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Anil Agrahari

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Kranti Thakur

#विस्मृत यादेँ #कविता

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Kulbhushan Arora

यही दुनिया है... पुण्या के दाबू, दाबू की पुण्या, दाबू की दुनिया, विस्तृत दुनियां की, सीमित है दुनिया, सीमित दुनियां की, विस्तृत यही दुनिया, #yqkulbhushandeep #yqप्रेम #yqदुनियां #yqविस्तृत #yqसीमित

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#दाबू की पुण्या  यही दुनिया है...
पुण्या के दाबू,
दाबू की पुण्या,
दाबू की दुनिया,
विस्तृत दुनियां की,
सीमित है दुनिया,
सीमित दुनियां की,
विस्तृत यही दुनिया,

Shivam Chauhan

मै कोई विस्मृत नहीं #कविता #nojotophoto

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 मै कोई विस्मृत नहीं

Amit Singhal "Aseemit"

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જેનતીસાખટ

दिव्या विस्तार #વિચારો

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Ashish Shukla

विस्मित वेदना

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एक व्यथित व्यथा का दृश्य था
मैं खुद में ही अदृश्य था
रुदन क्रदन और चहुँ ओर चीत्कार था
जैसे चारो ओर मचा हाहाकार था
मैं शांत करा रहा उस रुदन चीत्कार को
पर कोई मुझे सुनने को जैसे न तैयार था
देखा मैंने खुद को जब बेजान पड़े
मेरे अपनो को मेरे चारो ओर हैरान खड़े
नयनो में नीर  प्रमाण लिए....
मैं अब खुद व्याकुल हो उठा
जिज्ञासा बड़ी अपार उठी
कल रात ही तो सोया था
मैं तो मीठे सपनो में खोया था
आँख खुली जब तो सुनने को चीत्कार मिला
मैं अचरज में हो विस्मित अब स्मृतियो के पार चला
जो बेजान पड़ा शरीर नश्वर सा मेरा था
अब समझ गया मैं कितना अकेला था
खैर अब सफर खुद ही तय करना है
इस संसार को छोड़ अब नए संसार की ओर चलना हैं।
अवधि यहां की समाप्त हुई
जितनी होनी थी जीवन की बरसात हुई
खेल कूद जिन गलियारों में बड़ा हुआ 
जिन अपनो के संग हँसता गाता था कभी मैं खड़ा हुआ
आज कंधो पर उनके मैं सज संवर बेजान सा ही चल दिया
सिर्फ एक धुन पर ही सफर शुरू हुआ और अंतिम पड़ाव पर खत्म हुआ
कह अलविदा इस संसार को पंचतत्वों में विलीन हुआ। विस्मित वेदना

MANPREET SINGH (साहिर-ए-मन)❤

विस्तार हूँ मैं #कविता

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विस्तार हूँ मैं।
हर छण छणिक हूँ मैं।
हर छण बढ रहा हूँ।
मैं वायु सा हूँ हर छण बह रहा हूँ।
रुकता नहीं रुक जाऊँ तो फिर रहता नहीं।
सीमाओं से परे आसमान सा हूँ मैं।
अनियंत्रित विस्फोट हूँ।
हर पल हूँ बहता दरिया,
हर छण में विस्फोटित हूँ,
सीमाओं से परे ब्रह्माण्ड से भी बडा हूँ।
अनियंत्रित ऊर्जा हूँ,

मैं विस्तार हूँ।
आदि-अनादि, वर्तमान और भविष्य से परे,
असीमित हूँ,
मैं विस्तार हूँ । विस्तार हूँ मैं

Parasram Arora

धरा बका विस्तार......

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महिनो की  दूरी मिंटो में लांघ कर तुम मेरे पास आये हों
सच हैं  आदमी ने धरा का विस्तार सिमित कर दीया हैं
सगरो की  तलहटी में आदमी के चरण पहुंच गए
आदमी ने गहराई के रहस्ययों से आवरण हटा दीयाहैं
दिशाओं को  विस्तार  अब सकुचित हुआ हैं
लेकिन मन की  दूरी प्र अंकुश नही लग सका हैं
हमने  असाधारण को  सहज और सरल बना दीया हैं
किन्तु  उसे  सहेजना हमसे  अभी  भी नही हों पाया हैं
दूर की दूरी तो हम अकेले ही तय कर लेंगे
किन्तु निकटता की  दूरी  को  पाटने में विलम्ब हों गया हैं

©Parasram Arora धरा बका विस्तार......

Rakesh Kumar Dogra

विस्तार के विरोधाभास

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"भेड़ जब चरती है तो चारों तरफ फैल जाती है
जब मंज़िल की तरफ बढ़ाओ तो झुण्डों में सिकुड़ जाती है।" #NojotoQuote विस्तार के विरोधाभास
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