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Farman Mehdi
मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई, उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया। परवीन शाकिर.
Anand Mishra
है समय ये हास का,उल्लास का , मानवता के सौहार्द का! ये साथ नही थे छूटे, और ना ही हैं अब रूठे, आओ एक साथ मस्ज़िद में चलें, और दिल खोलकर रामायण पढ़ें, कुछ बातें हो मोहम्मद साहब की, और तुलसी की जबान हो, हम दोनों की बोली में, क़ुरान की आन हो।। ईश्वर-अल्ला करे जब हम छूटें, तो वो कयामत की रात हो। हम साथी है व्यवहार के, त्योहार की लचकार के, हमारी अनेकता में एकता का, इश्क तुम्हारी श्रद्धा का, हे साथी अब ना रुठे, मान हमारी तिरंगा का।। हिन्दू-मुस्लिम भाइ भाई।।
Dk bhati
कुछ तो हवा भी सर्द थी _कुछ था तिरा ख़याल भी दिल को ख़ुशी के साथ साथ _होता रहा मलाल भी बात वो आधी रात की_ रात वो पूरे चाँद की चाँद भी ऐन चैत का _उस पे तिरा जमाल भी सब से नज़र बचा के वो _मुझ को कुछ ऐसे देखता एक दफ़ा तो रुक गई _गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी दिल तो चमक सकेगा क्या _फिर भी तराश के देख लें शीशा-गिरान-ए-शहर के_ हाथ का ये कमाल भी उस को न पा सके थे जब _दिल का अजीब हाल था अब जो पलट के देखिए_ बात थी कुछ मुहाल भी मेरी तलब था एक शख़्स__ वो जो नहीं मिला तो फिर हाथ दुआ से यूँ गिरा______ भूल गया सवाल भी उस की सुख़न-तराज़ियाँ ___मेरे लिए भी ढाल थीं उस की हँसी में छुप गया___ अपने ग़मों का हाल भी शाम की ना-समझ हवा____ पूछ रही है इक पता मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी ##परवीन शाकिर #steps
Preet
अब उस का फ़न तो किसी और से मनसूब हुआ मैं किस की नज़्म अकेले में गुन्गुनाऊँगी [मनसूब= जुडा हुआ] जवज़ ढूंढ रहा था नई मुहब्बत का वो कह रहा था के मैं उस को भूल जाऊँगी [जवज़=कारण] *परवीन शाकिर* परवीन शाकिर की शायरी