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प्रियदर्शन कुमार
क्या उपहार दूं ================== बापू ! तू बता, तुम्हारे जन्म-दिन पर मैं तुम्हें क्या उपहार दूं? घृणा दूं मॉब लिंचिंग दूं या फिर भ्रष
Divyanshu Pathak
कायर और कपूतों की ना अब हमको दरकार रही उठो हमारे वीर सपूतो अब दुष्टों का संहार करो जो घर में छुपकर बैठे अपनी इज्जत लुटती देख रहे डूब मरो चुल्लू भर पानी में या अब कोई अवतार धरो माँ दुर्गा और भवानी रोती भारत माँ की छाती टूटी कब तक तुम निष्प्राण रहोगे अब तरकस में बाण भरो ट्विंकल और दामिनी देखी लक्ष्मी और कामिनी देखी आंखों में खून नहीं लाये तुम कुए में जाकर कूद मरो धरने देकर शमां जलाकर अब वक्त न तुम बर्वाद करो कहदो सरकारों से अपनी या संविधान को ताक धरो उठो धरा के वीर पहरुओं अब कर में तलवार भरो कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजान
अदनासा-
शुद्ध, श्वेत एवं सत्य पत्र जनता के लिए, जनता द्वारा, मात्र जन हित में। महान लोकतंत्र (Democracy) की सबसे महत्वपूर्ण रीढ़ (Foundation) हमारा संविधान (Constitution) है, परंतु हमारे इस संविधान को मजबूत बनाने हेतु, इन चतुर्थ (Fourth) स्तंभों (Pillars) का सशक्त होना भी अतिआवश्यक है, जो सौभाग्य से अनगिनत उतार चढ़ाव के बावजूद भी अब तक खड़ा है। परंतु प्रश्न है आख़िर कब तक ? हमारे लोकतंत्र का प्रथम स्तंभ है कार्यकारणी (Executive), द्वितीय स्तंभ है विधायिका (Legislature), तृतीय स्तंभ है न्यायपालिका (Judiciary) मगर यह जो चतुर्थ स्तंभ है, वह भले ही संविधान से जुड़ा हुआ ना हो, परंतु चतुर्थ स्तंभ का महत्व, संविधान के अन्य स्तंभों में इसलिए आवश्यक है कि यह किसी भी सत्ता को निरंकुश होने नही देती, इनके कड़वे सवाल ही हर सत्ता के लिए लगाम का कार्य करती है, वह है पत्रकारिता (Journalism) जो अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वैसे वर्तमान की वास्तविकता यह है कि यहां तो पत्रकारिता ही सत्ता के साथ बेलगाम हो चुकी है, वो चैनल निजी है, परंतु यह भी धीरे-धीरे पूर्णतया सरकारी होते जा रहे है या यूं कहें कि दरबारी हो चुकी है, कहने का उद्देश्य यह की चतुर्थ स्तंभ की स्थिति दयनीय एवं चिंताजनक है, साथ ही जो प्रथम एवं द्वितीय स्तंभ है वह भी लगभग सत्ता के चरणों में नतमस्तक है। वर्तमान में हमारे लोकतंत्र के पास मात्र तृतीय स्तंभ ही है जो अब तक सरकार की जवाबदेही तय कर रही है, मुझे यह कहने में कोई भय या दबाव बिल्कुल नही है, इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि, हमारे महान लोकतंत्र एवं महान संविधान की नींव, इज्ज़त, लाज, मान, सम्मान एवं सुरक्षा मात्र तृतीय स्तंभ न्यायपालिका पर ही निर्भर है। अच्छा लगे तो अपना लो अपना समझो बुरा लगे भी तो ठुकरा दो बेगाना समझो ©अदनासा- #हिंदी #लोकतंत्र #संविधान #कार्यकारणी #विधायिका #न्यायपालिका #पत्रकारिता #Instagram #Facebook #अदनासा
Manojkumar Srivastava
हाल ही में इलेट्राल बांड मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि इलेक्ट्राल बांड के जरिये राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे की जानकारी हासिल करने का हक आम जनता को है! इसकी सूचना उपलब्ध नहीं करायी जा रही है जो सूचना अधिकार अधिनियम का उल्लंघन है! माननीय बतायेंगे कि न्यायपालिका को सूचना अधिकार अधिनियम से बाहर क्यों रखा गया है? क्या आम जनता को न्यायपालिका के कार्यकलाप और कार्यशैली के बारे में जानने का अधिकार नहीं है ?सोचिये मी लार्ड! ©Manojkumar Srivastava #relaxation #सूचना अधिकार कानून# न्यायपालिका#
Diwan G
जमाना बदला,तौर तरीके भी बदले, बस नहीं बदला तो भारत का कानून। समय के साथ परिवर्तन भी जरूरी है, इंसाफ के इंतजार में खौलता है खून। लंगड़ी न्यायपालिका #Insaaf_kab_milega #इंसाफ #कानून #न्याय #फाँसी #सजा #दोषी #अदालत #मजाक #हद
एक इबादत
हाल ही में कुछ दिन पहले NCRB ने देश की 2020 की आपराधिक रिपॉर्ट जारी किया था, जिसमे विभिन्न प्रकार के अपराधों का उल्लेख है और मैं उन्हीं अपराधों में से ना जाने कितने से अवगत हूँ जिसकी कोई रिपाॅर्ट ना थाने में लिखी गयी,ना मामला न्यायालय तक पहुँचा... यह कोई कहानी नही है हकीकत है ,आज भी ग्रामीण लोग और अशिक्षित लोग और निम्न तबके के लोग अत्याचार,शोषण,अन्य प्रकार की घटनाओं की कोई शिकायत नही करते है...!! #देश के भीतर सिर्फ़ विधायिका हर दम पूर्ण होती है और समस्त शक्तियां वो खुद में समाहित कर लेती है, सब पर अपना नियंत्रण कर लेती है, कार्यपालिका
Laxmi Yadav
" मै पुकारती रही, कृष्ण तुम नही आये " मैं पुकारती रही, कृष्ण तुम नही आये..... माना सदा से विवश रही ममता, माना हर युग मे देवकी- उतरा की व्याकुलता, पर फिर भी तुमने अवतार लिया, सबका तुमने ही उध्हार किया, मैं पुकारती रही, कृष्ण तुम नही आये..... मैं निर्छलि फिर छली गयी सिया समान, अंतर था, सीता ने स्वर्ण मृग देखा और मैंने स्वर्ण फल, यहाँ कलियुग का मानव स्वतः मामा मारीच बना, सारी माया थी उसकी, और जलमग्न हुई मैं, मै पुकारती रही, कृष्ण तुम नही आये. .... धरा पर सर्व प्रथम पूजा होती गजानन विनायक की, मिट्टी के साँचे मे ढाल, मेरे ही प्रारूप की पूजा करते हो, फिर क्यो मेरे गज- वत्स का ये हाल- बेहाल, पूछ रही ये विनायकी, सोच कर हैरान लेते गई जलसमा धी, मैं पुकारती रही, कृष्ण तुम नही आये..... वो तुम्ही थे, केशव जब उत्तरा की कोख पर, अश्वथामा का चला ब्रह्मअस्त्र , तुम दौडे़ दौडे़ आये, बन वंश बीज का कवच, मेरी भी आकुलता थी, बचे मेरा अंग- अंश, वो भी मेरा अभिमन्यु था, कृष्ण, पालन पोषण पर उसका भी हक था, नियति के चक्रव्यूह ने गर्भ मे ही भेदन कर डाला, अंतिम बेला तक निहारती रही, पर कलियुग मे कृष्ण तुम नही आये.......। लक्ष्मी यादव ©Laxmi Yadav # विनायिकी की अंतिम पुकार...