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Aditya Kumar Bharti
क़लम का सिपाही हूं किसी सरकार का तरफदार नहीं। लिखूंगा हर एक ज़ुल्म के खिलाफ मैं सियासत में गिरफ्तार नहीं।। आदित्य मस्त अल्हड़ २१/०६/२०२३ ©Aditya Kumar Bharti सरकार के प्रतिपक्ष में
Raunak (Srijan)
कभी कभी हम सरलता से कट रही ज़िंदगी में अनजाने ही कुछ ऐसी घटनाओं के गवाह बन जाते हैं जो हमारी आत्मा पर एक गहरी छाप छोड़ जाती हैं। कुछ दिन पहले अपनी बहन के घर से लौट रहा था। कुछ सोचते-सोचते ट्रेन पर चढ़ा और एक कोने में खड़ा हो गया।इतने में नज़र एक छह-सात साल की बच्ची पर पड़ी। फटे पुराने कपड़े, पैर बिना चप्पल के और बाल बिखरे हुए मगर होंठों पर एक मुस्कुराहट थी। तभी कानों में ढोलक की आवाज़ पड़ी। देखा तो एक तीस-चालीस साल का आदमी बैठा ढोलक बजा रहा है। ढोलक की तर्ज पर वह बच्ची गुलाटियां मारने लगी और गीत गाने लगी। मेरे मन को एक धक्का-सा लगा। मैंने पहले भी ऐसे दृश्य देखे थे पर कभी उनपर चिंतन नहीं किया। खुद को कोसने की पूरी तैयारी कर चुका था कि तब तक ढोलक की ताल तालियों के शोर में बदल गई। अपने मन को तसल्ली तो दे दी कि मैं एकमात्र बुरा इंसान नहीं हूं, मगर आत्मा पर पड़ी यह छाप जीवन भर रहेगी। प्रत्यक्ष
Shahaji Chandanshive
प्रतिक्षा शब्दांवीना कळावी तुज भावना या मनाची माझे मला न कळते मी पाहते वाट कुणाची ... हा शृ'गार यौवनाचा मी जपते तुझ्याचसाठी तू समजून घे मला रे हे सारे तुझ्याचसाठी तू येताच मला कळावी चाहूल ओळखीची ... सांगू कसा तुला मी शब्दांत भाव माझा हळवी फुले जपावी हा छंद असे रे माझा मी ओळखून अाहे तुझी नजर पारखीची .... होवून स्वप्न राजा माझा येशिल तू कधीरे गंधित त्या मिठित मज घेशील तू कधीरे जीवनात मी प्रतीक्षा करते रे त्या क्षणाची .... **** शहाजीकुमार चंदनशिवे अकोला ता .सांगोला जि .सोलापूर ©Shahaji Chandanshive प्रतिक्षा
Parasram Arora
क्यो है मुझे प्रतीक्षा तुम्हारी इतनी शिद्दत से आखिर ये बात मैं क्यों समझ नही पा रहा हूं काश एक बार तुमदेख लेते मुझे पीछेमुड़कर ये बात मैं बार बार अपने दिल में तुमसे कहता रहा हूं तुम्हारे फैसलों से ही तो ये फ़ासले पैदा हुए है ये हालात कबतक रहेंगे सुनने के लिये कान लगाए बैठा हूं ज़ब भी तुम्हे देखा है हमेशा नाराज़ और उदास ही पाया है ये नाराज़गी आखिर कब दूर होगी हमेशा इसी उधेड बुन में रहता हूं आज मैं अकेला हूं कोई साथ नही साथ ह्सने के लिये आंसू ज़ब भी बह उठते है उन्ही से तसल्ली पालेता हूं ©Parasram Arora प्रतिक्षा.......
Nilam Agarwalla
जिनकी प्रतिक्षा में हमनें गुजारे जीवन के जाने कितने पल छिन। ख्याल जिनका आते ही हो जाते मन में आशाओं के दीप रोशन। खबर जिनके आने की पाते ही सूना शहर जैसे हो जाता वृंदावन। सुमधुर बंशी स्वर सुन पिया के हर्षित हो उठता मन का आंगन। दर्शन की प्यासी राधारानी को जैसे मिल जाता उसका मोहन। धानी हो जाती स्वेत चुनरिया पाकर उनका नेहमय आलिंगन। सुरभित हो जाती सांसों की गली तन-मन हो जाता चंदन चंदन। झिलमिलाते नैनों के दो तारे खिल उठता उजड़ा हृदय चमन। - निलम ©Nilam Agarwalla #“प्रतिक्षा”
Arora PR
चाँद की बारात मे आसमान के सभी तारो ने बराती बन कर शिरकत की हैँ उधर शर्मीली चांदनी बादलों को घूघट बना कर खुद को छुपाती हुई दूल्हे चाँद की बेसब्री से प्रतिक्षा कर रही हैँ ©Arora PR प्रतिक्षा
Parasram Arora
सीता के स्वयनबर मे राम ने अभी तक अपनी उपस्तिथि दर्ज़ नहीं कराई तो क्यासीता को रावण के गले मे वर माला डालनी पड़ेगी लगता है राम या तो रस्ता भटक है या जंगल मे खो गए है अब शायद अहिल्या को न जाने कब तक पथर बन कर यहां पड़ा रहना पड़ेगा ©Parasram Arora प्रतिक्षा?
Parasram Arora
जीवन का एक आधारभुत नियम है कि अगर प्रतिक्षा की जाए तों सभी चीजे स्वतः ही पूरी हो जाती है जीबन का ढंग चीज़ो क़ो पूरा करने का है जैसे अगर हम प्रतिक्षा कर सके तों हमेँ कच्चे फल तोड़ने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.. क्योंकि फल पकजाने पऱ स्वयं ही गिर कर आपकी झोली मे आ जाएगा और हमेँ उसे तोडना भी नहीं पड़ेगा वृक्ष पऱ चढ़ने की मुसीबत से भी छुटकारा मिलेगा जीवन का ये नियम है चीज़ो क़ो पूर्ण करना यहां सब छीज़े. पूरी j हो जाती है सिर्फ प्रतिक्षा चाहिए ©Parasram Arora प्रतिक्षा