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DINESH SHARMA
कौन कांटो पे खुद,खुशी से चलता है,कुछ तो दुश्वारियां रही होंगी फूल जब इतने खूबसूरत है, कितनी खूबसूरत क्यारियां रही होंगी करते हैं घर के दर-औ-दीवार उसके लहजे में बातें मुझसे आज भी वो यादें जब इतनी खूबसूरत है कितनी खूबसूरत यारियां रही होंगी उसने जहां लिखा था नाम मेरे नाम के साथ गिरी वहीं से पपडियां पपडियां जब इतनी खूबसूरत हैं,कितनी खूबसूरत उंगलियां रही होंगी वो साकी आज भी हमको याद करता है उधार है कुछ बोसे मिरे साकी जब इतना खूबसूरत है , कितनी खूबसूरत उधारियां रही होंगी ©दिनेश शर्मा, 07.12.2019 #क्यारियां #पपडियां
@YahanZazbaatBikteHai..
दशकों भरी हैं तिजोरियां माल समेटा अच्छा खासा। बाल नाक फ़र्ज़ी नाम से देना चाहे जनता को झांसा। चमचे गद्दार आज भी रखते पुश्तेनी सत्ता की आशा। इनको कुर्सी तुमने दी तो हाथ लगेगी शिर्फ़ निराशा। देशहित में कभी ना सोचें दुश्मनों के पक्ष में रहके पप्पू अक्सर बोले चीन पाकिस्तान के मन की भाषा। ✍️देववाणी #तिजोरियां #Gandhi
Vickram
नहीं पता कल में कुछ है भी कि नहीं,,, तैयारियां तो चल रही है त्योहार की तरह कल और आज के बीच सफर कर रहे हैं कौन जाने कल के पास मेरे लिए कुछ है की नहीं जहां तक PETROL है चल रहा है सफर रब ना करें कोई ऊंच नीच ना हो जाए कहीं ©Vickram तैयारियां कल की,,,,
Shravan Goud
उदासी गयी चेहरा खिल गया, बरसो के अरमान पुरे हो गये। उदासी गयी चेहरा खिल गया, बरसो के अरमान पुरे हो गये।
Mayank Sharma
सुट्टे के तीसरे कश की 'हिट' सी है तू देर से लगती है, पर क्या लगती है!! नशे सी चढ़ गयी ओए कुड़ी नशे सी चढ़ गयी ❣️ एंड स्मोकिंग इज इनजूरीअस टू हेल्थ ☠️ #yqbaba #yqdidi #yopowrimo #yqdada #smokingkills #malang #yqq
रजनीश "स्वच्छंद"
मेरे खेतों की क्यारियां।। मेरे गांव का अहरा, घर का ठिकाना बतातीं आलियाँ। क्यारियों में बहता कलकल पानी, लहलहाती गेंहूँ की बालियां। अपनेपन का संचार लहू में,हर चेहरा सबको पहचानता। कोई कहाँ क्या करता है,हर की व्यथा हर कोई जानता। रब्बी की फसल का मौसम,खेतों में लगता अलाव होरहा। एक मंडली, मुस्काते चेहरों की,बच्चा भी बैठ बाट है जोह रहा। रमुआ अपने गमछे में नमक बांधे आया,संजइया भुनी मिर्ची संग ले आया है। क्या इटालियन, मेक्सिकन क्या,सबके स्वादों का रंग ले आया है। हर मुख, आग की गर्मी में,सूरज की लाली को समेटे बैठा। बातें घर की, सारे संसार की,कोई पैर पसारे तो कोई लेटे बैठा। कुछ समय पहले ही,कटी थी फसल धान की। खरीफ ने कहा था अलविदा,शुरू कथा रबी के बिहान की। हर खलिहान फसलों का ढेर,पिंजों की भरमार लगी। चूडों के मिल भी लगे थे,बोरियों की लंबी कतार लगी। शहर से संवाद है आया,संक्रांति के चूड़े भिजवा दो। घर बैठी दादी भी बोली,काली वाली जुड़े भिजवा दो। बूढ़ा बाप कभी ना नही कहता,ले सर बोरी स्टेशन को चला है। कितना अंतर है गांव शहर में,कहाँ बेटे से बाप पला है। हर दर्द समेटे गमछे में,देखो वहां किसान खड़ा है। हम रिस्क की बातें करते है,वो सर्दी गर्मी से कहाँ डरा है। हर पहर आसमा ओढ़े चलता वो,धरती से सोना उपजाता है। फिर गांव शहर की धुंध में आ,उसका अस्तित्व कहाँ खो जाता है। झंडा लिए वो दूर खड़ा है,नेता बटोरते तालियां। फिर, क्यारियों में बहता कलकल पानी, लहलहाती गेंहूँ की बालियां। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote मेरे खेतों की क्यारियां।।।
Nilesh kushwaha
झरना पाताल से लेकर, पहाड़ों तक चढ़ गया तुम्हें क्या देखा,कि वापस नीचे बढ़ गया। #NojotoQuote #झरना पाताल से लेकर, पहाड़ों तक चढ़ गया