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Ajith Kumar

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होई है वही जो राम रची राखा।।
को करी तर्क बढ़ावहि शाखा।।

हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। वे कहां रहते हैं, कब-कब व कहां-कहां प्रकट होते हैं और उनके दर्शन कैसे और किस तरह किए जा सकते हैं, हम यह आपको बताएंगे अगले पन्नों पर। और हां, अंतिम दो पन्नों पर जानेंगे आप एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप सचमुच ही चौंक जाएंगे...


चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है। हनुमान को छोड़कर और किसी देवी-देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है। द्वंद्व में रहने वाले का हनुमानजी सहयोग नहीं करते हैं। हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं। किसी भी व्यक्ति को जीवन में श्रीराम की कृपा के बिना कोई भी सुख-सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती है। श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए हमें हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहिए। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी श्रीराम तक पहुंच नहीं सकता। हनुमानजी की शरण में जाने से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही जब हनुमानजी हमारे रक्षक हैं तो हमें किसी भी अन्य देवी, देवता, बाबा, साधु, ज्योतिष आदि की बातों में भटकने की जरूरत नहीं।

युवाओं के आइडल बजरंग बली

हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात हैं। कलियुग में हनुमानजी की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम है। बहुत से लोग किसी बाबा, देवी-देवता, ज्योतिष और तांत्रिकों के चक्कर में भटकते रहते हैं और अंतत: वे अपना जीवन नष्ट ही कर लेते हैं... क्योंकि वे हनुमान की भक्ति-शक्ति को नहीं पहचानते। ऐसे भटके हुए लोगों का राम ही भला करे।

क्यों प्रमुख देव हैं हनुमान : हनुमानजी 4 कारणों से सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। पहला यह कि वे रीयल सुपरमैन हैं, दूसरा यह कि वे पॉवरफुल होने के बावजूद ईश्वर के प्रति समर्पित हैं, तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा यह कि वे आज भी सशरीर हैं। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।


अगले पन्ने पर पहला, सबसे बड़ा रहस्य..


क्या हनुमानजी बंदर थे? : हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था।





हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह ‍भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।

दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।

अगले पन्ने पर, इससे भी बड़ा दूसरा रहस्य...


पहला जन्म स्थान : हनुमानजी की माता का नाम अंजना है, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे। केसरीजी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ लोग मानते हैं कि यही हनुमानजी का जन्म स्थान है।




हनुमानजी का जन्म स्‍थान कहां है, जानिए

दूसरा जन्म स्थान : गुजरात के डांग जिले के आदिवासियों की मान्यता अनुसार डांग जिले के अंजना पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था।

तीसरा स्थान : कुछ लोग मानते हैं कि हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षे‍त्र गुमला जिला मुख्‍यालय से 20 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था।

अंत में आखिर कहां जन्म लिया? : 'पंपासरोवर' अथवा 'पंपासर' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर 'शबरी गुफा' कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। मतंग नाम की आदिवासी जाति से हनुमानजी का गहरा संबंध रहा है जिसका खुलासा होगा अगले पन्नों पर...

इससे भी बड़ा तीसरा रहस्य...


क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी? : हनुमानजी इस कलयुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। हनुमानजी को धर्म की रक्षा के लिए अमरता का वरदान मिला था। इस वरदान के कारण आज भी हनुमानजी जीवित हैं और वे भगवान के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं। जब कल्कि रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे तब हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे।




क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी?

कलयुग में श्रीराम का नाम लेने वाले और हनुमानजी की भक्ति करने वाले ही सुरक्षित रह सकते हैं। हनुमानजी अपार बलशाली और वीर हैं और उनका कोई सानी नहीं है। धर्म की स्थापना और रक्षा का कार्य 4 लोगों के हाथों में है- दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण।

अगले पन्ने पर, इससे भी बड़ा चौथा रहस्य...


चारों जुग परताप तुम्हारा : लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं- यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।




अर्थात : 'हे वीर श्रीराम! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें।' इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं- 'एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।'

अर्थात् : 'हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी।'

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।।

1. त्रेतायुग में हनुमान : त्रेतायुग में तो पवनपुत्र हनुमान ने केसरीनंदन के रूप में जन्म लिया और वे राम के भक्त बनकर उनके साथ छाया की तरह रहे। वाल्मीकि 'रामायण' में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का उल्लेख मिलता है।

2. द्वापर में हनुमान : द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं। इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है। महाभारत में प्रसंग है कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाते हैं। इस तरह एक बार हनुमानजी के माध्यम से श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ की शक्ति के अभिमान का मान-मर्दन करते हैं।

हनुमान की मदद से कृष्ण ने तोड़ा इनका अभिमान...

3. कलयुग में हनुमान : यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्घा और विश्वास से हनुमानजी का आश्रय ग्रहण कर लें तो फिर तुलसीदासजी की भांति उसे भी हनुमान और राम-दर्शन होने में देर नहीं लगेगी। कलियुग में हनुमानजी ने अपने भ‍क्तों को उनके होने का आभास कराया है।

ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे- 'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर। तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा पांचवां रहस्य...


कहां रहते हैं हनुमानजी? : हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।




''यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि।
वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक॥''

अर्थात : कलियुग में जहां-जहां भगवान श्रीराम की कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं। सीताजी के वचनों के अनुसार- 'अजर-अमर गुन निधि सुत होऊ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ।।'

गंधमादन पर्वत क्षेत्र और वन : गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में हुआ है। महाभारत की पुरा-कथाओं में भी गंधमादन पर्वत का वर्णन प्रमुखता से आता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यहां के विशालकाय पर्वतमाला और वन क्षेत्र में देवता रमण करते हैं। पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी। गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुंचा जा सकता। गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं।

वर्तमान में कहां है गंधमादन पर्वत? : इसी नाम से एक और पर्वत रामेश्वरम के पास भी स्थित है, जहां से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी, लेकिन हम उस पर्वत की नहीं बात कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है।

पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

कैसे पहुंचे गंधमादन : पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था। इस क्षेत्र में दो रास्तों से जाया जा सकता है। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए। संभवत महाभारत काल में अर्जुन ने असम के एक तीर्थ में जब हनुमानजी से भेंट की थी, तो हनुमानजी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ में आए होंगे। गौरतलब है कि एक गंधमादन पर्वत उड़िसा में भी बताया जाता है लेकिन हम उस पर्वत की बात नहीं कर रहे हैं।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा छठा रहस्य...


मकरध्वज था हनुमानजी का पुत्र : अहिरावण के सेवक मकरध्वज थे। मकरध्वज को अहिरावण ने पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया था।

पवनपुत्र हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे तब कैसे कोई उनका पुत्र हो सकता है? वाल्मीकि रामायण के अनुसार उनके पुत्र की कथा हनुमानजी के लंकादहन से जुड़ी है। कथा जानने के लिए आगे क्लिक करे...कौन था हनुमानजी का पुत्र, जानिए:

हनुमानजी की ही तरह मकरध्वज भी वीर, प्रतापी, पराक्रमी और महाबली थे। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी थी।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा सातवां रहस्य...


क्यों सिन्दूर चढ़ता है हनुमानजी को? : हनुमानजी को सिन्दूर बहुत ही प्रिय है। इसके पीछे ये कारण बताया जाता है कि एक दिन भगवान हनुमानजी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा माता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही है। हनुमानजी ने जब माता से पूछा, तब माता ने कहा कि इसे लगाने से प्रभु राम की आयु बढ़ती है और प्रभु का स्नेह प्राप्त होता है।

तब हनुमानजी ने सोचा जब माता इतना-सा सिन्दूर लगाकर प्रभु का इतना स्नेह प्राप्त कर रही है तो अगर मैं इनसे ज्यादा लगाऊं तो मुझे प्रभु का स्नेह, प्यार और ज्यादा प्राप्त होगा और प्रभु की आयु भी लंबी होगी। ये सोचकर उन्होंने अपने सारे शरीर में सिन्दूर का लेप लगा लिया। इसलिए कहा जाता है कि भगवान हनुमानजी को सिन्दूर लगाना बहुत पसंद है।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा आठवां रहस्य...


पहली हनुमान स्तुति : हनुमानजी की प्रार्थना में तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक आदि अनेक स्तोत्र लिखे, लेकिन हनुमानजी की पहली स्तुति किसने की थी? तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं सबसे पहले हनुमानजी की स्तुति किसने की थी?

जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर 'राम' नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया।

विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की वकालत की। इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है।


इस पर श्री हनुमानजी ने कहा कि तुम लोग विभीषण को ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं क्यों और क्या चाहता हूं...। फिर कुछ देर हनुमानजी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है और कहता है- 'मैं तेरा हूं, उसे मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं। यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी जानी चाहिए।'

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। वे भी आज सशरीर जीवित हैं। विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है। विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को 'हनुमान वडवानल स्तोत्र कहते हैं।

सब सुख लहे तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।

हनुमान की शरण में भयमुक्त जीवन : हनुमानजी ने सबसे पहले सुग्रीव को बाली से बचाया और सुग्रीव को श्रीराम से मिलाया। फिर उन्होंने विभीषण को रावण से बचाया और उनको राम से मिलाया। हनुमानजी की कृपा से ही दोनों को ही भयमुक्त जीवन और राजपद मिला। इसी तरह हनुमानजी ने अपने जीवन में कई राक्षसों और साधु-संतों को भयमुक्त और जीवनमुक्त किया है।



अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा नौवां रहस्य...


हनुमानजी की पत्नी का नाम : क्या अपने कभी सुना है कि हनुमानजी का विवाह भी हुआ था? आज तक यह बात लोगों से छिपी रही, क्योंकि लोग हिन्दू शास्त्र नहीं पढ़ते और जो पंडित या आचार्य शास्त्र पढ़ते हैं वे ऐसी बातों का जिक्र नहीं करते हैं लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं हनुमानजी का एक ऐसा सच जिसको जानकर आप रह जाएंगे हैरान...

आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में एक मंदिर ऐसा विद्यमान है, जो प्रमाण है हनुमानजी के विवाह का। इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा के साथ उनकी पत्नी की प्रतिमा भी विराजमान है। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। माना जाता है कि हनुमानजी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद पति-पत्नी के बीच चल रहे सारे विवाद समाप्त हो जाते हैं। उनके दर्शन के बाद जो भी विवाद की शुरुआत करता है, उसका बुरा होता है।

हनुमानजी की पत्नी का नाम सुवर्चला था। वैसे तो हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और आज भी वे ब्रह्मचर्य के व्रत में ही हैं, विवाह करने का मतलब यह नहीं कि वे ब्रह्मचारी नहीं रहे। कहा जाता है कि पराशर संहिता में हनुमानजी का किसी खास परिस्थिति में विवाह होने का जिक्र है। कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा।

इस संबंध में एक कथा है कि हनुमानजी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था। हनुमानजी भगवान सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमानजी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ-साथ उड़ना पड़ता था और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते। लेकिन हनुमानजी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया।

कुल 9 तरह की विद्याओं में से हनुमानजी को उनके गुरु ने 5 तरह की विद्याएं तो सिखा दीं, लेकिन बची 4 तरह की विद्याएं और ज्ञान ऐसे थे, जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे। हनुमानजी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वे मानने को राजी नहीं थे। इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वे धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखा सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्यदेव ने हनुमानजी को विवाह की सलाह दी।

अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमानजी ने विवाह करने की सोची। लेकिन हनुमानजी के लिए वधू कौन हो और कहां से वह मिलेगी? इसे लेकर सभी सोच में पड़ गए। ऐसे में सूर्यदेव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमानजी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद हनुमानजी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई। इस तरह हनुमानजी भले ही शादी के बंधन में बंध गए हो, लेकिन शारीरिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।

अगले पन्ने पर सबसे बड़ा रहस्य 10वां रहस्य...


एक वेबसाइट का दावा है कि प्रत्येक 41 साल बाद हनुमानजी श्रीलंका के जंगलों में प्राचीनकाल से रह रहे आदिवासियों से मिलने के लिए आते हैं। वेबसाइट के मुताबिक श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऐसे कबीलाई लोगों का पता चला है जिनसे मिलने हनुमानजी आते हैं।

इन कबीलाई लोगों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्मिक संगठन 'सेतु' के अनुसार पिछले साल ही हनुमानजी इन कबीलाई लोगों से मिलने आए थे। अब हनुमानजी 41 साल बाद आएंगे। इन कबीलाई या आदिवासी समूह के लोगों को 'मातंग' नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मातंग ऋषि का आश्रम है, जहां हनुमानजी का जन्म हुआ था।

वेबसाइट सेतु एशिया ने दावा किया है कि 27 मई 2014 को हनुमानजी श्रीलंका में मातंग के साथ थे। सेतु के अनुसार कबीले का इतिहास रामायणकाल से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान राम के स्वर्ग चले जाने के बाद हनुमानजी दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए थे और फिर समुद्र पार कर श्रीलंका के जंगलों में रहने लगे। जब तक पवनपुत्र हनुमान श्रीलंका के जंगलों में रहे, वहां के कबीलाई लोगों ने उनकी बहुत सेवा की।

जब हनुमानजी वहां से जाने लगे तब उन्होंने वादा किया कि वे हर 41 साल बाद आकर वहां के कबीले की पीढ़ियों को ब्रह्मज्ञान देंगे। कबीले का मुखिया हनुमानजी के साथ की बातचीत को एक लॉग बुक में दर्ज कराता है। 'सेतु' नामक संगठन इस लॉग बुक का अध्ययन कर उसका खुलासा करने का दावा करता है।

जाते जाते, कैसे प्राप्त करें हनुमानजी की कृपा जानिए अगले पन्ने पर...


हनुमान दर्शन और कृपा : हनुमानजी बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। उनकी कृपा आप पर निरंतर बनी रहे इसके लिए पहली शर्त यह है कि आप मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें अर्थात कभी भी झूठ न बोलें, किसी भी प्रकार का नशा न करें, मांस न खाएं और अपने परिवार के सदस्यों से प्रेमपूर्ण संबंध बनाए रखें। इसके अलावा प्रतिदिन श्रीहनुमान चालीसा या श्रीहनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करें। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। इस तरह ये कार्य करते हुए नीचे लिखे उपाय करें...

हनुमान जयंती या महीने के किसी भी मंगलवार के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। 1 लोटा जल लेकर हनुमानजी के मंदिर में जाएं और उस जल से हनुमानजी की मूर्ति को स्नान कराएं।

पहले दिन एक दाना साबुत उड़द का हनुमानजी के सिर पर रखकर 11 परिक्रमा करें और मन ही मन अपनी मनोकामना हनुमानजी को कहें, फिर वह उड़द का दाना लेकर घर लौट आएं तथा उसे अलग रख दें।

दूसरे दिन से 1-1 उड़द का दाना रोज बढ़ाते रहें तथा लगातार यही प्रक्रिया करते रहें। 41 दिन 41 दाने रखने के बाद 42वें दिन से 1-1 दाना कम करते रहें। जैसे 42वें दिन 40, 43वें दिन 39 और 81वें दिन 1 दाना। 81वें दिन का यह अनुष्ठान पूर्ण होने पर उसी दिन, रात में श्रीहनुमानजी स्वप्न में दर्शन देकर साधक को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। इस पूरी विधि के दौरान जितने भी उड़द के दाने आपने हनुमानजी को चढ़ाए हैं, उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें। Ajit Kumar Ajith Kumar

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Om namah shivay
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tere hote huye bhi tanhai mili hai wafa kar ke bhi dekho burai mili hai jitni duaa ki tumhe pane ki use judaai teri mili hai love you teri kasam Ajith Kumar

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दुनिया रचने वाले को भगवान कहते हैं,
और संकट हरने वाले को हनुमान कहते हैं Ajith Kumar Ajith Kumar

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ji chahta hai tere labo ko pilu dil kahta hai tere sansoon ko pilu per main kahta hoon ki tere hoton ko pilu love you teri kasam Ajith Kumar
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