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||स्वयं लेखन||
कल शाम की बात है फिर वही जज़्बात है, फ़िर वही अश्क हैं,बस तुम नहीं थे। ©||स्वयं लेखन|| कल शाम की बात है फिर वही जज़्बात है, फ़िर वही अश्क हैं, बस तुम नहीं थे। #कविता #कहानी #प्यार
vidrohi
Neha Pant Nupur
श्री गीत गोविंदम 🙏 ©Neha Pant Nupur #GeetGovind 🌹 श्री गीतगोविन्द काव्य में जयदेव ने जगदीश का ही जगन्नाथ, दशावतारी, हरि, मुरारी, मधुरिपु, केशव, माधव, कृष्ण इत्यादि नामों से उल्
vaishnavi Mala
सबसे अज़ीज़ थे पर, प्यार आपका ख्वाहिश थी हमारी साथ आपका उम्मीद थी हमारी सबसे अज़ीज थे आप हमें पर शायद आपसे दूर जाना किश्मत थी हमारी उदाशी में आप मुस्कान थे गम के अँधेरे में एक उजाला मेरे इस तन्हा जीवन का आप ही थे सहारा दुनिया के भीड़ में सबसे अज़ीज थे आप मगर इस भीड़ ने हम दोनों को बिछाड़ा सबसे अज़ीज थे आप #कविता
poetry_expression_thought
मैं ने देखा जो ये नज़ारा कि हौसलों के कंधे झुके हुए थे दर्द दिल में ऐसा उट्ठा मानो दिल में जखम होए थे हौसलों के झुके जो कंधे, तो सुब्ह होगी न शाम होगी न आसमाँ पे वो तारे होगें, जो पिछली शब में चमक रहे थे न फत्ह होगी ना जीत होगी, उमंग होगी न तरंग होगी बस एक ठंढी राख होगी, कि गोया शोले बुझे हुए थे ©poetry_expression_thought हौसले जो झुके हुए थे #शायरी #शायर #कविता #कविता #Quote #shayeri
poetry_expression_thought
मैं ने देखा जो ये नज़ारा कि हौसलों के कंधे झुके हुए थे दर्द दिल में ऐसा उट्ठा मानो दिल में जखम होए थे हौसलों के झुके जो कंधे, तो सुब्ह होगी न शाम होगी न आसमाँ पे वो तारे होगें, जो पिछली शब में चमक रहे थे न फत्ह होगी ना जीत होगी, न उमंग होगी न तरंग होगी बस एक ठंढी सी राख होगी, कि गोया शोले बुझे हुए थे ©poetry_expression_thought हौसले जो झुके हुए थे #शायरी #शायर #कविता #कविता #Quote #shayeri
Rajesh Raana
हम भी कभी बच्चें थे , थोड़े कच्चे कच्चे थे , देख खिलौना रोती आँखें , आँसू सच्चे सच्चे थे , हम भी कभी बच्चे थे । दिनभर घुमाघामी करते , बाग से तितली रोज पकड़ते , 10 पैसे दो , नाक रगड़ते , दिन वो कितने अच्छे थे , हम भी कभी बच्चे थे । दिनभर खाते खूब अघाते मां को हम कितना भाते , बस्ता टांगे स्कूल जाते , मास्टर जी से मार खाते , गोटियों के गच्चे थे , हम भी कभी बच्चे थे । मां के हाथ स्वेटर बुनते , दादी से कहानी सुनते , बागों से हम फुल चुनते , मार खाकर भी हंसते थे , हम भी कभी बच्चे थे । दिनभर धींगामस्ती थी , कागज़ की एक कस्ती थी , खुशियां कितनी सस्ती थी , अपनी छोटी सी हस्ती थी , संग दोस्त , लट्टू और कंचे थे , हम भी कभी बच्चे थे , कितने सच्चे सच्चे थे । - राजेश राणा ©Rajesh Raana हम भी कभी बच्चे थे.... #poem #कविता