैसे निष्प्राण सा पागल अन्त समय में प्राणवायु ढूंढता है ,
क्या मिल सका है कभी ,खोया हुआ ,इस अनन्त फैली मरुभूमि में ।
असंख्य हादसों की कब्रगाह बन कर कैसे शान्त हो तुम ,
अब तो बता कहाँ है मेरा राही , तू इतना कठोर मत बन -
देख आंख वीरान हैं ,जिस्म  वेजान है ,शब्द पथरा गये ।
सोचा था मेरे हृदय की चित्कार के दर्द को तू सह न पायेगा ,
भूल थी मेरी ,कहां मैने आंसू बहाए ,
अरे मरू तू तो  म-रु-स्थल है कहां तुझमे संवेदनाएं ।
थक गयी हूं अब , लहू  रिसते घावों का दर्द सह नहीं सकती ,
विश्रान्त दे दे मुझे , अपनी स्पन्दन हीन निशान्त गोद में ,
कि पहुँच जाऊँ मैं अपने प्रिय के पास ।
भोर बिना  *उषा* का क्या  अस्तित्व ।
बस अब सो जाऊं , जहाँ से  फिर  कभी उठ न सकूं 
चिरंतन काल तक ,
दरकती  खिसकती रेत में ,
लुप्त हो गयी  खुशियों की तरह ।। खुशियों से विहीन मरुस्थल

'मनु' poetry -ek-khayaal

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