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Shubham Anand Manmeet
एक क़िरदार मेरे साथ वो यूँ निभाता रहा तमाशा खुद करे, इल्ज़ाम मुझ पर लगाता रहा मैं खमोश भी न रहता , तो भला क्या करता क़ातिल ही जब क़त्ल के बाद शोर मचाता रहा मैं जुवां खोल देता, तो बदनाम मोहब्बत होती भरी महफ़िल वो उंगलियां, मुझपर उठाता रहा वो जिसके वास्ते ,ज़माने भर की रंजिशें हुई गैर की महफ़िल में दोस्त वो , रंग जमाता रहा ये और बात थी ,उसे खुद के ऐब न दिखे और बात है कि आईना लोगो को दिखाता रहा वो जो मेरा होकर, भी मेरा नही था मीत उम्रभर उसी शख्स, को मैं अपना बताता रहा ©Shubham Anand Manmeet एक क़िरदार मेरे साथ वो यूँ निभाता रहा तमाशा खुद करे, इल्ज़ाम मुझ पर लगाता रहा मैं खमोश भी न रहता , तो भला क्या करता क़ातिल ही जब क़त्ल के बाद
Zoga Bhagsariya
Zoga Bhagsariya
Zoga Bhagsariya
काबिल"ए" हसद , हूं , हलाक़ मैं , खरा नहीं खोटा , हूं , ख़ाक मैं,,,,,, बे हया ,बदनाम , ,हूं शर्मनाक मैं , बेलियाकत, हूं मरदुदो - नापाक मैं , किसको करवाएं , तार्रुफ "ए" तहजीब, काला ,मेला ,हूं ,खुद ही , कटा नाक मैं ,,, ना हिंदी का इल्म ,ना उर्दू का ,,मगर महफ़िल ए हयात जमाता ,हूं धाक मैं ,,, डूबने में तस्कीन है , गर यकीन है , जोगा इस मामले ,हूं तपाक मैं ,,,,,,,,।। قابلِ حسد ہُوں ہلاک میں ، خرا نہیں کھوٹا ،ہو خاق میں ۔ نے حیا ، بد نام ،ہو شرمناک میں ، نے لیاقت ،ہو ،مردودو ناپاک میں ۔ کیسکو کروائے ،تعارف ع ،تہذیب ، کالا میلا ،ہو خود ہی ک ٹا ،ناک میں۔ نہ ہندی کہ علم نہ ،اُردو کا ، مگر محفلِ حیات جماعۃ ،ہو دھاک میں ۔ ڈوبنے میں تسکین ہے ،گر یقین ہے، زو گا اس معاملے ،ہو تپاک میں ۔۔ ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI KAFIR ZOGA GULAM.. काबिल"ए" हसद , हूं , हलाक़ मैं , खरा नहीं खोटा , हूं , ख़ाक मैं,,,,,, बे हया ,बदनाम , ,हूं शर्मनाक मैं , बेलियाकत, हूं मरदुदो - नापाक मैं ,
Viral King
कितना मतलबी हूं ना मैं !!! (अनुशीर्षक पढ़े) कितना मतलबी हूं ना मैं, सिर्फ अपनी ही तकलीफें बयां करता रहा, तुम्हारी तकलीफों को जानना तक जरूरी नहीं समझा !! सिर्फ अपने ही आंसू तुम्हें दिख
विचार पुंज
N.Sharma
Red 👇 👇 👇 👇 #Family एक तोलिये से पूरा घर नहाता था दूध का नंबर बारी बारी आता था छोटा माँ के पास सो कर बहोत इत्तराता था, पिताजी की मार का डर सबको सताता
अतुल कुमार सिंह
बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला पूरी कविता कैप्शन में पढ़िए बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला जैसे तैसे रातें अगहन की बीतीं ठंड ने था मानों ठान लिय
Sanket Bharti
जरा पूरा पढ़ो। मजा तो comment करो मेरे दोस्त का जीवन भी गुलजार हुआ। जब उसे प्यार हुआ। कन्या थी,वो चंचल फोन पर मिली थी। जिसे देख मेरे मित्र की बाहे खिली थी। बातों में उसके ,