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RAJ RAAJ

ईश्वर कैसा है ? 
ये जान लिया इंसान ने
सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, , अनश्वर 
पर 
ईश्वर नही जान पाया 
इंसान कैसा है ! 

पंकज राज

©RAJ RAAJ #मीमांसा

Amit Singhal "Aseemit"

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Alam Aftab

#Drown मीमांसा #Poetry

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मीमांसा

वो मुझे 
सदैव
गुलाब के समक्ष मिला
जबकि उसे माली के 
समक्ष  होना चाहिए था

©Alam Aftab #Drown मीमांसा

प्रभाकर अजय शिवा सेन

जग का पर्यावाची #Roses

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जग की पर्यावाची मघा😁😁😁😂😄😅

©प्रभाकर अजय शिवा सेन जग का पर्यावाची 

#Roses

Sudhanshu

# मोक्ष मीमांसा

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इस दुनिया के होने पे मुझे बिलकुल भी अचरज नहीं होता ,
और नाही इसके " ऐसे " होने पे  ताज़ूब का ख्याल ही पैदा होता ।
कि किसी के भी हिस्से में भी जो ये जिम्मा होता ,
ना इस से बेहतर कुछ पश्माने ए शमा होता ।
कि मंजर भी यही होता , उसका बायां भी यूंही होता ,
हां माटी के ही बुत होते  , रंग भी चहुं ओर यही पुता होता ,
जज़्बात इसी सरीखे भरा होता , हालात भी कुछ यूंही होता ।
द्वंद परस्पर हर ख्याल में , असमंजस का हाल भी यूंही होता , सवाल  यही , भ्रमों का मायाजाल  यही होता ।
सारा ताना बाना और फ़साना भी यूंही सजा होता ,
 जाल बिछे इस मार्ग में धाराओं का प्रवाह यही, बह चलने का द्वार यही होता ।
राह में ठहराव भी ऐसे बने होते , लगाव भी यही होता अलगाव भी यूंही होता,
भोग और वियोग के जड़ों का जोड़ ऐसे ही एक  होता ,
भय और लोभ का गठजोड़ का सोज भी यूंही बुना होता ।

हां! होते ऐसे ही मौजूद साधन भी प्रसाधन भी , भरमाने को ललचाने को ,
कृपार्थ भी कृतार्थ भी , अर्थ और  स्वार्थ यही , पदार्थ यही  होता ,
दृष्टा समक्ष खुद से खुदी छले जाने का विहंगम दृश्य भी यही हो होता।

बेबस हालातों से लड़ती भूख भी होता , आंखे बंद  खुदाई ढूंढती भीड़ की दौड़ यही सम्मलित होता ,
और इन दृश्यों के दर्शक भी सभी , मंजर ये सारे सुलझाने में लगे पथप्रदर्शक भी,  यही होता। # मोक्ष मीमांसा

Parasram Arora

पर्यायवाची...... #शायरी

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खून को पानी का पर्यायवाची  मत मान. लेना
अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै 

उस बसती मे  सच  बोलने का रिवाज  नही है
यहां कोई भी  आदमी  सच.को  झूठ बना कर पेश कर सकता है

ताउम्र अपना  वक़्त   दुसरो की भलाई मे  खर्च करता रहा वो
ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही   सकता है

©Parasram Arora पर्यायवाची......
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