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Kulbhushan Arora
*कृष्ण* से प्रेम, समर्पण है .... समर्पित का.... श्रेष्ठतम कृत्य जीवन का😍🙌😍🙌 प्रेम के बिना जीवन वैमनस्यता का सबसे सटीक उदाहरण है वैमनस्यता -स्वादहीनता
डॉ रवि शाक्या
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
अब किसी के लिए नहीं किसी के पास वक्त है, आजकल हर कोई बस अपने आप में व्यस्त है। हर सदस्य एक दूसरे को बेइमान समझता है, लेकिन अपने आपको वो बुद्धिमान समझता है। ना कोई आचार है और ना ही कोई सदाचार है, ना उच्च विचार है और ना ही कोई संस्कार है। बुजुर्ग एक कोने में मवेशियों की तरह रहते हैं, बच्चे हर वक्त अपने आप में ही व्यस्त रहते हैं। धीरे-धीरे हम अपनी रिश्तेदारी खोते जा रहे हैं, केवल नाम के लिए रिश्तों को ढोते जा रहे हैं। वक्त के दरिया में बहकर हम सभी छूट जाएंगे, यही हाल रहा तो एक दिन सारे रिश्ते टूट जाएंगे। छलकपट, वैमनस्यताओं, को बिसार के। टूटते हुए रिश्ते, आओ प्यार से संवार लें।। 👉आओ अब कुछ लिख जायें।। कोलाब कीजिए और अपने दोस्तों को भी कोलाब क
Krish Vj
दम तोड़ते हैं स्वार्थ की दहलीज पर हर रिश्ते प्रेम और अपनेपन से जोड़ने होंगे हर रिश्ते छलकपट, वैमनस्यताओं, को बिसार के। टूटते हुए रिश्ते, आओ प्यार से संवार लें।। 👉आओ अब कुछ लिख जायें।। कोलाब कीजिए और अपने दोस्तों को भी कोलाब क
हरीश वर्मा हरी बेचैन
अच्छा होता हम.. रोजगार की बात करते! हर हाथ को.. काम का सौगात देते! कड़ियां जोड़ते.. चुन चुन कर उद्योग का! खुशहाली का संबृद्धि का.. संसाधन का जाल बुनते! आरक्षण का हवा.. निकाल देते! काम होता हर तरफ़! शान से हम काम.. अस्वीकारने की बात करते! उत्तम होता है खेती और खुद उद्योमी बन कर.. सरकारी से नौकरी से.. तोबा तोबा करते! कर के आविष्कार नये नये! जग में हम भी कमाल करते! होता भाईचारा धर्म पथ पर.. शांतमन से प्रभू का नाम लेते! अंधविश्वास न बनता रोडा! जाति वैमनस्यता को.. दिल से निकाल देते! ज़िंदाबाद मुर्दाबाद करता कौन?? देश को स्वर्ग से सुन्दर कर लेते! 🙏🙏🙏🙏🙏🙏✍️ हरीश वर्मा हरी बेचैन 8840812718 अच्छा होता हम.. रोजगार की बात करते! हर हाथ को.. काम का सौगात देते! कड़ियां जोड़ते.. चुन चुन कर उद्योग का! खुशहाली का संबृद्धि का.. संसाधन का
राजेश कुशवाहा 'राज'
--------------धन की आसक्ति------------ अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती, रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती, धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती, चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती, भाव भंगिमाएं भी अब जेहन में न उतरती, संत,कवि,वैद्य की अब है विद्वता बिगड़ती, संपदा की ये लालसा है शौर्यता नकारती, सत्य,दया,धर्म अब मनुजता को काटती, दौलत की टोह में है वैमनस्यता पनपती, राज,शक्ति,सत्ता अब अनुराग की विरक्ती, संपत्ति की आसक्ति ही है नर की विपत्ती, कर्म,कांड,कृत्य सब है लोभ से पनपती, धन से ही धर्म की है व्याख्या बदलती, कृष्ण,राम,गौतम की ये धरा है पुकारती, धर्म,दया,प्रेम से है ये जिन्दगी संवरती, अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, माँ के दिल की ममता भी अब है पुकारती। ©राजेश कुशवाहा --------------धन की आसक्ति------------ अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती, रह रह के इंसानियत है त
Divyanshu Pathak
मुझे बड़ा स्नेह दिया है प्रेम भरा परिवेश दिया है ! मैं आभारी दिल से सबका हूँ ये उड़ने जो परिमेश दिया है ! 💕🍫🙏🙏🙏💕🍫☕🤓😊🌷🌷💕🍫🙏🌷💕🍵 : मुझे बड़ा स्नेह दिया है प्रेम भरा परिवेश दिया है ! मैं आभारी दिल से सबका हूँ ये उड़ने जो परिमेश दिया है ! : तुम सागर की ग
राजेश कुशवाहा 'राज'
--------------धन की आसक्ति------------ अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती, रह रह के इंसानियत है तेज से सिसकती, धन के अभाव में अब न जिंदगी गुजरती, चित्त,ध्यान,कल्पना भी अब नही निखरती, भाव भंगिमाएं भी अब जेहन में न उतरती, संत,कवि,वैद्य की अब है विद्वता बिगड़ती, संपदा की ये लालसा है शौर्यता नकारती, सत्य,दया,धर्म अब मनुजता को काटती, दौलत की टोह में है वैमनस्यता पनपती, राज,शक्ति,सत्ता अब अनुराग की विरक्ती, संपत्ति की आसक्ति ही है नर की विपत्ती, कर्म,कांड,कृत्य सब है लोभ से पनपती, धन से ही धर्म की है व्याख्या बदलती, कृष्ण,राम,गौतम की ये धरा है पुकारती, धर्म,दया,प्रेम से है ये जिन्दगी संवरती, अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, माँ के दिल की ममता भी अब है पुकारती। ©राजेश कुशवाहा --------------धन की आसक्ति------------ अनुराग,प्रेम,मित्रता अब धन पे है संवरती, मां के दिल की ममता भी अब है पुकारती, रह रह के इंसानियत है त
Sarita Shreyasi
हर रोज झुकती हूँ मैं, छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगों के आगे, मज़बूरी में नहीं,न ही इसलिए कि कोई विकल्प नहीं, न इस वजह से कि हर इंसान मुझसे बड़ा है कद-पद या उम्र में, मैं झुकती हूँ,ताकि तनी तनी मैं ठूँठ न हो जाऊँ, कभी झुकना चाहूँ, और झुक ही न पाऊँ, झुकती हूँ बीते दिन की वैमनस्यता भुलाने के लिए, झुकती हूँ खुद को याद दिलाने के लिए, हर रोज एक छटाँक बढ़ता है अहम मेरा, झुक कर उसके बढ़े सिरे काट देती हूँ,जड़-फुनगी छाँट देती हूँ। झुकाती हूँ अभिमान को,आत्म-सम्मान को खड़ा रखने के लिए, न कि पीठ को पायदान बनाकर चुपचाप सहने के लिए, समय के साथ बढ़ जाता है ठोसपन,सोच और सिद्धांतों का, मैं झुकती हूँ,छोटे-छोटे विचार चुन लेती हूँ, मन और उसके हठ की, उम्र कम करती हूँ, मस्तिष्क की जमीन अपनी नम करती हूँ, ताकि कल,इनमें नए नस्ल के बीज समा सकूँ, अपनी प्रकृति में परिवर्तन की पौध लगा सकूँ। हर रोज झुकती हूँ मैं, छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगों के आगे, मज़बूरी में नहीं,न ही इसलिए कि कोई विकल्प नहीं, न इस वजह से कि हर इंसान मुझसे बड़ा
आयुष पंचोली
रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही अपनापन हो। जहां दिखावा नही बल्कि दिल मे उस रिश्ते के लिये मान, सम्मान , समर्पण और प्रेम हो। फ़िर चाहे वो किसी से भी हो। और अगर किसी रिश्ते के लिये आपके मन मे बैर हैं, मगर आप सिर्फ दिखावे के लिये उसको निभा रहे हो तो, इससे अच्छा हैं उससे दूर हो जाओ। उसका परित्याग करदो । क्योकी मन मे वैमनस्यता और बैर लिये जो रिश्ता पनपता हैं, उसका अन्त कभी सुखद नही होता। चाहे फ़िर यह बैर किसी भी रिश्ते के लिये ही क्यो ना हो। माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री, दोस्त, समबन्धी सब अपनेपन के कारण ही आपसे जुड़े होते हैं। मगर जब यह अपनापन खत्म होने लगता हैं, और उस रिश्ते मे कटुता आने लगती हैं, तब सबका व्यवहार आपके लिये बदलने लगता हैं। फ़िर हर रिश्ता सिर्फ नाम का रह जता हैं, इसके अलावा कुछ नही। और किसी के व्यवहार को सोचकर मन ही मन दुखी होने से अच्छा होता हैं, उसे आपसे जुड़े सम्बंध से मुक्त कर उसे उसकी राह पर चलने दिया जायें। अगर सामने वाला सच मे आपके लिये मान-सम्मान, समर्पण और प्रेम भाव रखता होगा, तो वह कभी आपसे दूर नही हो पायेगा। और अगर ऐसा नही हैं, तो आप लाख उसे रोकना चाहो, वह ठहर ही ना पायेगा। आप इसे कुछ भी कहलो , मगर यह एक कटु सत्य हैं।🙏🙏🙏🙏 ©आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #mereprashnmerisoch रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही अपनापन हो। जहां दिखावा नही बल्कि दिल मे उस रिश्ते के लिये मान, सम्मान , समर्पण और प्रेम ह