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Jigar parihar (जिગર)
अंजान राही... ये रास्ते गुमनामी बया कर रहे हैं ,झीलमिलाती पेड़ की पतियों से, अपनी दास्ताँन अदा कर रहे हैं, बंजर मकानों मे सिमटते सन्नाटो ने, अपना घेरा बनाया है, हर मुकदमे का वजूद रहा है, हर कोई एक अंजान राही बना हुआ है । चार सत्मभ पर बिमार राही तूट रहा है, अपनी सांसो की गिनती के साथ, पुरानी यादें जोड़ रहा है, अपने नश्वर देह को फिर चार सत्मभ पर छोड़ रहा है, अंजान राही दुनिया से दुरी बना रहा है । अपनो की दुरी याद करता रहेता है,कविता के कणों जोड़ रहा है । #MeraShehar अंजान राही.... लेखक: जिगर परिहार
तृप्ति
एक हद तक सिखा रखा है मैने ख़ुद को हौंसला रखना अब हर हद ही गुजर जाए तो भला क्या करें... जमीं भी सहती है माना सूरज की गर्मी बारिश न आये और वो फट जाए तो भला क्या करें... उम्र भर हुई है यूँ तो आजमाइशें अपनी कोई इम्तिहान अगर बिगड़ जाए तो भला क्या करें... अपनी कोशिशों में हमने कोई कमी न रखी अब फ़िर भी हार जाए तो भला क्या करें... हर बात में है तेरी ही रज़ा ए ऊपर वाले... ये ही कहे और तो हम भला क्या करें... ©तृप्ति #रज़ा
Amit Singhal "Aseemit"
कभी कभी हमको मिलती है उस क़सूर की सज़ा, जो हमने कभी किया न हो, न रही हो हमारी रज़ा। बेवफ़ा ने दिल हमारा तोड़ा, हमने शिकायत नहीं की, फिर भी उसने हमें क़सूरवार मानकर सज़ा हमें ही दी। ©Amit Singhal "Aseemit" #रज़ा
Babli Gurjar
मत पूछ जमाने से जालिम जमाने की रज़ा क्या है चाहत ही सबब हो जिंदगी का तो चाहत की खता क्या है सखी मन की मत सुन कोरी कच्ची बातें मन ही देता दगा है श्रृद्धा सी मुहब्बत दुनिया में आफताब पूणेवाला का गुनाह है बबली गुर्जर ©Babli Gurjar रज़ा
राजेन्द्र प्र०पासवान
तेरी तस्वीर को उस निग़ाहों से देखना मेरी ख़ता है अब तू डँस ले या बदन से लिपट जा तेरी रज़ा है । (ख़ता =भूल, रजा=इच्छा ) रज़ा #क़लम_ए_ख़ास
stranger
ए हुस्न के मालिक बता तेरी रज़ा क्या है हर हाल में कबूल होगी सर झुकाकर बता तो सही तेरे इश्क की सज़ा क्या है #रज़ा #इश्क #सज़ा
zahid zafri
मुझे जमाने से धन दौलत ईjajat तो शान काफि नही है साहेब मेरे माँ बाप की साया ही काफि है @ ©zahid zafri जाहिद रज़ा #fog
waqil ahmad raza
कोई मुझको ऐसा कमाल दे मुझे उलझनों से निकाल दे। करू काम ऐसा जहान में। जहान हमारी मिसाल दे। वकील अहमद रज़ा । ©waqil ahmad raza वकील अहमद रज़ा