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Rishu

#yqbaba #yqdidi #निष्क्रियता साक्षीदृष्टा।

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कभी कभी समय निकाल कर निष्क्रिय हुआ कीजिए,
इस जीवन,संसार मे, जो हर क्षण अत्यधिक सक्रिय है,
सन्तुष्टता प्रदत्त है निष्क्रियता,भय और इच्छा बाधा है,
साक्षीपन का अभ्यास आवश्यक यदि जीवन प्रिय है,

प्रायः निष्क्रियता अभ्यास है चेतना को मुक्त करने का,
परिस्थितियों पर से नियंत्रण खोने की सचेत प्रक्रिया है,
साहस और विश्वास अति आवश्यक है,आंनद के लिए,
परिवर्तन को सहज स्वीकारना ही योगी की दिनचर्या है,

निष्क्रियता में अंतर्मन के द्वन्दों पर ध्यान दिया कीजिए,
हृदय को खोलने, व्यक्त करने का पूर्ण अभ्यास कीजिए,
श्रेष्ठता की बजाए,सत्यता को जीवन का केंद्र बिंदु बनाएं,
कभी उपरोक्त अभ्यास पूर्वनियोजित और कभी अनायास कीजिए 

साक्षीदृष्टा भव:🤚
 #yqbaba #yqdidi #निष्क्रियता #साक्षीदृष्टा।

HP

चिंतन के क्षण

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Chintan Ke Kshan
 चिंतन के क्षण 

महिलाएँ शिक्षा प्राप्त करें, ज्ञानार्जन करें, विचारवान् बनें तभी तो उनसे यह आशा की जा सकती है कि वे परिवार में और समाज समें अपने उत्तरदायित्वों को भलीभाँति निबाह सकेंगी।  यदि इन आवश्यक तत्त्वों की ओर से ध्यान हटाकर आभूषण प्रियता की संकीर्ण विचारधारा को ही अपनाया जाता रहा तो कर्त्तव्य पालन में व्यवधान आना स्वाभाविक है। नारी के विकास में बाधा स्वरूप इस कुरीति के प्रति अब अरुचि उत्पन्न होनी चाहिए और विचारशील महिलाओं को इस दिशा में कुछ करने के लिए तत्पर होना चाहिए। 

यदि नारी की क्षमता को जगाया जाय, उसे योग्य बनाने की ओर ध्यान दिया जाय तो न केवल हमारे परिवार में स्वर्गीय वातावरण की सृष्टि हो सकेगी, वरन् समाज के लिए भी कई दृष्टियों से लाभकर स्थिति बन सकती है। गृह-व्यवस्था को सँभालने के बाद उसके पास जो समय बचता है वह बाहरी प्रयोजनों में ही तो लगेगा और जाग्रत् शक्ति क्षमतावान् नारी अपनी योग्यता से समाज के लिए सुखद परिस्थितियाँ तथा प्रगतिशील वातावरण बना सकेगी। 

परिवार निर्माण का परोक्ष अर्थ है-नारी जागरण। अर्द्ध मूर्छि, पददलित, आलस्य, प्रमाद और पिछड़ेपन से ग्रस्त नारी अपने लिए और परिवार के लिए भार ही रहती है। रोटी, कपड़ा, पाती और बदले में रसोईदारिन, चौकीदारिन, जननी, धात्री और चलती-फिरती गुड़िया की हलकी भारी भूमिका निभाती है। इस पिछड़ेपन के रहते वह परिवार निर्माण जैसे असाधारीण कार्य को संपन्न कैसे कर सकेगी। इसके लिए सूझबूझ, संतुलन, अनरवत प्रयास की आवश्यकता पड़ती है। योजना का स्वरूप, परिमाण एवं अवरोधों का समाधान भी उसके सामने आना चाहिए। 

दुष्ट प्रचलनों में सर्वनाशी है-विवाहोन्माद। खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। दहेज के लेन-देन में कितने घर-परिवार बर्बाद हुए और दर-छर के भिखारी बने हैं इसका बड़ा मर्मभेदी इतिहास है। बारात की धूमधाम, आतिशबाजी, गाजे-बाजे, दावतें, दिखावे, प्रदर्शन में इतना अपव्यय होता है कि एक सामान्य गृहस्थ की आर्थिक कमर ही टूट जाती है। लड़की का माँस बेचने वाला दहेज के व्यवसायी अपने मन में भले ही प्रसन्न होते और नाक ऊँची देखते हों, पर यदि विवेक से पूछा जाय तो इन अदूरदर्शियों के ऊपर दसों दिशाओं से धिक्कार ही बरसती दिखेगी। विवेकवान् युवकों का कर्त्तव्य है कि दहेज न लेने, धूमधाम की शादी स्वीकार न करने की प्रतिज्ञा आन्दोलन चलायें और उस व्रत को अभिभावकों की नाराजगी लेकर भी निभायें। चिंतन के क्षण

HP

चिंतन के क्षण

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👉 Chintan Ke Kshan
         चिंतन के क्षण 

स्वार्थी व्यक्ति यों किसी का कुछ प्रत्यक्ष बिगाड़ नहीं करता, किन्तु अपने लिए सम्बद्ध व्यक्तियों की सद्भावना खो बैठना एक ऐसा घाटा है, जिसके कारण उन सभी लाभों से वंचित होना पड़ता है जो सामाजिक जीवन में पारस्परिक स्नेह-सहयोग पर टिके हुए हैं।

ईश्वर को इस बात की इच्छा नहीं कि आप तिलक लगाते हैं या नहीं, पूजा-पत्री करते हैं या नहीं, भोग-आरती करते हैं या नहीं, क्योंकि उस सर्वशक्तिमान् प्रभु का कुछ भी काम इन सबके बिना रुका हुआ नहीं है। वह इन बातों से प्रसन्न नहीं होता, उसकी प्रसन्नता तब प्रस्फुटित होती है जब अपने पुत्रों को पराक्रमी, पुरुषार्थी, उन्नतिशील, विजयी, महान् वैभव युक्त, विद्वान्, गुणवान्, देखता है और अपनी रचना की सार्थकता अनुभव करता है।

आनंद का सबसे बड़ा शत्रु है- असंतोष। हम प्रगति के पथ पर उत्साहपूर्वक बढ़ें, परिपूर्ण पुरुषार्थ करें। आशापूर्ण सुंदर भविष्य की रचना के लिए संलग्न रहें, पर साथ ही यह भी ध्यान रखें कि असंतोष की आग में जलना छोड़ें। इस दावानल में आनंद ही नहीं, मानसिक संतुलन और सामर्थ्य का स्रोत भी समाप्त हो जाता है। असंतोष से प्रगति का पथ प्रशस्त नहीं, अवरुद्ध ही होता है।

किसी को यदि परोपकार द्वारा सुखी करते हैं और किसी को अपने क्रोध का लक्ष्य बनाते हैं, तो एक ओर का पुण्य दूसरी ओर के पाप से ऋण होकर शून्य रह जायेगा। गुण, कर्म, स्वभाव तीनों का सामंजस्य एवं अनुरूपता ही वह विशेषता है, जो जीवन जीने की कला में सहायक होती है।

ऐसे विश्वासों और सिद्धान्तों को अपनाइये जिनसे लोक कल्याण की दिशा में प्रगति होती हो। उन विश्वासों और सिद्धान्तों को हृदय के भीतरी कोने में गहराई तक उतार लीजिए। इतनी दृढ़ता से जमा लीजिए कि भ्रष्टाचार और प्रलोभन सामने उपस्थित होने पर भी आप उन पर दृढ़ रहें, परीक्षा देने एवं त्याग करने का अवसर आवे तब भी विचलित न हों। वे विश्वास श्रद्धास्पद होने चाहिए, प्राणों से अधिक प्यारे होने चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य चिंतन के क्षण

Prakash Aditya

#विदाई के क्षण #कविता #nojotophoto

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 #विदाई  के  क्षण

Parasram Arora

प्यास के क्षण

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तुम  नहीं हो  पर  तुम्हारी 
छाँव  नयन मे  तैरती हैँ 
तुम  नहीं हो   पर  तुम्हे 
हर  एक  धड़कन   टेरती    हैँ 
कब   न  जाने  खत्म  होंगे 
प्रीती के  वनवास  के  क्षण 
ये  अमिट  सी  प्यास के  क्षण... प्यास  के क्षण

Arora PR

विषाद के क्षण #कविता

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Shashank मणि Yadava "सनम"

माँ के अस्तित्व को परिभाषित करती हुई कविता,,, dedicated to all mothers

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RiChA SiNgH SoMvAnShI

"निष्क्रिय - बेरोजगार" #yqbaba #yqdidi #निष्क्रियता #writingislove

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अंत: हृदय का है, असीमित सवाल,
निष्क्रिय व्यक्ति है, जीवित सामान ।  "निष्क्रिय - बेरोजगार"
#yqbaba #yqdidi 
#निष्क्रियता
#writingislove

Rahul Ashesh

जिस क्षण तुम स्वयं को...

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जिस क्षण तुम स्वयं को देख रहे होते हो 
उस क्षण तुम सौ आलोचक 
और हज़ार प्रेरकों के बराबर होते।

©Rahul Ashesh जिस क्षण तुम स्वयं को...

Ajay Daanav

प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता। #कविता

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हृदय से उपजे विचार हो तुम
शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम
करती हुई झंकृत मन-वीणा
सातों सुरों की झनकार हो तुम
हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी
कविता का मेरी सार हो तुम
हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
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