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Srikant Sharma
जीतेंगे हम सब साथ प्रिय, हाथों में दो"ना"हाथ प्रिय, थोड़ा रखो विश्वास प्रिय, ना करो बाहर प्रवास प्रिय, परिजन के तुम हो खास प्रिय, ना करो खुदी का ह्रास प्रिय...। #श्रीकांत शर्मा #घर पर राहोना।
Raz Nawadwi
जवानी के दिन भी निकल जाएँगे ये गोले हैं साबुन, के गल जाएँगे //१ ज़रा खौल दिल के पतीले में तू हम आलू हैं, जल्दी उबल जाएँगे //२ ~राज़ नवादवी पेशे ख़िदमत हैं दो अशआर
Dhruv Bali aka Darvesh Danish
चमन ने तुझे याद किया फिज़ाओं से मिलने के बाद चेहरा है तेरा गुंचों मे ,बागों के खिलने के बाद दूब तक महक उठी है जमीन पर तेरे चलने के बाद ढूँढने निकले है तुझे पत्ते मौसम के बदलने के बाद मै भी मजबूर हू जब से है तुमसे बात हुई दिल संभलता ही नहीँ वक़्त गुज़रने के साथ कितना कुछ सोचा था मैने तुमसे आज कह दूँगा जबां खुली ही नहीँ आंख ये मिलने के बाद आज आसाइशें तुमहारी मुझसे जुदा हैं लेकिन याद आयेगी मेरी उम्र ये ढलने के बाद आज तुम एक लहर हो और मै किनारा हूँ और क्या चाहिए तूफान के गुजरने के बाद पेशे नजर है एक नयी गजल
Lalit Rang
कल लोगों को ढूँढता था आज लोग ढूँढते हैं सब खेल है समय का यही यार सोचते हैं पहचान कर भी जो मुझे पहचानता नहीं था बात आके अब वही रिश्ते की करते हैं नहीं जिन्हें कल पर भरोसा सलाम हम करते उन्हें काम अक्सर आज का जो आज करते हैं है वज़ह बस एक हीं इसलिए बनती नहीं बात वह हमसे सदा दौलत की करते हैं पैसा-पैसा करते-करते भौंकते हीं मर गया हम अभी से हीं फ़क़त राम-राम रटते हैं राह चुनते हैं अलग जो और कुछ करते नया उस शख़्स की चरचा अजी संसार करते हैं मंज़िल को पाना तभी है बहुत देता सुकूं 'रंग' काँटे पाँव में जब लाख चुभते हैं - ललित रंग ©Lalit Mishra ❤️दोस्तों पेशे ख़िदमत एक ग़ज़ल❤️ #clouds
Pallavi chaurasia
जो पेशें से एक शायर होता हैं, ज़माने के नजरों में वो थोड़ा पागल होता हैं; अपनी बनाई दुनियां में ही वो खोया रहता हैं, खुद में ही उलझा, औरो से जुदा होता है; जीन चीज़ों पर कोई ध्यान भी न देता हो; वो उन छोटी-छोटी चीज़ों को निहारता रहता है, वो चांद, सितारे, फूल, कलियों, तितलियों को निहारता रहता हैं; मन में आए जज़्बातों को पन्नो पर लिखता रहता है, जानें क्या तकलीफ़ है जो बेवजह कभी-कभी रोया भी करता है; वो दुनियां के नजरों में थोड़ा पागल होता है,जो पेशे से एक शायर होता हैं!! ©Pallavi chaurasia जो पेशे से एक शायर होता हैं...... #MereKhayaal
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी करवटे जिंदगी की,किस मुकाम पर छोड़ेगी जिंदा लाशो की तरह,आवाम कब तक डोलेगी कुर्सियों की बे रूखी, दामन जनता का कब छोड़ेगी जीने के मूल अधिकारों पर,सरकारे कब दौड़ेगी इधर महँगाई,उधर पेशे तबाह है अर्थव्यवस्था के चक्रव्यूह में हर अभिमन्यु चित पड़ा है सुधबुझ भूलकर डिप्रेशन में,आम आदमी पड़ा है हर राहों पर,लूट का तंत्र खड़ा है सियासतों की मनमानी से लोकतंत्र का मंत्र डूबा पड़ा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #scared इधर महँगाई,उधर पेशे तबाह है #scared