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Jitendra Kumar Som
पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी अंबावती में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा दानी था। उसी राज्य में धर्मसेन नाम का एक और बड़ा राजा हुआ। उसकी चार रानियां थी। एक थी ब्राह्मण, दूसरी क्षत्रिय, तीसरी वैश्य और चौथी शूद्र। ब्राह्मणी से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम ब्राह्मणीत रखा गया। क्षत्राणी से तीन बेटे हुए। एक का नाम शंख, दूसरे का नाम विक्रमादित्य और तीसरे का भर्तृहरि रखा गया। वैश्य से एक लड़का हुआ, जिसका नाम चंद्र रखा गया। शूद्राणी से धन्वन्तारि हुए। जब वे लड़के बड़े हुए तो ब्राह्मणी का बेटा घर से निकल पड़ा और धारापुर आया। हे राजन्! वहां के राजा तुम्हारे पिता थे। उस लड़के ने राजा को मार डाला और राज्य अपने हाथ में ले करके उज्जैन पहुंचा। संयोग की बात है कि उज्जैन में आते ही वह मर गया। उसके मरने पर क्षत्राणी का बेटा शंख गद्दी पर बैठा। कुछ समय बाद विक्रमादित्य गद्दी पर बैठें। एक दिन राजा विक्रमादित्य को राजा बाहुबल के बारे में पता चला कि जिस गद्दी पर वह बैठे हैं वह राजा बहाहुबल की कृपा से है। पंडितों ने सलाह दी कि हे राजन्! आपको जग जानता है, लेकिन जब तक राजा बाहुबल आपका राजतिलक नहीं करेगें, तब तक आपका राज्य अचल नहीं होगा। आप उनसे राजतिलक करवाओ। विक्रमादित्य ने कहा, 'अच्छा।' और वह अपने ज्ञानी और विश्वसनीय साथी लूतवरण को साथ लेकर वहां गए। बाहुबल ने बड़े आदर से उसका स्वागत किया। पांच दिन बीत गए। लूतवरण ने विक्रमादित्य को सलाह दी कि, 'जब आप विदा लेगें तब राजा बाहुबल आपसे कुछ मांगने को कहेगें। राजा के घर में एक सिंहासन हैं, जिसे साक्षात महादेव ने राजा इन्द्र को दिया था। और बाद में इन्द्र ने बाहुबल को दिया। उस सिंहासन में यह गुण है कि जो उस पर बैठेगा। वह सात द्वीप नवखंड पृथ्वी पर राज करेगा। उसमें बहुत-से जवाहरात जड़े हैं। उसमें सांचे में ढालकर बत्तीस पुतलियां लगाई गई है। हे राजन्! तुम उसी सिंहासन को मांग लेना।' अगले दिन जब विक्रमादित्य विदा लेने गए तो उसने वही सिंहासन मांग लिया। राजा बाहुबल वचन से बंधे थे। बाहुबल ने विक्रमादित्य को उस पर बिठाकर राजतिलक किया और बड़े प्रेम से विदा किया। राजा विक्रमादित्य ने लौटते ही सभा की और पंडितों को बुलाकर कहा, 'मैं एक अनुष्ठान करना चाहता हूं। आप देखकर बताएं कि मैं इसके योग्य हूं या नहीं।' पंडितों ने कहा, 'आपका प्रताप तीनों लोकों में छाया हुआ है। आपका कोई बैरी नहीं। जो करना हो, कीजिए।' अपने खानदान के सब लोगों को बुलाइए, सवा लाख कन्या दान और सवा लाख गायें दान कीजिए, ब्राह्मणों को धन दीजिए, जमींदारों का एक साल का लगान माफ कर दीजिए।' इतना कहकर पुतली रत्नमंजरी बोली, 'हे राजन्! आपने अगर कभी ऐसा दान किया है तो सिंहासन पर अवश्य बैठें।' पुतली की बात सुनकर राजा भोज निराश हो गए- 'आज का दिन तो गया। अब तैयारी करो, कल सिंहासन पर बैठेंगे।' इस तरह सिंहासन बत्तीसी की पहली पुतली ने राजा भोज को नहीं बैठने दिया और अगले दिन दूसरी पुतली चित्रलेखा ने सुनाई राजा विक्रमादित्य की कहानी। ©Jitendra Kumar Som #holikadahan पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी
Jitendra Kumar Som
पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी अंबावती में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा दानी था। उसी राज्य में धर्मसेन नाम का एक और बड़ा राजा हुआ। उसकी चार रानियां थी। एक थी ब्राह्मण, दूसरी क्षत्रिय, तीसरी वैश्य और चौथी शूद्र। ब्राह्मणी से एक पुत्र हुआ, जिसका नाम ब्राह्मणीत रखा गया। क्षत्राणी से तीन बेटे हुए। एक का नाम शंख, दूसरे का नाम विक्रमादित्य और तीसरे का भर्तृहरि रखा गया। वैश्य से एक लड़का हुआ, जिसका नाम चंद्र रखा गया। शूद्राणी से धन्वन्तारि हुए। जब वे लड़के बड़े हुए तो ब्राह्मणी का बेटा घर से निकल पड़ा और धारापुर आया। हे राजन्! वहां के राजा तुम्हारे पिता थे। उस लड़के ने राजा को मार डाला और राज्य अपने हाथ में ले करके उज्जैन पहुंचा। संयोग की बात है कि उज्जैन में आते ही वह मर गया। उसके मरने पर क्षत्राणी का बेटा शंख गद्दी पर बैठा। कुछ समय बाद विक्रमादित्य गद्दी पर बैठें। एक दिन राजा विक्रमादित्य को राजा बाहुबल के बारे में पता चला कि जिस गद्दी पर वह बैठे हैं वह राजा बहाहुबल की कृपा से है। पंडितों ने सलाह दी कि हे राजन्! आपको जग जानता है, लेकिन जब तक राजा बाहुबल आपका राजतिलक नहीं करेगें, तब तक आपका राज्य अचल नहीं होगा। आप उनसे राजतिलक करवाओ। विक्रमादित्य ने कहा, 'अच्छा।' और वह अपने ज्ञानी और विश्वसनीय साथी लूतवरण को साथ लेकर वहां गए। बाहुबल ने बड़े आदर से उसका स्वागत किया। पांच दिन बीत गए। लूतवरण ने विक्रमादित्य को सलाह दी कि, 'जब आप विदा लेगें तब राजा बाहुबल आपसे कुछ मांगने को कहेगें। राजा के घर में एक सिंहासन हैं, जिसे साक्षात महादेव ने राजा इन्द्र को दिया था। और बाद में इन्द्र ने बाहुबल को दिया। उस सिंहासन में यह गुण है कि जो उस पर बैठेगा। वह सात द्वीप नवखंड पृथ्वी पर राज करेगा। उसमें बहुत-से जवाहरात जड़े हैं। उसमें सांचे में ढालकर बत्तीस पुतलियां लगाई गई है। हे राजन्! तुम उसी सिंहासन को मांग लेना।' अगले दिन जब विक्रमादित्य विदा लेने गए तो उसने वही सिंहासन मांग लिया। राजा बाहुबल वचन से बंधे थे। बाहुबल ने विक्रमादित्य को उस पर बिठाकर राजतिलक किया और बड़े प्रेम से विदा किया। राजा विक्रमादित्य ने लौटते ही सभा की और पंडितों को बुलाकर कहा, 'मैं एक अनुष्ठान करना चाहता हूं। आप देखकर बताएं कि मैं इसके योग्य हूं या नहीं।' पंडितों ने कहा, 'आपका प्रताप तीनों लोकों में छाया हुआ है। आपका कोई बैरी नहीं। जो करना हो, कीजिए।' अपने खानदान के सब लोगों को बुलाइए, सवा लाख कन्या दान और सवा लाख गायें दान कीजिए, ब्राह्मणों को धन दीजिए, जमींदारों का एक साल का लगान माफ कर दीजिए।' इतना कहकर पुतली रत्नमंजरी बोली, 'हे राजन्! आपने अगर कभी ऐसा दान किया है तो सिंहासन पर अवश्य बैठें।' पुतली की बात सुनकर राजा भोज निराश हो गए- 'आज का दिन तो गया। अब तैयारी करो, कल सिंहासन पर बैठेंगे।' इस तरह सिंहासन बत्तीसी की पहली पुतली ने राजा भोज को नहीं बैठने दिया और अगले दिन दूसरी पुतली चित्रलेखा ने सुनाई राजा विक्रमादित्य की कहानी। ©Jitendra Kumar Som #holikadahan पहली पुतली रत्नमंजरी की कहानी
Homendra Kumar
कछुए की उड़ान कछुओं का एक राजा था।उसे राजा बृहस्पति के विवाह का निमंत्रण मिला।वह आलसी था।फलतः घर पर ही रह गया। विवाह के उत्सव में सम्मिलित नही हुआ।बृहस्पति नाराज हो गए।उन्होंने कछुओं को पीठ पर अपना घर ढोने का साप दे दिया। एक समय एक बड़े तालाब में एक कछुआ रहता था।उसमे अनेक राजहंश भी रहते थे। उनकी उड़ान कछुए को बहुत अच्छी लगती थी। वह भी। ©Homendra Kumar #Colors कविता की कहानी।#कहानी
Vivek
कहानी हमारी नही होती उन हालातों की होती है जिन हालातों में रहकर हम निखरें हैं ज्वाला बने हैं,, हम कितने गहरे होंगे कितने विशाल होंगे ये निर्भर करता है हम कहां उगते हैं उसी तरह इंसान के संस्कार, त्याग, तप, निर्भर करते हैं वो किस हालात में किन स्थितियों में रहता है!! ©Vivek #कहानी हालातों की #कहानी हमारे बनने बिगड़ने की #
shaurya valvaikar
दिल के न अरमान पूरे हुए न पूरे हुए आँखों देखे सपने हर तरफ से धोखा ही मिला और छोड़ गए साथ जो थे अपने। सांस भी अब नही आती न आ रही है मौत मुझे लफ़्ज़ों से बहे लहू मेरा आँसू भी आंखों में ठहर से गये। जिंदगी तो मेरी बेमतलब की थी बेआबरू तू उसने किया कहता था पलकों में सवारूँगा उसीने मेरी इज्जत को चोहराये पे नंगा किया। कहानी एक आँख की#nojoto#कहानी
DR. LAVKESH GANDHI
चुना था सिर्फ तेरी आवाज वो भी बिना तुझे देखे चाहा था सिर्फ तेरी हंसी मिले मुझे सिर्फ तेरी ख़ुशी नसीब को कुछ और भी मंजूर था तेरे मेरे रिश्ते के पीछे मंथरा का हाथ था बात मान गई केकैयी ख़त्म हो गई तेरी मेरी कहानी # कहानी# # जीवन की कहानी# #yqjindgikasafer #yqlifefeelings