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CalmKrishna

प्रवृति से संभावना की ओर यात्रा...! #बुद्ध #बुद्धु #यात्रा #प्रकृति #प्रवृति #संभावना #philosophy #विचार

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Sujit

प्रकृति की ओर #backtonature

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दूर क्षितिज के एक छोड़ पर 
नदी किनारे शाम ढलती हुई 
ऊपर चाँद की दस्तक है ऐसे
जैसे ठिठक गया है वक़्त 
रात और दिन के बीच कहीं
 इस अनवरत समय चक्र को
क्यों किसी ने छेड़ा । 
क्यों रुका वक़्त का पहिया 
क्यों थम सी गयी रफ्तार जीवन की ।

शायद हमने अनदेखा किया होगा 
कभी इन ढलते शाम और सुबहों को 
इन खूबसूरत लम्हों को नहीं समझा होगा 
लौटना ही होगा हमें प्रकृति की ओर । प्रकृति की ओर 
#backtonature

Rudra Pratap Singh

प्रकृति की ओर लौटो

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Alone   बहुत नृशंसता( अत्याचार)की इस ईश्वर प्रदत वातावरण से तुमने,

कभी न सोचा बारे में इसके जो कर सके  किया  वो तुमने ।

आज कोरोना आया है ,कल उल्कापिंड भी आएगा,

 अगर नहीं सुधरे तो सब कुछ यूं ऐसे  थम जाएगा।

 कभी न सोचा तुमने होगा प्राकृति भी ऐसा प्रत्युत्तर देगी, 
एक पेड़ के बदले में 10 मनुष्य की जाने लेगी।

 अभी देर हुई नहीं सुधर जाओ ही चंचल मन ,

अगर रहेगी  प्राकृति तभी  रहेंगे जन ,
अगर रहेगी प्राकृति तभी रहेंगे जन।।

 प्रकृति की ओर लौटो प्रकृति की ओर लौटो

Sushila Kumari

कहानी :- प्रकृति की ओर #PrideMonth

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नमन मंच
विधा :- कहानी
दिनांक :- 05 / 06/ 21
शीर्षक :- प्रकृति की ओर 
( विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष रचना )

एक दिन नारद जी अपने दैनिक नियमानुसार श्री हरि से मिलने उनके धाम  बैकुण्ठ को पहुँचे। वहाँ 
द्वार के पास एक स्त्री बहुत ही बुरी दशा में मूर्क्षित
पड़ी थी। नारद उसे देखकर उसके पास दौड़ते हुए आए और ये देख कर आवाक रह गए कि वो स्त्री और कोई नहीं पृथ्वी माता थी। नारद उसके मुख
पर पानी छिड़क कर उन्हें होश में लाते है । और हाथ जोड़कर पूछते है :- " माता! इतनी दूर किस प्रोयोजन से आना हुआ । " 
धरती माता :- "लक्ष्मीपति से मिलना था।"
नारद सहारा देकर उन्हें श्री हरि के पास ले जाते है।
नारद धरती माता को साथ लेकर जब लक्ष्मी नारायण के समीप पहुँचते है तो उससमय वे दोनों  एक झूले पर बैठकर झूला झूल रहे होते है।
उनके समीप पहुँचकर नारद उनका अभिवादन  करते है :- 
नारद :-  लक्ष्मी संग नारायण को मेरा प्रणाम।
धरती माता :- माता लक्ष्मी और श्री हरि विष्णु को मेरा प्रणाम।
श्री हरि :- नारद तो रोज ही यहाँ आते है । आप बताइये माता कैसे आना हुआ ? 
धरती माता ( तेज साँस लेते हुए ) :- मेरे संतान बहुत कष्ट में है । उनकी कष्टों को दूर करिये प्रभु।
श्री हरि :- तुम कर्म क्षेत्र हो माता । तुमपर जिसने भी जन्म लिया उसे अपना - अपना कर्म करना पड़ता है और उसी के अनुसार उन्हें फल भी मिलता है । ये उनके द्वारा किया गया कुकर्मों का प्रतिफल है । 
धरती माता :-  क्षमा करें प्रभु । उन्हें इतना कठोर दंड ना दें।
श्री हरि :- ये तुम कह रही हो माता ! तुम अपनी हालत देखो । उन्होंने तुम्हारी क्या दशा कर दी है । उनके अपराध क्षमा के योग्य नहीं है। और फिर मैं कौन होता हूँ क्षमा या दंड देने वाला ? वे तुम्हारे अपराधी है , हरे - भरे पेड़ - पौधों के अपराधी है ,
निरीह पशु - पक्षियों के अपराधी है । आखिर तुम कैसे क्षमा कर सकती हो उन्हें ?
धरती माता :- आखिर वे मेरे संतान है । मैं उन्हें कष्ट में नहीं देख सकती । कभी करोना के नाम पर तो कभी सफेद - काले फंगस के नाम पर मरते हुए नहीं देख सकती । अब ये सब खत्म करें प्रभु ।
श्री हरि :- अभी नहीं माता । उन्हें अहसास तो होने दीजिए कि उन्होंने अपराध किया है।
धरती माता :- उन्हें अहसास है प्रभु । इससे ज्यादा कष्ट वे सहन नहीं कर पायेंगे।
श्री हरि :- उन्हें अहसास है ? पर मुझे तो नहीं दिख रहा ! क्योंकि अगर उन्हें अहसास होता तो वे ऑक्सीजन सिलेंडरों का काला बाजारी नहीं कर रहे होते । एम्बुलेंस का चार गुना ज्यादा किराया नहीं माँग रहे होते।
धरती माता :- परंतु ऐसा तो कुछ मुट्ठी भर लोग ही कर रहे है और सजा पूरी पृथ्वी वासी को मिल रही है प्रभु। ऐसा क्यों प्रभु ?
श्री हरि :-  कम या ज्यादा , दोषी सभी है माता।
तुम कितनी सौंदर्य से परिपूर्ण थी पहले । देवता भी ललायित रहते थे तुम्हारे निकट आने के लिए।पर अब देखो ,हर तरफ सिर्फ गंदगी ही गंदगी ।
जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हुईं है। ये उसी का परिणाम है। 
धरती माता :- आखिर कोई तो उपाय होगा ना ताकि सब कुछ सामान्य हो सकें ।
श्री हरि :- तुम्हारी संतान बुद्धि जीवी है माते । उनके अंदर बहुत तीव्र जिजीविषा है । वो जब तक मैं में जीती रहेगी तब तक ये सब होता रहेगा।जिस दिन वो हम के लिए सोचने लगेगी । उसके बाद धीरे - धीरे सब ठीक होने लगेगा।
धरती माता :- पर उसमें तो बहुत समय लगेगा प्रभु । तब तक तो धरती से हजारों लाखों लोग .....
श्री हरि :- जब मनुष्य अपने आप को नहीं बदलेंगे तब तक उनका भला नहीं हो सकता। उन्हें अपना भला करना है तो उन्हें प्रकृति की ओर लौटना होगा । तभी तुम्हें भी अपनी काया पूर्वव्रत प्राप्त होगा। 
धरती माता :- पर प्रभु ....
श्री हरि :- बस माता , अपनी संतान के लिए आपने बहुत कुछ किया है । अब उन्हें भी तो अपनी माता के लिए कुछ करने दीजिए। जिस दिन आप पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हो जायेगी वो भी स्वस्थ्य हो जाएंगे । क्योंकि तुम्हारे स्वास्थ्य परिवेश में ही उनका स्वास्थ्य विकास सुनिश्चित है। ( नारद की ओर उन्मुख होकर ) माता को सही सलामत इनके निवास स्थान पर छोड़ आईये।
नारद :- जो आज्ञा प्रभु ।

       मौलिक / स्वरचित/अप्रकाशित रचना
          सुशीला कुमारी

©Sushila Kumari कहानी :- प्रकृति की ओर

#PrideMonth

Ajeet Ajeet

प्रक्रृति की ओर #समाज

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Saras Babloo

आ लौटें प्रकृति की ओर चलें अपनी संस्कृति की ओर #कविता

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