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Rakesh Kumar Dogra
इसमें भी बद-नामी है, "मेरा नहीं कोई सामी है"
kavi Sahu
कुछ खामी सी लग रही थी, मैं ने अपने आप से पूछा_ जरा ये बता आखिर करना क्या चाहता है तू, अगर नही हैं रास्ता, मै सलाह कुछ दूँ। कमर कस और मेहनत कर, और उस आसमां को छू, एक तलवार तो नही बस एक सुई बन जा तू। ©kavi Sahu खामी
Adesh K Arjun
हो सकता है कोई खामी हो मेरे किरदार में, लेकिन किसी के जज़्बात से मैं खेला नहीं कभी !! ©Adesh K Arjun #खामी
Vineet
वो मेरी फलक से यारी जनता है.... वो मेरी गुमनामी जनता है... क्या बताऊं के कितना करीब है मेरे... इतना के वो मेरी हर खामी जनता है... Vineet ✍️✍️ . ©Vineet Kumar खामी
vidushi MISHRA
आप तो हर बात में हर परिस्थिति में हमारा साथ देने की बात करती थी बिना बोले समझ जाती थी मेरी भी जरूरत को तो आपको क्यों नहीं एहसास हुआ की हम लोगों को कितनी जरूरत है आपकी क्यों बोली थी मेरी कहानी खत्म, आप तो पूरे परिवार को हिम्मत और हौसला देती थी फिर आप हिम्मत क्यों हार गयी.. ©vidushi MISHRA मामी
vidushi MISHRA
पुरुष कहाॅं कह पाते हैं कि मुझे याद आ रही है उस साथी के साथ की उसके बात की उसके फ़िक्र की रूठने मनाने की फरमाइशो की नाराजगी की उन सवालों के जवाब की जो सिर्फ वही दे सकती थी उन नोक झोंक भरे तकरारों की हाॅं मैं ना ना में हाॅं समझने की वो नहीं कहते शायद इसलिए उन्हें पता है कि मैं वो तिनका हूॅं जिस पर इमारत खड़ी है ये भार ही उन्हें बयां नहीं करने देता शायद यह जरूरी भी है अगर वह खुद को खुद ही ना संभाले तो उनका विरह बिखेर देगा उस बागीचे को जिसे साथ मिलकर सींचा था उन्होंने.. पर डर लगता है उन्हें उस घर से उस किचन से उस बिस्तर से उस गलियारे से उस दरवाजे से जो दो आवाज देते ही पायल की धुन और पैरों की आहट लेकरआती थी जो कहती थी आ गईलि आप उन सब से डर लगता है कि अगर पूछे मुझसे वो घर कि जो मुझे और आपको संभालती थी वो कहाॅं है तो मैं उस तूफान को नहीं रोक सकता जो मैंने अपने मन के हिस्से में दबा रखा है .….. पर आंखें सब कहती हैं...... ©vidushi MISHRA मामी
vidushi MISHRA
#FourLinePoetry यादों की खुशबू आज भी आती है मुझे उस आंगन से जानती हूॅं की अब साड़ी नहीं सुखती उनकी उस आंगन में लेकिन गुजरें लम्हों की खटी- मीठी यादें बिखरी हैं उन कमरों में जहां कभी घंटो बातें करती थी मैं आपसे अब उन्ही यादों के साए में मुझे रहना है और अपने कर्तव्य का निर्वाह करना है तो क्यों ना आऊं मैं उस आंगन में जहाॅं मैं अंकुरित हुई थी खिली थी मैं आपकी हंसी से आपके ही आंचल की छांव में उस आंगन में पली थी माना कि मेरी पलके भीगेगी यादों की ज्वाला में पर यकीन है मुझे आपके आंगन की खुशबू मुझे हमेशा की तरह संभाल लेंगी.... ©vidushi MISHRA मामी
Vineet
उसकी मोहब्बत मै घटाऊ कैसे... उसे प्यार है मेरी हर खामी से... Vineet ✍️ . ©Vineet Kumar खामी