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Divyanshu Pathak

ओहो ! तेरा हृदय में उतर कर, मेरी आत्मा में रम जाना। भाव बन रगों में बहना, मेरा रोम-रोम खिल जाना। दौड़ते मन को वश में कर, तेरा मेरे इष्ट सा हो #yqdidi #YourQuoteAndMine #picquote #aestheticthoughts #yqaestheticthoughts #ATwomanbg4 #पाठकपुराण

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तुम सच में,

पूरी की पूरी माया हो।

देख कर खो जाता हूँ।

बस तेरा हो जाता हूँ।

तेरा चिढ़ना क्रोध में,

तमतमा जाना।

पल भर में मुस्काना!

नयनों से तीर चलाना।

तेरी मोहिनी विद्या से मैं,

एक मुस्कुराहट में ठग जाता हूँ। ओहो !
तेरा हृदय में उतर कर,
मेरी आत्मा में रम जाना।
भाव बन रगों में बहना,
मेरा रोम-रोम खिल जाना।
दौड़ते मन को वश में कर,
तेरा मेरे इष्ट सा हो

Prabhakar Prajapati

शीर्षक: [आज अगर मैं धरती होता] लेखक: प्रभाकर प्रजापति लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता बे परवाज तड़फता रहता... #IndiaFightsCorona

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#IndiaFightsCorona शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
                

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता

1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता,
बाग बगीचे उपवन सारे...हर रंगों से रंग देता!!!
जब डाल-डाल को चिड़ियों के, चीं-चीं से मैं चहका देता
और रंगबिरंगे फूलों को मैं भर खुशबू महका देता..!!
तब

आशाओं की ज्योति भर, इन आंखों में आवर्ती होता.
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।


2) ना समझी में इक दिन मैं भी, जीवों में इंसान बनाता...
खुद के ही टुकड़े करने को, खुद से ही औजार बनाता!
दिल में सोच ये रखता मानव, जीवों पर उपकार करेगा...
पर पता न होता जीवों पर..ये जीव ही अत्याचार करेगा!!!

इंसानों की नजरों में, मैं भी पल पल अनुवर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता... आज अगर मैं धरती होता..!!

3) किसको पता चला था आगे, ऐसा भी दिन आएगा
स्वार्थ में आकर के ये मानव, भी दानव बन जायेगा..
बुद्धिमान था जीव ये अपना...बुद्धि मानि भी दिखा रहा...
जिस डाल पे बैठा हुआ है आकर, उसी डाल को काट रहा..!!!

देख दशा ऐसी, क्षण भर में, मेरा दिल भी, गर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता!!
                                  (-प्रभाकर प्रजापति)

©Prabhakar Prajapati शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
                लेखक: प्रभाकर प्रजापति

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...

Prabhakar Prajapati

Aaj Agar Mai dharti hota Prabhakar Prajapati poem शीर्षक: [आज अगर मैं धरती होता] लेखक: प्रभाकर प्रजापति लाखों जीवन देकर भी #Shayari #Drops

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शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
 लेखक: प्रभाकर प्रजापति

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता

1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता,
बाग बगीचे उपवन सारे...हर रंगों से रंग देता!!!
जब डाल-डाल को चिड़ियों के, चीं-चीं से मैं चहका देता
और रंगबिरंगे फूलों को मैं भर खुशबू महका देता..!!
तब

आशाओं की ज्योति भर, इन आंखों में आवर्ती होता.
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।


2) ना समझी में इक दिन मैं भी, जीवों में इंसान बनाता...
खुद के ही टुकड़े करने को, खुद से ही औजार बनाता!
दिल में सोच ये रखता मानव, जीवों पर उपकार करेगा...
पर पता न होता जीवों पर..ये जीव ही अत्याचार करेगा!!!

इंसानों की नजरों में, मैं भी पल पल अनुवर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता... आज अगर मैं धरती होता..!!

3) किसको पता चला था आगे, ऐसा भी दिन आएगा
स्वार्थ में आकर के ये मानव, भी दानव बन जायेगा..
बुद्धिमान था जीव ये अपना...बुद्धि मानि भी दिखा रहा...
जिस डाल पे बैठा हुआ है आकर, उसी डाल को काट रहा..!!!

देख दशा ऐसी, क्षण भर में, मेरा दिल भी, गर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता!!
                                  (-प्रभाकर प्रजापति)

©प्रभाकर प्रजापति Aaj Agar Mai dharti hota Prabhakar Prajapati poem
शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
                लेखक: प्रभाकर प्रजापति

लाखों जीवन देकर भी

O.P Sharma

सेवा निवर्ती के यादगार पल

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 सेवा निवर्ती के यादगार पल

Vikas Sharma Shivaaya'

एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु जल में ही निवास कर #समाज

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एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु जल में ही निवास करते हैं. इसलिए "नर" शब्द से उनका "नारायण"नाम पड़ा है...,

पुराणों में भगवान विष्णु के दो रूप बताए गए हैं. एक रूप में तो उन्हें बहुत शांत, प्रसन्न और कोमल बताया गया है और दूसरे रूप में प्रभु को बहुत भयानक बताया गया है...,

जहां श्रीहरि काल स्वरूप शेषनाग पर आरामदायक मुद्रा में बैठे हैं. लेकिन प्रभु का रूप कोई भी हो, उनका ह्रदय तो कोमल है और तभी तो उन्हें कमलाकांत और भक्तवत्सल कहा जाता है...,

कहा जाता है कि भगवान विष्णु का शांत चेहरा कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति को शांत रहने की प्रेरणा देता है. समस्याओं का समाधान शांत रहकर ही सफलतापूर्वक ढूंढा जा सकता है...,
शास्त्रों में भगवान विष्णु के बारे में लिखा है:-
"शान्ताकारं भुजगशयनं"। पद्मनाभं सुरेशं ।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
इसका अर्थ है भगवान विष्णु शांत भाव से शेषनाग पर आराम कर रहे हैं. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर मन में ये प्रश्न उठता है कि सर्पों के राजा पर बैठ कर कोई इतना शांत कैसे रह सकता है? लेकिन वो तो भगवान हैं और उनके लिए सब कुछ संभव है...,

भगवान विष्णु को "हरि" नाम से भी बुलाया जाता है. हरि की उत्पत्ति हर से हुई है. 
ऐसा कहा जाता है कि "हरि हरति पापानि" जिसका अर्थ है- हरि भगवान हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं और पापों को दूर करते हैं...,
इसीलिए भगवान विष्णु को हरि भी कहा जाता है, क्योंकि सच्चे मन से श्रीहरि का स्मरण करने वालों को कभी निऱाशा नहीं मिलती है. कष्ट और मुसीबत चाहें जितनी भी बड़ी हो श्रीहरि सब दुख हर लेते हैं...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 586 से 597 नाम

586 शुभांगः सुन्दर शरीर धारण करने वाले हैं
587 शान्तिदः शान्ति देने वाले हैं
588 स्रष्टा आरम्भ में सब भूतों को रचने वाले हैं
589 कुमुदः कु अर्थात पृथ्वी में मुदित होने वाले हैं
590 कुवलेशयः कु अर्थात पृथ्वी के वलन करने से जल कुवल कहलाता है उसमे शयन करने वाले हैं
591 गोहितः गौओं के हितकारी हैं
592 गोपतिः गो अर्थात भूमि के पति हैं
593 गोप्ता जगत के रक्षक हैं
594 वृषभाक्षः वृष अर्थात धर्म जिनकी दृष्टि है
595 वृषप्रियः जिन्हे वृष अर्थात धर्म प्रिय है
596 अनिवर्ती देवासुरसंग्राम से पीछे न हटने वाले हैं
597 निवृतात्मा जिनकी आत्मा स्वभाव से ही विषयों से निवृत्त है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है. पानी को "नीर" या "नर" भी कहा जाता है. भगवान विष्णु जल में ही निवास कर

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 7 - शरीर अनित्य है लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीका

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
7 - शरीर अनित्य है

लोग पागल कहते हैं वैद्यराज चिन्तामणिजी को, यद्यपि सबको यह स्वीका
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