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Shivam Prajapati
गली-गली मैं ढूंढ रहा हूं अपने उस अफसाने को, नजरें मुझसे छुपा रही है जाने किन-किन बहनों से, एक मर्तबा फिर से आजा गांव के उस तालाबों पे, बैठकर कुछ तो बातें कर ले बिछड़े अपने परवाने से... @ शिवम्...श... #तालाब_का_किनारा....
गौरव 'हिन्दुस्तानी'
उदर की तालाबन्दी रात के तकरीबन 3 बज रहे होंगे कि अचानक पेट की पीड़ा से आँख खुल गयी। पीड़ा भी ऐसी कि किसी तरह लुंगी सम्भालते हुए गुसलख़ाने की तरफ भागा। 15 मिनट तक गुसलख़ाने में मेहनत करने के बाद जब बाहर आये, तब भी दर्द में कोई फ़र्क नहीं पड़ा। घर मे दर्द की पड़ी दवाईयाँ भी खा लिए लेकिन दर्द ऐसे कुंडली मार कर बैठा था जैसे उसका स्थायी पता यही हो। दर्द के इस आलम में बरबस ही मुँह से निकल पड़ा "साला ये कौन सी मुसीबत आन पड़ी।" तभी आकाशवाणी की तरह ही उदरवाणी हुई, कुछ गड़-गड़ाहट, कुछ फुस्सा-फुसी और कुछ परपराहट के बाद एक स्पष्ट आवाज़ कानों में आयी.... उदरवाणी- "बस चंद मिनटों की पीड़ा तुम्हें मुसीबत लगने लगी और मुझे जो पिछले 16 दिनों से लगातार पीड़ा दे रहे हो उसका क्या ?" मैं- "मैंने कौन सी पीड़ा दी तुम्हें ?" उदरवाणी- "पापी एक तो पाप करते हो और अब अन्जान बन रहे हो" मैं- "पाप ? मैंने कौन सा पाप किया ?" उदरवाणी- पिछले 16 दिनों से बैठे बैठे जो घास फूस मुझमें भर रहे हो, वो पाप नहीं तो क्या है ? मैं- "भाई वो तो शुद्ध सात्विक भोजन है।" उदरवाणी- "भाई मत बोल, भाई बोलने का हक़ खो दिया तूने और क्या शुद्ध सात्विक भोजन बे साले। बड़ा संत बन रहा है तू ? उतने दिनों से जो लज़ीज़ माँस और अमृत समान मदिरा का सेवन करा रहा था क्या वो पाप था चू..." मैं- (बीच में रोकते हुए) "ओये अपशब्द मत बोल।" उदरवाणी- "अबे चुप चूड़ा के छटे हुए कचड़े, ये बता मेरी ख़ुराक मुझे देता है या बढ़ाऊँ अपना टॉर्चर?" मैं- "अरे यार इस तालाबंदी में मैं तेरी ख़ुराक कहाँ से लाऊँ ?" उदरवाणी- "साले आम के अचार के गुठली ये भी मैं ही बताऊँ ? मुझे इनकी आदत लगाने से पहले सोचना था तुम्हें।" मैं- "अरे यार गलती हो गयी मुझसे, आगे से ध्यान रखूँगा। लेकिन अभी मुझे इस पीड़ा से मुक्त कर दे मुझसे सहन नहीं हो रहा।" उदरवाणी- "सुन बे चिमण्डी से शक्ल के मेरा ख़ुराक मुझे दे वर्ना वो हश्र करूँगा कि उदर की तालाबंदी करना भूल जाएगा।" ........और तभी एक जोर के गड़-गड़ाहट, कुछ फुस्सा-फुसी और कुछ परपराहट के साथ मेरी आँखें खुल गयी और मैं भागता हुआ गुसलख़ाने में घुसा। ✒️गौरव 'हिन्दुस्तानी' #उदर #तालाबन्दी #हास्य_व्यंग्य
Rohan Roy
बूंदों को तालाब बनते देखा है। तालाबों को दरिया बनते देखा है। दरिया को समंदर बनते देखा है। समुद्र में लहरे उठते देखा है। तुम बूंदों की औकात पूछते हो। ये बूंदे ही तो लहरों का जरिया है। मैंने इन लहरों में, जर्रे-जर्रे को मिलते देखा है। ©Rohan Roy बूंदों को तालाब बनते देखा है। तालाबों को दरिया बनते देखा है | #RohanRoy | #dailymotivation | #inspirdaily | #motivation_for_life | #rohanro
प्रदीप राज खिन्ची
हजारों मन मे ये विचार दे रही है , रोटी क्या सरकार दे रही है। भूख प्यास अब क्षमता का इम्तिहान, साहब महामारी क्या बेरोजगार दे रही है। हजारो मन में ये विचार दे रही है, रोटी क्या सरकार दे रही है .... मन करता है सभी का रहे सुरक्षित घर पर, रास्तों पर हुजूमो को क्या लाचारी दे रही है। बेच आए थे गाँव की जमीनें और दुकान शहर में, वापस पिता की फूसी छत सुख नवाबी दे रही है। हजारो मन में ये विचार दे रही है, रोटी क्या सरकार दे रही है .... सरकारी इंतजामात हैं न निकलें घरो से, पहरा पुलिस का क्या सजा दूर्गामी दे रही है। उपचार न सूझा उपाय यही इक वरना, दस्तक बीमारी की सूनामी दे रही है। हजारो मन में ये विचार दे रही है, रोटी क्या सरकार दे रही है ....prk ©प्रदीप राज खिन्ची #Morning तालाबंदी का दर्द
Neophyte
हुस्न नही इन्हें सीरत का नक़ाब समझिए इनपर मरने वाले इसे ख़ुदा का अज़ाब समझिए क्यों इसे सूरत-ए-हक़ीक़त कहते है लोग इसे टूट जाने वाला ख्वाब समझिए हुस्न फिदाई को नफ़ा मत कहिये जनाब इसे घाटे का हिसाब समझिए जिसकी लिखाई में कोई इल्म नही मिलता उस किताब को बुरी किताब समझिए जल से भरा हर कोई सागर नही होता कुछ ओछो को तो अब तालाब समझिए तालाब!
Rajnish Sharma
तेरा वजूद तो दरिया सा ,तेरा खुद ही रास्ता बन जाएगा मै इक सहमा तालाब सा,किसी गुमनाम जगह ठहर जाएगा तालाब
ANAL SHARMA
उम्र बढ़ती गई शौक घटते गए, बस एक तेरे गुलाबी होटों कि तलब ही तो है जो उम्र के साथ साथ बढ़ती गई। anku तालाब
संतोष यादव
ज़िन्दगी में कभी तालाब मत बनो, समुन्द्र बनो तालाब तो सिमट के रह जाती हैं,और समुन्द्र पूरी दुनिया से मिल जाती है। तालाब
rana pratap chauhan
महेवा विकास खंड के मुख्यालय की ग्राम पंचायत महेवा के तालाबो पर हुआ अतिक्रमण अधिकारी बने मूक दर्शक ©rana pratap chauhan सरकार की मन्सा के विरुद्ध तालाबो पर कब्जा