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Arpit Mishra
जाने क्या रिश्ता है,जाने क्या नाता है जितना भी उँड़ेलता हूँ,भर भर फिर आता है दिल में क्या झरना है? मीठे पानी का सोता है भीतर वह, ऊपर तुम मुसकाता चाँद,ज्यों धरती पर रात-भर मुझ पर त्यों,तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है! . ©Arpit Mishra मुक्तिबोध
river_of_thoughts
फिलहाल तस्वीरें इस समय हम नहीं बना पाएंगे अलबत्ता पोस्टर हम लगा जाएंगे। हम धधकाएंगे। मानो या मानो मत आज तो चन्द्र है सविता है, पोस्टर ही कविता है।। #Incident #चांद_का_मुंह_टेढ़ा_है #मुक्तिबोध
लेखक ओझा
Autumn अगर व्यक्ति को नश्वरता की चेतना आ जाए तो विकारों की उत्पत्ति पर लगाम और महाभूत का ज्ञान हो जाता है। ©लेखक ओझा #autumn नश्वरता की चेतना
कुमार रंजीत (मनीषी)
जब तक आदमी के जीवन में गहराई नहीं आएगी वो या तो शोषण करता रहेगा या शोषण सहता रहेगा। आदमी हो चाहे औरत, ज़िंदगी में गहराई, समझ में ऊँचाई और अध्यात्म का ज्ञान दोनों के लिए बराबर ज़रूरी है। ना शोषक होना सही है ना शोषण सहना सही है। ©कुमार रंजीत चेतना की ऊंचाई जरूरी है
Pushpendra Pankaj
मैं पानी सा ढल जाता हूँ , परिस्थियों की साँचे में , इसे ना समझो तुम दुर्बलता , यह है, इच्छा शक्ति प्रबल । लोग सोचने लगते कुछ भी, पल भर की पीङाओं में, मेरी यही राय दुख-सुख में रखो स्वयं को सजग-सबल।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj अवसाद से चेतना की ओर