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Shaarang Deepak
भाग्य श्री बैरागी
मैं भारत हूॅं कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें 🧡⚪🟩2🧡⚪🟩 मैं ब्रम्हा के सृजन में हूॅं, नारायण के चालन में हूॅं, डमरू की झंकार, मैं हूॅं। मैं भारत हूॅं,,, मैं भारत हूॅं,,,
Vikas Sharma Shivaaya'
'गरुड़:- गिद्ध की जाति का एक प्रकार का बहुत बड़ा पक्षी जो पुराणों में पक्षियों के राजा भगवान विष्णु का वाहन कहा गया है..., सफेद रंग का एक प्रकार का जल पक्षी जिसे पड़वा ढेक भी कहते हैं..., प्राचीन भारत की एक प्रकार की सैनिक व्यूह रचना..., गरुड़ कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की सन्तान हैं..., गरुड़ प्रतीक है दिव्य शक्तियों और अधिकार का-भगवद् गीता में कहा गया है कि भगवान विष्णु में ही सारा संसार समाया है..., विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 598 से 609 नाम 598 संक्षेप्ता संहार के समय विस्तृत जगत को सूक्ष्मरूप से संक्षिप्त करने वाले हैं 599 क्षेमकृत् प्राप्त हुए पदार्थ की रक्षा करने वाले हैं 600 शिवः अपने नामस्मरणमात्र से पवित्र करने वाले हैं 601 श्रीवत्सवक्षाः जिनके वक्षस्थल में श्रीवत्स नामक चिन्ह है 602 श्रीवासः जिनके वक्षस्थल में कभी नष्ट न होने वाली श्री वास करती हैं 603 श्रीपतिः श्री के पति 604 श्रीमतां वरः ब्रह्मादि श्रीमानों में प्रधान हैं 605 श्रीदः भक्तों को श्री देते हैं इसलिए श्रीद हैं 606 श्रीशः जो श्री के ईश हैं 607 श्रीनिवासः जो श्रीमानों में निवास करते हैं 608 श्रीनिधिः जिनमे सम्पूर्ण श्रियां एकत्रित हैं 609 श्रीविभावनः जो समस्त भूतों को विविध प्रकार की श्रियां देते है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 'गरुड़:- गिद्ध की जाति का एक प्रकार का बहुत बड़ा पक्षी जो पुराणों में पक्षियों के राजा भगवान विष्णु का वाहन कहा गया है..., सफेद रंग का एक प्
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KP EDUCATION HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for ©KP EDUCATION HD बुध प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष व्रत में शिव पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 12 मिनट से रात 08 बजकर 36
Vikas Sharma Shivaaya'
*🛕ॐनमःशिवाय का रहस्य 🛕* क्यों हमे बार बार नमः शिवाय / ॐ नमः शिवाय बोलना चाहिए ॐ नमः शिवाय सिर्फ एक मन्त्र नही, हमारी उत्तपत्ति है.... यह हमारे जीवन को पहचान देता है.... ॐ हमारा निराकार रूप दर्शाता है... जब शून्य था और कुछ नही था तब सबसे पहले ज्योति के साथ "ॐ" की ध्वनि उतपन्न हुई थी यह दर्शाता है कि तुम ही ज्योति हो... तुम ही निराकार हो... तुम ही अनन्त हो... नमः शिवाय तुम्हारे साकार रूप को दर्शाता है... यह मन्त्र तुम्हारे पांच तत्वों को प्रदर्शित करता है... न - पृथ्वी तत्व🌎 म - जल तत्व 💧 शि- अग्नि तत्व🔥 वा - वायु तत्व 🌪 य. - आकाश तत्व☄️ नमः शिवाय दर्शाता है तुम्हारे पांचो शरीरो को अन्नमय कोष (न) प्राणमय कोष (म) मनोमयकोष (शि) ज्ञानमयकोश (वा) आंनन्दमयकोश (य) नमः शिवाय तुम्हें याद दिलाने के लिए है... कि तुम्हे अब "ॐ"तक की अपनी यात्रा को पूर्ण करना है साकार से अपने निराकार रूप तक की.. नर से नारायण तक की.. यात्रा को पूर्ण करना है । नमः शिवाय के निरन्तर जप से हमारी तत्व शुद्धि होती है, हमारे कर्म कटते है और हमारा मन पवित्र होता है... सभी को क्षमा करना, सभी को स्वीकार करना, सभी को निश्चल प्रेम देना विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 800 से 811 नाम 800 सुवर्णबिन्दुः जिनके अवयव सुवर्ण के समान हैं 801 अक्षोभ्यः जो राग द्वेषादि और देवशत्रुओं से क्षोभित नहीं होते 802 सर्ववागीश्वरेश्वरः ब्रह्मादि समस्त वागीश्वरों के भी इश्वर हैं 803 महाहृदः एक बड़े सरोवर समान हैं 804 महागर्तः जिनकी माया गर्त (गड्ढे) के समान दुस्तर है 805 महाभूतः तीनों काल से अनवच्छिन्न (विभाग रहित) स्वरुप हैं 806 महानिधिः जो महान हैं और निधि भी हैं 807 कुमुदः कु (पृथ्वी) को उसका भार उतारते हुए मोदित करते हैं 808 कुन्दरः कुंद पुष्प के समान शुद्ध फल देते हैं 809 कुन्दः कुंद के समान सुन्दर अंगवाले हैं 810 पर्जन्यः पर्जन्य (मेघ) के समान कामनाओं को वर्षा करने वाले हैं 811 पावनः स्मरणमात्र से पवित्र करने वाले हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' *🛕ॐनमःशिवाय का रहस्य 🛕* क्यों हमे बार बार नमः शिवाय / ॐ नमः शिवाय बोलना चाहिए ॐ नमः शिवाय सिर्फ एक मन्त्र नही, हमारी उत्तपत्ति है.... यह
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥ हे रावण! मोह् का मूल कारण और अत्यंत दुःख देने वाली अभिमान की बुद्धि को छोड़ कर कृपा के सागर भगवान् श्री रघुवीर कुल नायक रामचन्द्रजी की सेवा कर ॥23॥ (मोह ही जिनका मूल है ऐसे बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो) श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी के सच्चे वचन अहंकारी रावण की समझ में नहीं आते है जदपि कही कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥ बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥ यद्यपि हनुमान जी रावण को अति हितकारी और भक्ति, ज्ञान,धर्म और नीति से भरी वाणी कही,परंतु उस अभिमानी अधम के उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥इससे हँसकर बोला कि हे वानर!आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥ रावण हनुमानजी को डराता है मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥ उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥ हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है. सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं आ गयी है?॥रावण के ये वचन सुन हनुमान् ने कहा कि इससे उलटा ही होगा (अर्थात् मृत्यु तेरी निकट आई है, मेरी नही)।हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम (मतिभ्रम) स्पष्ट रीति से जान लिया है॥ रावण हनुमानजी को मारने का हुक्म देता है सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥ सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥ हनुमान् के वचन सुन कर रावण को बड़ा कोध आया,जिससे रावण ने राक्षसों को कहा कि हे राक्षसो! इस मूर्ख के प्राण जल्दी ले लो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥इस प्रकार रावण के वचन सुनते ही राक्षस मारने को दौड़ें तब अपने मंत्रियोंके साथ विभीषण वहां आ पहुँचे॥ विभीषण रावणको दुसरा दंड देने के लिए समझाता है नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥ आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥ बड़े विनय के साथ रावण को प्रणाम करके बिभीषणने कहा कि यह दूत है इसलिए इसे मारना नही चाहिये क्यों कि यह बात नीतिसे विरुद्ध है॥ हे स्वामी! इसे आप कोई दूसरा दंड दे दीजिये पर मारें मत।बिभीषण की यह बात सुनकर सब राक्षसों ने कहा कि हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥ रावण हनुमानजी को दुसरा दंड देने का सोचता है सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर॥ रावण इस बात को सुन कर बोला कि जो इसको मारना ठीक नहीं है,तो इस बंदर का कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 897 से 908 नाम ) 897 सनातनतमः जो ब्रह्मादि सनतानों से भी अत्यंत सनातन हैं 898 कपिलः बडवानलरूप में जिनका वर्ण कपिल है 899 कपिः जो सूर्यरूप में जल को अपनी किरणों से पीते हैं 900 अव्ययः प्रलयकाल में जगत में विलीन होते हैं 901 स्वस्तिदः भक्तों को स्वस्ति अर्थात मंगल देते हैं 902 स्वस्तिकृत् जो स्वस्ति ही करते हैं 903 स्वस्ति जो परमानन्दस्वरूप हैं 904 स्वस्तिभुक् जो स्वस्ति भोगते हैं और भक्तों की स्वस्ति की रक्षा करते हैं 905 स्वस्तिदक्षिणः जो स्वस्ति करने में समर्थ हैं 906 अरौद्रः कर्म, राग और कोप जिनमे ये तीनों रौद्र नहीं हैं 907 कुण्डली सूर्यमण्डल के समान कुण्डल धारण किये हुए हैं 908 चक्री सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए मनस्तत्त्वरूप सुदर्शन चक्र धारण किया है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान