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keshav Ghenekar 7028914362

Koronavril माझी दुसरी कवीता

Koronavril माझी दुसरी कवीता #nojotovideo

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Dharm Veer Raika

मेरी कविता दुसरी बार अखबार में छपी । #कविता #kavikumarashok #kavi

मेरी कविता दुसरी बार अखबार में छपी । #कविता #kavikumarashok #kavi #शायरी

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Brajesh Kumar Bebak

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे
सत्ता से सवाल कौन रहे
राष्ट्र द्रोही का तमगा कौन ले
जिन्हें इतिहास कुछ पता नही
उन्हें इतिहास का गुरु बनने से
कौन रोके
बस सहन करने की आदत डाल लो
गुलामी की भी एक न एक दिन 
आदत हो ही जाएगी ।।
                            --- बृजेश कुमार

©Brajesh Kumar Bebak #कविता #विचार #सत्ता 

#flowers

कविता विचार सत्ता flowers

15 Love

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कवि देवेन्दु 'देव'

 नोजोटो पर मेरी दूसरी कविता।
#यूँ_तो_सबकुछ_लूट_गया_है

नोजोटो पर मेरी दूसरी कविता। #यूँ_तो_सबकुछ_लूट_गया_है

3 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

7 Love

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HP

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

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HP

जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

छान्दोग्योपनिषद के सातवें अध्याय के 26वें खण्ड में बताया गया है
‘आत्मा से प्राण, आत्मा से आशा, आत्मा से स्मृति, आत्मा से आकाश, आत्मा से तेज, आत्मा से जल, आत्मा से आविर्भाव और तिरोभाव, आत्मा से अन्न, आत्मा से बल, आत्मा से विज्ञान, आत्मा से ध्यान, आत्मा से चित्त; आत्मा से संकल्प, आत्मा से मन, आत्मा से वाक्, आत्मा से नाम, आत्मा से मन्त्र, आत्मा से कर्म और यह सम्पूर्ण चेतन जगत ही आत्मा से आच्छादित है। इस आत्म-तत्व का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले मनुष्य जीवन-मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं।’ आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

6 Love

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HP

कुछ दिन पूर्व इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में काफी लम्बी चर्चा चली थी और आत्मा के अस्तित्व सम्बन्धी उनके मत लिए गए थे जिन्हें सामूहिक रूप से ‘दो ग्रेट डिजाइन’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। पुस्तक में उपसंहार करते हुए लिखा गया है—

‘यह संसार कोई आकस्मिक घटना नहीं लगता है। इसके पीछे कोई सुनियोजित विधान चल रहा है। एक मस्तिष्क, एक चेतन-शक्ति काम कर रही है। अपनी-अपनी भाषा में उसका नाम चाहे कुछ रख लिया जाय पर वह मनुष्य की आत्मा ही है।’

इसके अतिरिक्त जे. एन. थामसन, जे. बी. एम. हेल्डन, पी. गोइडेस, आर्थर एच. काम्पटन, सर जेम्स जोन्स आदि वैज्ञानिकों ने भी आत्मा के अस्तित्व में सहमति प्रकट की है। उसके प्रत्यक्ष ज्ञान के साधनों का पाश्चात्य देशों में भले ही अभाव हो, पर विचार और बुद्धिशील मनुष्य के लिए यह अनुभव करना कठिन नहीं है कि यह जगत केवल वैज्ञानिक तथ्यों तक सीमित नहीं वरन् उन्हें नियन्त्रित करने वाली कोई चेतना भी अवश्य काम कर रही है और उसे जानना मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

शास्त्रीय कथानकों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व, गुणों और क्रियाओं के सम्बन्ध में बड़ी ही ज्ञानपूर्ण चर्चायें की गई हैं। ऐसे कथानकों में नारद, ध्रुव आदि के वार्तालाप के साथ राजा चित्रकेतु की कथा भी बड़ी शिक्षाप्रद और वास्तविक तथ्यों से ओत प्रोत है।

चित्रकेतु एक राजा था जिसे महर्षि अंगिरा की कृपा से एक सन्तान प्राप्त हुई थी। बच्चा अभी किशोर ही था कि उसकी मृत्यु हो गई। राजा पुत्र-वियोग से बड़ा व्याकुल हुआ। अन्त में ऋषिदेव उपस्थित हुए और उन्होंने दिवंगत आत्मा को बुलाकर शोकातुर राजा से वार्तालाप कराया। पिता ने पुत्र से लौटने के लिए कहा तो उसने जवाब दिया, ‘ए जीव! मैं न तेरा पुत्र हूँ और न तू मेरा पिता है। हम सब जीव कर्मानुसार भ्रमण कर रहे हैं। तू अपनी आत्मा को पहचान। हे राजन् ! इसी से तू साँसारिक संतापों से छुटकारा पा सकता है।’ अपने पुत्र के इस उपदेश से राजा आश्वस्त हुआ और शेष जीवन उसने आत्म-कल्याण की साधना में लगाया। राजा चित्रकेतु अन्त में आत्म-ज्ञान प्राप्त कर जीवन-मुक्त हो गया।

यह आत्मा अनेक योनियों में भ्रमण करती हुई मनुष्य जीवन में आती है। ऐसा संयोग उसे सदैव नहीं मिलता। शास्त्रीय अथवा विचार की भाषा में इतना तो निश्चय ही कहा जा सकता है कि जीवों की अपेक्षा मनुष्य को जो श्रेष्ठताएँ उपलब्ध है वे किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही हैं जो आत्मज्ञान या अपने आपको जानना ही हो सकता है, आत्मज्ञान ही मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है जिससे वह जीवभाव से मुक्त होकर ईश्वरीय भाव में लीन हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

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Hitesh Pandey

सत्ता में सभी हैं नागराज,
बने फिर रहे हैं धर्मराज,
वादे किए थे की लायेंगे रामराज,
अभी 'मन की बात' करने में व्यस्त हैं देश के महाराज,
चुनाव के समय याद आते हैं इन्हें याद काशी, प्रयागराज,
सत्ता में सभी हैं नागराज।

©Hitesh Pandey सत्ता में सभी हैं नागराज। 
#कविता

सत्ता में सभी हैं नागराज। #कविता

2 Love

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R} Pandhare

मेरी दूसरी कॉमेडी कविता जिसका नाम हैं
}लॉक डाउन{

मेरी दूसरी कॉमेडी कविता जिसका नाम हैं }लॉक डाउन{ #nojotovideo

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river_of_thoughts

Life is too short.. चल पड़ूं यूं ही
या दिल-वो-कदम रहूं थाम 
कि होगी बहुत जल्दबाजी अभी
या दम-ए-बाद-ए-सबा 
है बाक़ी अब भी ... ?

साया-ए-जिस्म ही जानता है
साया-ए-जिस्म को ही है खबर
जेहन-वो-जिगर में मेरे
बसा तू किस कदर।
@manas_pratyay #Life@shadow #कविताई #कविता #कवितांश

Life@shadow कविताई कविता कवितांश

6 Love

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SANDIP GARKAR

पाठ 1 इयत्ता चौथी

पाठ 1 इयत्ता चौथी

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ahsaas chaudhry

चलो कुछ वक़्त निकाला जाये फिर उन्हीं पुराने दोस्तों को बुलाया जाए,
उन पुराने किस्सों और कहानियों को ताज़ा किया जाए,
वही पुराने खेल,यादों को नये सिरे से बुना जाए,
फिर उन्ही गली -मोहल्लों में चिल्लाकर भागा जाए,
किसी का भी दरवाज़ा खटका छुपा जाए,
इस बहुत ब्यस्त ज़िन्दगी में,
और रोज़मर्रा की दौड़ में,
खुद को जो हम भूल बैठे हैं,
क्यों न आज फिर खुद को खोज़ लिया जाए,
फिर से खोयी खुशियों को लाये ,
ओर खुलकर मुस्कुरा लिया जाए,
चलो कुछ वक़्त निकाला जाये......., #वक़्त#शायरी#कविता#विचार#खुद की महत्ता#हँसी#प्यार

#वक़्त#शायरी#कविता#विचार#खुद की महत्ताहँसीप्यार

11 Love

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Ganesh Shewale

इयत्ता3

इयत्ता3

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Kavi Diptesh Tiwari

आज का ज्ञान 🇮🇳 *कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा* 🇮🇳

पनघट बेला में जो कोयल गीत सुनाया करती थी,
भोर अभय में बुलबुल कलरव तान सुनाया करती थी,
अब सत्ता के मदहोशी में कौओं की राग सुनाई देती है,
और हिन्दू मुस्लिम में मज़हब वाली आग दिखाई  देती है,

क्या राजभवन के सिंघासन को सही गलत का ज्ञान नही?
क्या सत्ताधारी राजमुकुट को मर्यादा का भान नही ?
क्या सत्ता के मद  में यूँ ही भारत मां से ऐंठेगा?
क्या भारत मा के टुकड़े करने वाला नेता बन कर बैठेगा?

जब महासमर में दुर्योधन को सत्ता भोग दिखाई देता है,
और गरीबों के अश्रु में उज्वल भविष्य दिखाई देता है
तब धर्म राज धर्म ज्ञान नही, गांडीव जरूरी होता है,
और अधर्मी ,पापी का संहार जरूरी होता है,

जब सूरज की भी किरणे अंधकार सी दिखने लगती है,
नुक्कड़ में मानवता भी अमर्यादित होकर बिकने लगती है,
तब मै कलम सिपाही ,राष्ट्रवाद की अलख जगाऊंगा,
जब तक जागूँगा तब तक इंकलाब का नारा गाऊंगा,

घाटी में लहरता चाँद सितारा ,मरता रोज तिरंगा है,
नेहरू जी के एक गलती से  भारत अब तक शर्मिंदा है,
एक देश में दो प्रधान,दो संविधान  कहाँ से  हो सकते है,
अरे मुफ्ती से पूछो क्या एक बच्चे के कई पिता हो सकते है,


सत्ता लोभी नेताओं से मैं देश नही झुकने दूँगा,
और हमारी भारत मा का सम्मान नही बिकने दूँगा,
जब तक साँस चलेगी मेरी तब तक जंग लड़ूंगा,
लेकिन कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा

                          *कवि दिप्तेश तिवारी* कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा

कविता का सत्ता से संग्राम नही रुकने दूँगा

3 Love

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river_of_thoughts

Standing near the window, I saw कुछ भी ठीक नहीं, पर
इतना है जरूर
जीवन गतिमान,.बहा जा रहा
अनवरत...
स्तब्ध खड़ा मूकदर्शक मैं,
देख रहा प्रश्नगत...!
               @manas_pratyay देख_रहा_प्रश्नगत
#कविताई #कविता
@manas_pratyay©ratan_kumar

देख_रहा_प्रश्नगत कविताई कविता @manas_pratyay©ratan_kumar

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river_of_thoughts

 #तज़ाद
#कविताई #कविता
@manas_pratyay©gulam_yazdani

तज़ाद कविताई कविता @manas_pratyay©gulam_yazdani

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river_of_thoughts

Trust me  HER STEP

भरोसा -जो एक बार टूटे तो, दुबारा नहीं होता। 
फिर भी, भरोसा करना पड़ता है- 
मजबूरी है या, इसे समझौता कह लो!
और, समझौता ज़िन्दगी है।
 
फिर कमिटमेंट से आदमी का विचलन!... 
आदमी का स्वभाव।

 दोनों, एक-दूसरे से जुड़े हैं।



                                  @manas_pratyay #Life @commitment_n_compromise #कविताई #कविता 
©ratan_kumar

#Life @commitment_n_compromise #कविताई #कविता ©ratan_kumar

7 Love

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river_of_thoughts

#break_up @gulmohar
ढूंढते किसी गुल मोहम्मद का अकाउंट
सर्चलिस्ट में व्हाट्सऐप के 
निकल आए इमेज वो सारे 
फूल- अमलतास, गुलमोहर के!
इनके संग ही, बह निकली- 
सौंधी-सुखन तेरी यादों की महक से सराबोर हवा भी 
फिज़ाओं में हर्षों, गूंजती वो बात-सी -
गुलमोहर तुम्हें अच्छे लगते!
हां, तुमने ही चाहा था
रोप सको इक पौध गुलमोहर का...
पर, बताओ तो, पौध वो गुलमोहर का
क्या हो पाया दरख्त...?        @manas_pratyay #BreakUp@gulmohar #कविताई #कविता
©ratan_kumar

BreakUp@gulmohar कविताई कविता ©ratan_kumar

14 Love

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river_of_thoughts

#कविताई #कविता #कभी_वो_बदल_जाता_है_दिल
@manas_pratyay©jockey

कविताई कविता कभी_वो_बदल_जाता_है_दिल @manas_pratyay©jockey

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river_of_thoughts

I feel loved when अक्सरहां, एन०एच० किनारे, 
दरख़्त-टहनियों पर प्रच्छन्न
गुलमोहर-रंगी छांव के नीचे
यादों की क्या, इसी दरिया में
तिरता ही रहता है 
कभी खींचा गया वो सेल्फी भी मेरा, 
गुलमोहरिया ही बैकग्राउंड वाला...?

               @manas_pratyay #Love@gulmohar #कविताई #कविता
©ratan_kumar

Love@gulmohar कविताई कविता ©ratan_kumar

6 Love

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unknown writer

"सूरज"

सूरज सर पर है, मेरा आत्म सक्ती... बढ़ाता है
मेरा मन भी घुप की ताल पर गुनगुनाता है
सूरज को भी देखो केसे नाच रहा है 
आज निकला हूं में कुछ काम से
 सूरज सर पर बैठे ऐसे घूमे जैसे सब कुछ जनता है

©Ashvam "सूरज", कविता की यह दूसरी  पंक्ति है जो आपके समक्ष है

"सूरज", कविता की यह दूसरी पंक्ति है जो आपके समक्ष है #ज़िन्दगी

47 Love

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river_of_thoughts

Feelings never ends but,  वह दिन 'अक्तूबर बाईस' 
किस तरह ब्लैक होल-सा 
सदियों, सालों, शब-ओ-रोजों, 
बीते वक्त के सभी स्याह-चमकीले रंगों को 
कर गया समाहित 
उस एक पल में,
उस एक शब्द-बीज में...
चला गया तू, निकल आया मैं, 
बस,रह गया -
घुप्प अंधेरा सघन
और अब निश्शब्द ...खामोशी...!!
@manas_pratyay अहसास_खत्म_नहीं_होते_कभी_फिर_भी
#कविताई #कविता
#खामोशी
@manas_pratyay©ratan_kumar

अहसास_खत्म_नहीं_होते_कभी_फिर_भी #कविताई #कविता #खामोशी @manas_pratyay©ratan_kumar

5 Love

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