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Parasram Arora
कोई पुरखो को पानी पहुंचा रहा हैँ कोइ गंगाओ मे पाप धो रहा हैँ कोई पथर की प्रतिमाओं के सामने बिना भाव सर झुकाये बैठा हैँ धर्म के नाम पर हज़ार तरह की मूढ़ताएं प्रचलन मे हैँ धर्म से संबंध तो तब होता हैँ जब आदमी जागरण की गुणवत्ता हासिल कर लेता हैँ जहाँ जागरण होगा वहा अशांति कभी हो ही नहीं सकती क्यों कि जाग्रत आदमी विवेकी होता हैँ इर्षा क्रोध की वृतियो से ऊपर उठ चुका होता हैँ औदेखा जाय तो धर्म औऱ शांति पर्यायवाची शब्द हैँ धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ
( prahlad Singh )( feeling writer)
(मन का तिनका, गिरा है तन की आंख में सहमे प्यार की बेचैनी को, नमक की बूंद को अमृत के सार में, तब्दील करने के लिए लगाव को ,प्यार बनाने के लिए) ©prahlad singh मन का तिनका #Grassland
BANDHETIYA OFFICIAL
सफेद दाढ़ियों में से होके निकलते सफेद झूठ ने श्रोता की काली आंखों में झांकने पर विवश कर डिजिटल युग में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी की पुण्य स्मृति प्रकट कर दी। अब डूबते को तिनके का सहारा उन्हीं दाढ़ियों से होके प्रस्तुत हो रहा। .... हेराफेरी से न जायें। ©BANDHETIYA OFFICIAL डूबते का तिनका ! #election
NEERAJ SIINGH
किसी से उम्मीद जोड़ने से बेहतर है मेहनत का तिनका तिनका जोडना #neerajwrites मेहनत का तिनका
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
Vineet Tomar
बनाया था आशियाना बड़ी मेहनत से जिसको वो गिरा गया, किसनें लगाई थी ये आग जिसका एक पतंगा मेरी ता उम्र की कमाई को जला गया ।। विनीत तोमर तिनका तिनका ..? #difficulties
Anita Najrubhai
पहाडों मे इन पेड़ों पर हारिल तिनका-तिनका उठा के उड आयीं है अपना छोटा सा घोंसला बनाने के लिए हारिल तिनका लेकर इन पहाडों में रहे ती है ©Anita Najrubhai #NatureLove# तिनका तिनका
manoj kumar jha"Manu"
धरती का दुःख क्यों, समझते नहीं तुम। धरा न रही अगर, तो रहोगे नहीं तुम।। सुधा दे रही है वसुधा हमें तो, भू को न बचाया, तो बचोगे नहीं तुम।। "भूमि हमारी माता, हम पृथिवी के पुत्र"* वेदवाणी कह रही, क्या कहोगे नहीं तुम।। (स्वरचित) * माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या: (अथर्ववेद १२/१/१२) धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।