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Neeraj Badgotya
Priya Sharma
Jyotish Jha
नारीवाद के बहाने जाने कितने जिंदगी बर्बाद किये इस इंसानों ने तो भगवानों के भी व्यापर किये नफ़रत की दुनिया को छोड़ के क्यों न हम साथ चलें #nehadhupia #fakefeminism #drjyotishwrites नारी को सत सत बार प्रणाम 🙏🙏🙏 जब तक पर्दे में है तब तक ही ये नारी है मत समझो नारी को अबला ये झाँसी
संगीत कुमार
धरती है इतिहासों की धर्म ,ज्ञान के भंडारों की विद्वानों की महानायक की वीरों और बलवानों की भाषा की संस्कृति की अधिकारियों की कर्मवीरों की बिहार है पहचानों की ऋषियो की भगवानों की धर्म और विचारों की धरती है बलिदानो की बिहार तो है सबके सम्मान की ©संगीत कुमार #HappyRoseDay धरती है इतिहासों की धर्म ,ज्ञान के भंडारों की विद्वानों की महानायक की वीरों और बलवानों की भाषा की संस्कृति की अधिकारियों की क
Pratik Patil Patu
क्रोध का दानव जब, भी आता है रिश्ते तहस-नहस, कर देता है यह जिस पर भी हबी होता है उसकी जिंदगी बिगाड़ देता है लोभ का राक्षस, जब भी आता है खुशियां खा जाता है यह बहुत मायावी है जन्नत को भी, जहन्नुम बना देता है जलन की आग जब, दिल में जलती है अंदर से रुलाती है, बाहर से जलाती है पूरी जिंदगी जलती ही, चली जाती है प्यार जब भी आता है, क्रोध को हटाता है रिश्तो के घाव, पल में मिटाता है यह बहुत मायावी है जहा भी होता है, जन्नत बना देता है त्याग जब भी आता है, लोभ को हटाता है जलन को मिटाकर, प्यार को लाता है यह बहुत मायावी है दानव को भी, मानव बना देता है जिंदगी के शैतान और भगवान क्रोध, लोभ और जलन यही है हमारे जिंदगी के कुछ शैतान. हमारी जिंदगी में जितनी भी बुरी चीजें होती है, वह सब इन तीन
Manoj dev
Manoj dev
#OpenPoetry ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते .......काश कोई धर्म ना होता .......काश कोई मजहब ना होता ना अर्ध देते , ना स्नान होता ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीते पेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का फाटक होता .......काश कोई धर्म ना होता .......काश कोई मजहब ना होता ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजते ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते .......काश कोई धर्म ना होता .......काश कोई मजहब ना होता
अम्बुज बाजपेई"शिवम्"
बोलने से बात बिगड़ न जाए, चुप रहने से चोटों के निशान बढ़ रहें हैं। सच पर पर्दा ज़रा मोटा पड़ा है, महफ़िलों में झूठ के फरमान बढ़ रहें हैं। हर कोई जल रहा है किसी अनदेखी आग में, विज्ञान संशय में है क्यों तापमान बढ़ रहें हैं? बेघरों की तादाद देख मालूम पड़ता है, कि घर कम हैं और मकान बढ़ रहें हैं। तरक्की कर ली हमने उस हद तक जा कर, कि अब भूखे मर रहे हैं पर पकवान बढ़ रहें हैं। फ़र्क करना तो अब बड़ा मुश्किल काम है, झूठे भगवानों के लिबास में शैतान बढ़ रहें हैं। बदलाव तो बहुत आ चुका है माहौल में, कि इंसानियत मर रही है पर इंसान बढ़ रहें है। बोलने से बात बिगड़ न जाए, चुप रहने से चोटों के निशान बढ़ रहें हैं। सच पर पर्दा ज़रा मोटा पड़ा है, महफ़िलों में झूठ के फरमान बढ़ रहें हैं। हर
Neeraj Badgotya
Dr.UMESH ARSHAAN
ना मस्जिद आजान देती, ना मंदिर के घंटे बजतेना अल्ला का शोर होता, ना राम नाम भजते ना हराम होती, रातों की नींद अपनीमुर्गा हमें जगाता, सुबह के पांच बजते ना दीवाली होती, और ना पठाखे बजतेना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता,काश कोई धर्म ना होता काश कोई मजहब ना होता ना अर्ध देते , ना स्नान होता ना मुर्दे बहाए जाते, ना विसर्जन होता जब भी प्यास लगती , नदिओं का पानी पीतेपेड़ों की छाव होती , नदिओं का गर्जन होता ना भगवानों की लीला होती, ना अवतारों का नाटक होता ना देशों की सीमा होती , ना दिलों का फाटक होता तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता, काश कोई धर्म ना होता काश कोई मजहब ना होता कोई मस्जिद ना होती, कोई मंदिर ना होता कोई दलित ना होता, कोई काफ़िर ना होता कोई बेबस ना होता, कोई बेघर ना होता किसी के दर्द से कोई, बेखबर ना होता ना ही गीता होती , और ना कुरान होता ना ही अल्ला होता, ना भगवान होता तुझको जो जख्म होता, मेरा दिल तड़पता. ना मैं हिन्दू होता, ना तू मुसलमान होता तू भी इन्सान होता, मैं भी इन्सान होता। –हरिवंशराय बच्चन ना मस्जिद आजान देती, ना मंदिर के घंटे बजते ना अल्ला का शोर होता, ना राम नाम भजते ना हराम होती, रातों की नींद अपनी मुर्गा हमें जगाता, सुबह