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Ajay Kumar Dwivedi
शीर्षक - होली का त्यौहार। खुशियाँ लेकर आया देखों होली का त्यौहार। घर-घर से होने लगी फिर रंगों की बौछार। खुशियाँ लेकर आया देखों होली का त्यौहार। बच्चे बुढ़े और जवान सब मिल मस्ती में झूमें। ढ़ोल मंजीरे बजा-बजा कर गली-गली में घूमें। घूंघट में छुप भाभी रानी सब पर रंग बरसाये। ढ़ोल बजाकर पुरूष मंडली फाग अबीरा गाये। रंग बिरंगे मुखड़ों से फिर टपके प्रेम अपार। घर-घर से होने लगी फिर रंगों की बौछार। खुशियाँ लेकर आया देखों होली का त्यौहार। कहीं पे करता दिखता देवर भाभी का मुख लाल। कहीं बलम के साथ में गोरी करती दिखे कमाल। चढ़के अटारी भर पिचकारी बच्चे करें धमाल। मेरे भारत की होली है खुद में एक मिसाल। गुजियों की थाली में परोसती मायें हर घर प्यार। खुशियाँ लेकर आया देखों होली का त्यौहार। घर-घर से होने लगी फिर रंगों की बौछार। राम प्रभु भी अवध नगरिया खेल रहे हैं होली। रंगों में रंग निकलीं देखों कृष्ण लला की टोली। भगवा रंग में रंग गया भारत दुनियां सारी बोलीं। महाकाल भी खेल रहें हैं चिता भस्म से होली। होली की मस्ती में नाचे गाये अब संसार। घर-घर से होने लगी फिर रंगों की बौछार। खुशियाँ लेकर आया देखों होली का त्यौहार। अजय कुमार द्विवेदी ''अजय'' ©Ajay Kumar Dwivedi अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''
Dr. Govind dhar Dwivedi
किसी को शाम भाती है किसी को श्याम भाता है। मेरे दिल में हर शाम को याद श्याम की आता है।। शाम हुई पर श्याम ना आये, श्याम बिना मोहि शाम ना भाये। प्यासी आंखें श्याम को ढूंढें, शाम को मेरे श्याम दिख जायें।। व्याकुल मन हर शाम से पूछे,जाकर कहां हम श्याम को पायें। शाम ने श्याम का ना कुछ राज बताया,श्याम की याद में दिल तड़प जाये।। शाम ने श्याम के रंग में रंग कर,अपने आप को श्याम बताये। मेरी जुबा उस शाम से बोली, श्याम नहीं तू शाम कहाये।। श्याम वियोग में मेरी नैना, यूं ही निरंतर आंसू बहाये।हर शाम को मुझको श्याम रुलाये लगता है मुझको श्याम भुलाए।। ©Govind dhar Dwivedi रचनकार-जी डी द्विवेदी