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मनुस्मृति त्रिपाठी
"वो बारिश का मौसम वो हम दोनों का संग," पता है साँई यहाँ दिल्ली में बहुत बारिश हो रही है मैं बाल्कनी में बैठ कर बस यही सोच रहीं हूँ कि क्या मैं भी तुम्हारे साथ कभी बारिश में भींग पाऊँगी मुझें पता है इस समय आप जाग रहें हैं और अपनी कविताओं को पूरा करने में लगें हैं पर ये बारिश बहुत परेशान करती है नर्गिस को ये बारिश बहुत परेशान करती है
sidpoetryclub
बड़ी कश्मकश में चल रही है मेरी ज़िन्दगी.. डिग्री पाने के बेरोजगार घूम रहा हूं बड़ी आसानी से मिल जाती है उनको सक्सियत जिनके ऊंचे घराने होते है , हम तो गरीब लोग है साहेब बड़ी मुश्किल से कुछ पाते है बहुत परेशान हूं में
NEHA tomar
ज़िन्दगी और मत सता बहुत परेशान हूं मैं खुद से भी और तुझसे भी🙂 ©NEHA tomar बहुत परेशान हु में #ujala
Aakash Dixit
बहुत परेशान करती हूं मैं उसे क्योंकि, मुझे पता है वो मुझे छोड़कर नहीं जाएगा...!! ©Aakash Dixit बहुत परेशान करती हूं #Shayar #shayad
pramod malakar
सुकून अब है कहां ०००००००००००० मैं बहुत परेशान हूं आंसू बहाते धरती को देख कर, सोचता हू चला जाऊं अपना घर शरीर को फेंक कर। सुकून अब है कहां भगवान के भक्तों को, पनाह अब ले कहां , रोके कैसे बहते रक्तों को। एक पिता का अनेकों नाम रख करअधर्मी लड़ रहा है, खुद को धर्मों में बांट कर नंगा मचल रहा है। दहल रहा है अहंकार से आसमान भी आज, कोई नहीं है सुनने वाला ईश्वर की. आवाज। ईश्वर एक है,अनंत है , पत्ते- पत्ते और कण-कण में, जैसे सांसे छुपी है तुम्हारी बहते शुद्ध पवन में। निराकार तुझमें है और तुम हो निराकार में, भक्त वही है जो खो जाता है सबके प्यार. में। अभी वक्त है मान लो जन्म दाता मालिक को, जो लगी है दाग. तुझ पर मिटा दो उस कालीख को। माता - पिता को तुम सम्मान दे कर देखो, सभी जीवों में परमात्मा है इसे तुम पन्ने पर लिखो। अच्छे कर्म हांथ का रेखा और नशीब बदल देता है, परम पिता परमात्मा कुछ भी नहीं लेता है। मैं हैरान हूं नासमझ तड़पते इंसानो को देख कर, मैं बहुत परेशान हूं आंसू बहाते धरती को देख कर, सोचता हूं चला जाऊं अपना घर शरीर को फेंक कर।। ००००००००००००००००००००००० प्रमोद मालाकार की कलम से """""""""""""""""""""""""""""" ©pramod malakar #मैं बहुत परेशान हूं आंसू बहाते धरती को देखकर।