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Author Harsh Ranjan

क्रांतिवीर 1

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एक लड़का था जिसने
एक मंच पर कुछ क्षण
पाने के लिए, बिताने के लिए
अपनी समझ, अपनी आवाज,
अपने विचार सुनाने के लिए,
अपने घर-आँगन के हालात
जताने के लिए,
फांसी से कीमत अदा की।
एक युवक था,
जो असहमत था,
जिसे लगा कि उसमें वो बात है,
वो लड़ेगा सबकी लड़ाई, अपने हाथ
कि बुरे हालात हैं,
उसे सिर्फ उस पेड़ का साया मिला,
जिसने उसपर आती कुछ गोलियां सहीं,
पेड़ स्थिर था, इंसान चलंत,
बस इतनी ही युवक की कहानी रही।
आगे कुछ लोगों ने पन्नों पे लिखा,
'ये अपराधी थे।'
कुछ सालों बाद फिर पन्नों पे
उनका नाम और मुकाम उभरा,
अब वो 'असहमत' कहलाये।
फिर सालों बाद किसी ने
गीत गाये उनके नाम के,
अब वो 'क्रांतिकारी' कहाए।
लोग क्रूरता भूले, क्रांति भूले,
लोग दमन भूले, लोग भ्रांति भूले,
आज़ाद देश में कुम्हाले वाले फूल खिले
बस यही उनकी तस्वीरों को मिले! क्रांतिवीर 1

Author Harsh Ranjan

क्रांतिवीर 2

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बस मौत नहीं मिली उस
जूझते इंसान को, दैवयोग से,
जिंदगी आगे जाएगी?! 
ऐसे कितने सवाल थे उसे पूछने
कि उन विदीर्ण दीवारों में जन्मे
कितने रोग थे जो जन्मों साथ जाते!
हर मुर्दे का अधिकार है कि
उसे मंजिल तक पहुंचाया जाए!
क्या शमशान में भी भेद किये जाते हैं!
उसने उस रोज जाना कि मर जाने को ही,
क्यों सीधी समझ वाले हर बार
अधिक आसान रास्ता पाते हैं!
व्यवस्था ने अपनी एक टांग रखी
उसकी चाबुक खाई पीठ पर,
फिर दूसरी टांग भी डाली,वो भी युवक था ढीठ पर!
फिर व्यवस्था ने अपना पाप भरा पेट और
जहरीले स्तन उसपर लाध डाले,
वो हड्डियां नहीं थी टूटने वालीं,
भले ही बोझ उन्हें झुका डाले!
आज उसकी मुस्कुराती तस्वीरें
एक सरल सी बात बताती हैं!
व्यवस्था से व्यवस्था बन ही जीतते हैं
और हर ऐसा प्रतिद्वंदी किसी 
कुबड़े कछुए की पीठ पर मंदार सा होता है।
बांकी, काजल की कोठरी में
सबको पता है, अथाह कालिख होती है,
तुम्हारी है तो, जीने की अपनी भी
काजल ही वजह होती है! क्रांतिवीर 2

Asheesh Pandey

श्वेत क्रांतिवीर #कविता

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Author Harsh Ranjan

क्रांतिवीर 1

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एक लड़का था जिसने
एक मंच पर कुछ क्षण
पाने के लिए, बिताने के लिए
अपनी समझ, अपनी आवाज,
अपने विचार सुनाने के लिए,
अपने घर-आँगन के हालात
जताने के लिए,
फांसी से कीमत अदा की।
एक युवक था,
जो असहमत था,
जिसे लगा कि उसमें वो बात है,
वो लड़ेगा सबकी लड़ाई, अपने हाथ
कि बुरे हालात हैं,
उसे सिर्फ उस पेड़ का साया मिला,
जिसने उसपर आती कुछ गोलियां सहीं,
पेड़ स्थिर था, इंसान चलंत,
बस इतनी ही युवक की कहानी रही।
आगे कुछ लोगों ने पन्नों पे लिखा,
'ये अपराधी थे।'
कुछ सालों बाद फिर पन्नों पे
उनका नाम और मुकाम उभरा,
अब वो 'असहमत' कहलाये।
फिर सालों बाद किसी ने
गीत गाये उनके नाम के,
अब वो 'क्रांतिकारी' कहाए।
लोग क्रूरता भूले, क्रांति भूले,
लोग दमन भूले, लोग भ्रांति भूले,
आज़ाद देश में कुम्हाले वाले फूल खिले
बस यही उनकी तस्वीरों को मिले! क्रांतिवीर 1

Author Harsh Ranjan

क्रांतिवीर 2

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बस मौत नहीं मिली उस
जूझते इंसान को, दैवयोग से,
जिंदगी आगे जाएगी?! 
ऐसे कितने सवाल थे उसे पूछने
कि उन विदीर्ण दीवारों में जन्मे
कितने रोग थे जो जन्मों साथ जाते!
हर मुर्दे का अधिकार है कि
उसे मंजिल तक पहुंचाया जाए!
क्या शमशान में भी भेद किये जाते हैं!
उसने उस रोज जाना कि मर जाने को ही,
क्यों सीधी समझ वाले हर बार
अधिक आसान रास्ता पाते हैं!
व्यवस्था ने अपनी एक टांग रखी
उसकी चाबुक खाई पीठ पर,
फिर दूसरी टांग भी डाली,वो भी युवक था ढीठ पर!
फिर व्यवस्था ने अपना पाप भरा पेट और
जहरीले स्तन उसपर लाध डाले,
वो हड्डियां नहीं थी टूटने वालीं,
भले ही बोझ उन्हें झुका डाले!
आज उसकी मुस्कुराती तस्वीरें
एक सरल सी बात बताती हैं!
व्यवस्था से व्यवस्था बन ही जीतते हैं
और हर ऐसा प्रतिद्वंदी किसी 
कुबड़े कछुए की पीठ पर मंदार सा होता है।
बांकी, काजल की कोठरी में
सबको पता है, अथाह कालिख होती है,
तुम्हारी है तो, जीने की अपनी भी
काजल ही वजह होती है! क्रांतिवीर 2

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