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PRIYA SINHA
(दूसरा भाग) ... जारी ... पर नादान इक दिल है ये मेरा जो किसी , भी सूरत में हार मानने को तैयार नहीं , इसलिए ही तो नित्य नए ख्वाब बेसब्री से , मुझे दिखाती जा रही मेरी जिंदगी ; क्या हुआ आखिर जो मेरा कुछ एक , सपना टूटकर है बिखर गया ? उन टूटे हुए सपनों को संजों कर , फिर से उसे पूरा करने को , मुझे उकसाती जा रही मेरी जिंदगी । और ज्यों हि मैं उन टूटे हुए सपनों को , संजों कर निरंतर आगे बढ़ी , तो मेरे दृढ़ संकल्पों को देख हिम्मत , मुझे बंधाती जा रही मेरी जिंदगी ; कहती मुझसे तेरे ख्वाब अवश्य हीं , पूरे होंगे ना हो तू उदास ना हीं हो तू निराश , क्योंकि आती है जरूर हीं इक नई , चमकीली सुबह अँधेरी काली रात के बाद , इस तरह के विश्वस्त संवादों से विश्वास , मुझे दिलाती जा रही मेरी जिंदगी । प्रिया सिन्हा 𝟑𝟎. सितंबर 𝟐𝟎𝟏𝟔. (शुक्रवार) ©PRIYA SINHA #मेरी #जिंदगी (दूसरा भाग)
Shivam Sapdhare
"कह देना उस बेवफा से की जरा बच के रहना तेरे दीवाने से कही मेरे आँखों का पानी उसको बहा न ले जाएं सैराट आशिक
Prakash Shukla
"मैं और मेरी तन्हाई"दूसरा भाग अगले दिन जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो रहा था तो नाहक ही मेरी सोंच मेरी कल्पनाओं में उसने जगह बना रखी थी मानो मेरे दिमाग ने मेरा साथ छोड़ दिया हो और मुझे स्कूल पहुँचने की जल्दी थी पर मेरा वक्त था कि बीतने का नाम नहीं ले रहा था जैसे तैसे मैं स्कूल पहुँचा वहाँ देखा वह मनचली अपनी सहेलियों संग नई नई योजनाएँ बना रही थी उसने आज फिर एक काण्ड किया पहली बार वह मेरे इतने करीब आकर बैठ गई मुझे लगा कि वह मुझसे बात करने आई है पर मैं गलत था उसे शरारत सूझ रही थी पर आज मेरा दिन नहीं था मेरे बगल मे बैठा मेरा मित्र उसके जाल मे फँसने वाला था उस लड़की ने उस लड़के की ओर देखा और थोडी़ देर तक देखती रही थोडी़ देर बाद ठहाके मारकर हँसी और बोली क्या मुझे तुम थोडी़ देर के लिए अपनी साइकिल दोगे उसने किसी काम का बहाना बनाया था शायद ,उस लड़के ने उसे मना नहीं किया वह साइकिल लेकर बाहर गई और फिर थोडी़ देर बाद वह वापस आई और उसने मेरे मित्र को धन्यवाद बोला और जाकर वापस अपनी जगह बैठ गई वह अपनी सहेलियों से सुगबुगा कर बात कर रही थी और बार बार उस लड़के की ओर देख रही थी मुझे कुछ आभास होते हुए भी आभास नहीं था कुछ तो गड़बड़ है मैं समझ रहा था पर क्या ? मैं समझ नहीं पा रहा था वह तो शाम को जब छुट्टी का वक्त हुआ तब सब कुछ आँखों के सामने था जैसे ही मेरा दोस्त साइकिल पर चढा़ उसकी साइकिल के दोनो पहियों की हवा फुस्स से निकल गई मुझे बहुत जोर से हँसी आई पर मैं हँस नहीं सका पर बात समझ मे आ गई कि क्या योजना बन रही थी इस घटना के बाद मेरे मन का खिंचाव और तेजी से उसकी तरफ हुआ पर हाँ दिमाग भी जागा और सतर्क भी रहना जरूरी था अब मेरे मन के विचारों मे घूम फिर कर वही थी उसकी ओर का खिंचाव तो बढा़ ही पर मेरे शान्त स्वभाव मे भी हलचल सा मच रहा था खैर अगला दिन भी अच्छे से बीता और फिर अगली सुबह *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"दूसरा भाग