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अभि "एक रहस्य"

हॉबी क्या है रे बॉबी तेरी? हॉबी क्या है? बॉबी ने थोड़ा मुँह खोला, लेकिन कुछ ना बोला, मन में सोचा यार बॉबी, ये क्या होती हॉबी? पापा बोल

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बॉबी की हॉबी
( Read in caption below)  हॉबी क्या है रे बॉबी तेरी? 
हॉबी क्या है? 
बॉबी ने थोड़ा मुँह खोला, 
लेकिन कुछ ना बोला, 
मन में सोचा यार बॉबी, 
ये क्या होती हॉबी? 
पापा बोल

Abhishek Mishra

हॉबी क्या है रे बॉबी तेरी? हॉबी क्या है? बॉबी ने थोड़ा मुँह खोला, लेकिन कुछ ना बोला, मन में सोचा यार बॉबी, ये क्या होती हॉबी? पापा बोल

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बॉबी की हॉबी
( Read in caption below)  हॉबी क्या है रे बॉबी तेरी? 
हॉबी क्या है? 
बॉबी ने थोड़ा मुँह खोला, 
लेकिन कुछ ना बोला, 
मन में सोचा यार बॉबी, 
ये क्या होती हॉबी? 
पापा बोल

Dr Upama Singh

‘खिड़कियांँ उन स्मृतियांँ की तरह भी हैं जिनसे कूदकर आ सकता है बचपन’ बहुत दिनों बाद आज याद आया बचपन आँखें बंद करके खोल दिए यादों के झरोखों को #restzone #collabwithrestzone #rzलेखकसमूह #rzwotm #rzwotm_oct #unique_upama #rztask129

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“बचपन की स्मृतियाँ"
अनुशीर्षक में

 ‘खिड़कियांँ उन स्मृतियांँ की तरह भी हैं
जिनसे कूदकर आ सकता है बचपन’
बहुत दिनों बाद आज याद आया बचपन
आँखें बंद करके खोल दिए यादों के झरोखों को

Santosh Sagar

मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये !-2. तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये.... मुश्किल है अपना मेल प्रिये,

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मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये रेल नहीं है खेल प्रिये....
तुम खुले हवा में सोते हो , मैं इंजन में ही रोता हु !
तुम थाली में खाना खाना खाती, मैं टिफिन  में हाथें धोता हु !!
तुम मार्सिटीज से निकले तो, मैं पैदल  लॉबी जाता हु ,
तुम ताजा भोजन करती हो ,मैं सुखी  रोटी चवाता हूँ ! 
 जज्बातों की बातों में ..... न ऐसे हमे धकेल  प्रिये .........
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!!
सपने भी मेरी सुनले पगली ,हर रात तुझे तड़पायेगी!
मैं जागूँगा सारी रात पर नींद  तुझे  न आएगी  !!
हरी , पिली पर सांत रहता हू लाल को देख घबराता हु ,
लाल के पहले जोरो से मैं लाल -लाल चिल्लाता  हू!
खींचा-तानी के चक्कर में कुशल  न हम रह पाएंगे,
ड्यूटी जब - जब लगेगी मेरी खाना तुम्ही  से बनवाएंगे!
आटा-  चावल , दाल के साथ में....दे देना तुम तेल  प्रिये ....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!
इन सकरी पतली पटरियों पर जब दिन से रात हो जाते है .
कब तक ड्यूटी ऑफ होगी हम खुद ही समझ नहीं पाते है ,
घर को जाते जाते  काफी देर हो जाते है ,
घर में पापा ,मम्मी ,भैया ,दीदी सब सो जाते है 
खुद  खाना लेकर चारपाई पर अकेले खाते है
एक अकेला तकिया लेकर कोने में कही सो जाते है-2
मेरे अरमानो के चलते खुद से ना तुम खेल प्रिये .....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये.....
              :-  संतोष 'साग़र' मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,

kavya soni

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