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Komal Ahirwar"मूकनायक2"
बलि बकरे की दी जाती है शेर की बलि लेने वाले ही बलि चढ़ जाते हैं। "इसलिये बकरा नही शेर बनो" चमचा या गुलाम नही राजा बनो।
Dosti Ibaadat E Khuda
परम्परा केे नाम पर रावण भी नहीं ... जिन्दा असली, हम जलाते!! नाम पर बलि केे ... मगर, जिन्दा शीश ... क्यों हम है फिर कटाते!! के ख़ामोशी इंसानों की समझता नहीं यहाँ कोई!! बे-जुबानों की भला ... समझेगा क्या फिर कोई!! बलि
Pankaj Priyam
बेजुबान आप ढूंढ़ते रहे स्वाद खून में सदा, जीभ आपकी बलि बेज़ुबान हो गये। नाम चाहे जो रख लो शाहरुख़ या सलमान, हिन्दू के घर जाओ या ले जाये मुसलमान। कहीं मनेगा दशहरा होगी कहीं पे बकरीद, तेरी तो नियति में लिखा हो जाना है कुर्बान। बकरे की अम्मा कबतक खैर मनाएगी, आज नही तो कल गोद सूनी हो जाएगी। नहीं रहमत तेरा न कोई तेरा है भगवान, त्यौहारों की हो तुम बलि मन में लो ठान। नहीं दया किसी कोे भले तुम हो नादान, अपने स्वाद को लोग ले लेते तेरी जान। मगर तुम्हें भी तो है जीने का अधिकार, सबकी खुशियों में तुम हो जाते कुर्बान। ऐश करते आतंकी बनके सरकारी मेहमान, मजे उड़ाते भ्रस्टाचारी लूट के सब अरमान। नेता-मंत्री-संतरी-अफ़सर सब मौज उड़ाते क्यों हो बलि जब किया नहीं तूने नुकसान।। नहीं माँगती बलि कभी सब उसकी संतान, माता के नाम पर क्यूँ लेते हो उसकी जान। दो बलि दुष्कर्मी की,भ्रस्टाचारी आतंकी की- पर मत मारो उन्हें जो निर्दोष बेचारे बेज़ुबान। ©पंकज भूषण पाठक प्रियम बेजुबान बलि
writer_Suraj Pandit
बलि प्रथा कभी सोचा है तुमने, उन जीवो के बारे में। कभी सुना है उसकी चित्कार ? क्यों कर रहे दानव आचरण ? जिसका कभी ना था ऐसा व्यवहार। न लिखी है ग्रंथों में, न है गीत पुराण में, बली तो एक परंपरा थी, क्यों ला रहे इसे धर्म की आड़ में आप् से निवेदन् है कि मेर शो बूक् करे । thank you. ©Suraj Pandit बलि प्रथा
Parasram Arora
बकरीद की बलिदेवी पर बलि चढ़ते हुए बकरे मुस्कराते हुए शहीद होने को सदैव ततपर हैँ और उनकी इस शहादत पर ये इंसान कितना इठलाते हैँ.. खुशियाँ मनाते हैँ गले एक दूसरे से मिलाते हैँ. मुबरकवाद देते है मेरे ख्याल से असली ईद तो उन शहीद हुए बकरो की हैँ जो रोज रोज मरने से बच जाते हैँ जो एक दिन मे एक ही झट्क़े मे कट कर जीवन की खूंखार बेड़ियों से आजाद हो जाते हैँ बलि क़े बकरे.......
vaishnavi Mala
पलकों में अभी तो सपने सजाये थे अभी ही तो किसी को दिल की बात बताई थी माना शैतानियां करती थी वो मगर अब भी तो वो नादाँ थी यैसी भी क्या खता थी उसकी हर सपने को तोड़ दिया उड़ना चाहती थी आसमान में वो क्यों पैरो में बेड़ियाँ डाल दिया था ये समय उसका सपनो को साकार करने की क्यों उस के नन्हे कंधो पे घर की जिम्मेदारियां डाल दिया गांव की हर बेटी का ये ही कहानी होती हैं खुद का बचपन सात फेरो में जला अपने बच्चे ही संभालती हैं ©vaishnavi Mala बचपन की बलि
Ek villain
रावण भी हर पल में ग्रस्त रहता था इससे मुक्ति के लिए वे अपनी मृत्यु शांति और मर्यादा के प्रतीक श्री राम के हाथों चलता था गंज इस आकाशवाणी से डर गया कि बहन देविका का आठवां पुत्र उसका वध करेगा कंस को लगा कि छल छल कि उसकी सतह और बौद्धिकता को श्रीकृष्ण नष्ट कर देंगे लिहाजा उसका मन डर गया दृश्य राज और उनकी पुत्री ने भी रिश्तेदारों को दरकिनार एकर पांडवों के हिस्से हथिया लिए श्रीकृष्ण को इसके लिए भी युद्ध में कूदना पड़ा ©Ek villain #मनुष्य यदि राजा बलि रावण कंस और दुर्योधन बनेगा तो उनके जैसा ही उसका भी वध होगा #Moon